2014 में नरेंद्र मोदी नामक सुनामी ने अररिया के 9 लाख 76 हजार वोटरों को घर से खीच कर पोलिंग बूथों तक पहुंचाया था. तेजस्वी यादव के नेतृत्व ने 2018 में 10 लाख 37 हजार मतदाताओं से वोट दिलवा दिया. यानी 60 हजार अधिक मतदाता तेजस्वी के आह्वान पर निकल पड़े.

 

[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाही डॉट कॉम[/author]

बिहार उपचुनाव के तेजस्वी के नेतृत्व की स्थापना यात्रा की यह पहली बानगी है. याद रखिये कि 2014 में तीन राजनीतिक शक्तियाों- नरेंद्र मोदी, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार अपनी-अपनी नेतृत्व क्षमता के बूते मैदान में एक दुसरे के मुकाबिल थे. आज लालू नेपथ्य में हैं, जबकि भाजपा व नीतीश कुमार एक साथ तेजस्वी से भिड़े थे.

अररिया लोकसभा

फिर से याद रहे कि अमूमन उपचुनावों में मतदाताओं की खास दिलचस्पी नहीं होती. लिहाजा वोटिंग प्रतिशत गिरती है. पर अररिया की जनता आंधियों की तरह घरों से निकल कर पोलिंग बूथों तक उमड़ पड़ी. कुछ तो था. कोई तो प्रेरणा थी जो ऐसा हुआ. एक तरफ जदयू व भाजपा के दिग्गज दूसरी तरफ तेजस्वी, मांझी व कांग्रेसी सहयोग  के साथ मैदान में थे. साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशों के बावजूद राजद के सरफराज आलम यहां 62 हजार से ज्याद वोटों से जीते.

जहानाबाद विधानसभा

अब जहानाबाद विधानसभा उप चुनाव के हिसाब किताब को समझिये. यहां रजाद के उम्मीदवर सुदय यादव ने 35 हजार से ज्यादा की मार्जिन से जीत दर्ज की. 2015 के विधानसभा चुनाव में रनर कंडिडेट को 46 हजार वोट मिले थे. लेकिन 2018 के उपचुनाव में रनर कंडिडेट के वोटों की संख्या 41 हजार रह गयी. यानी रनर कंडिडेट के 5 हजार से ज्यादा वोटर समर्थकों ने इसबार उनसे मुंह मोड़ लिया. जबकि जीतने वाले राजद के सुदय यादव के पिता के वोट 2015 में 76 हजार थे और 2018 में भी 76 हजार ही रहे. गौर करने की बात है कि 2015 में लालू-नीतीश के सम्मलित प्रयास से जितने वोट राजद कंडिडेट को मिले उतने वोट नीतीश के अलग हो जाने और भाजपा से हाथ मिला लेने के बाद भी तेजस्वी की टीम ने खीच लिया. साफ है जदयू-भाजपा के पुनर्मिलन के बाद भी राजद वोट का आधार बरकरार रहा जबकि जदयू-भाजपा को पांच हजार वोटों का नुकसान हुआ.

 

भभुआ विधान सभा

अब भभुआ विधानसभा उपचुनाव की बात की जाये. भभुआ में राजद ने कंडिडेट नहीं दिया था. उसकी सहयोगी कांग्रेस यहां मैदान में थी. यहां भाजपा की उम्मीदवार रिंकी पांडेय ने जीत दर्ज की. कांग्रेस के उम्मीदवार हारे. कांग्रेस की हार तेजस्वी के नेतृत्व के लिहाज से इसलिए चुनौतिपूर्ण है कि यहां भाजपा-जदयू के समर्थक वोटरों की संख्या 2015 की तुलना में  14 हजार बढ़ी तो दूसरी तरफ राजद-कांग्रेस के समर्थकों की संख्या भी बढ़ी लेकिन महज 6 हजार ही बढ़ी. इसबार भाजपा को 64 हजार वोट मिले तो कांग्रेस को 49 हजार. लेकिन 2015 में यहां जदयू को तब 43 हजार वोट ही मिले थे. ऐसा तब था जब जदयू को कांग्रेस व राजद का समर्थन प्राप्त था. इस आधार पर देखें तो जदयू के राजद गठबंधन से निकल जाने के बावजदू राजद-कांग्रेस गठबंधन के वोटों में कमी तो नहीं ही आयी ब्लकि वोट बढ़े ही.

तीन तथ्य, तीन परिदृश्य

ऊपर हमने बिहार उपचुनाव के एक-एक वोट का जाजा लिया है. यह जायजा निम्नलिखित तथ्यों की तरफ साफ इशारा करता है-

पहला– जदयू का राजद गठबंधन से निकल कर भाजपा से साथ मिल जाने पर राजद को आंकड़ों के स्तर पर नुकसान होने के बजाये फायदा ही हुआ है.

दूसरा– लालू प्रसाद की गैरमौजूदगी और उनका प्रत्यक्ष मार्गदर्शन नहीं होने के बावजूद तेजस्वी प्रसाद यादव दो कद्दावर नेताओं- नीतीश कुमार व सुशील मोदी के लिए गंभीर चुनौती पेश करने में कामयाब रहे.

तीसरा– लालू की क्षत्रछाया से इतर तेजस्वी की यह पहली अग्निपरीक्षा थी. उचित समय पर जीतन राम मांझी को अपने पक्ष में कर लेने की रणनीति भले ही लालू की रही हो पर इस रणनीति को धरातल पर उतारने में तेजस्वी ने सफलता प्राप्त कर ली.

बिहार के इस उपचुनाव ने तेजस्वी में आत्मविश्वास बढ़ाया है. उन्हें खुद की ‘नेतृत्व क्षमता’ पर विश्वास जागा है. लिहाजा, तेजस्वी ने इस प्रदर्शन के बाद जो पहली प्रतिक्रिया दी उस पर गौर करने की जरूरत है. तेजस्वी ने कहा कि ‘लालू एक विचार है, व्यक्ति नहीं. विचार को जेल में नहीं डाला जा सकता’. तेजस्वी की यह प्रतिक्रिया कोई मामलू प्रतिक्रिया नहीं है. यह उनकी राजनीति की गहरी समझ का प्रतिबिंब है. उन्हें पता है कि वह लालू की गैरमौजूदगी में ‘लालूवाद’ का प्रतिनिधि चेहरा हैं. इस प्रतिक्रिया का एक साफ संदेश है. संदेश यह है कि तेजस्वी की भावी राजनीति लोहियावाद, कर्पूरीवाद के साथ अब ‘लालूवाद’ पर आधारित होगी.

तेजस्वी  अब बिहार के स्थापित विपक्षी नेताओं के लिए सीधी चुनौती पेश करने की ओर अग्रसर हैं. सफर लम्बा है. काफी उतार-चढ़ाव भरे रास्ते हैं. पर अब तक तेजस्वी ने जो पर्मफॉर्मेंस दिखाया है, उससे लगता है कि उनकी दिशा सटीक है.

आगामी योजना

अब भविष्य की राजनीति के लिए तेजस्वी को अत्यंत पिछड़े वर्ग के वोटरों को गोलबंद करने की चुनौती होगी.इस वर्ग में अत्यंत पिछड़े मुसलमान भी हैं और अत्यंत पिछ़ा वर्ग के हिंदू भी.   सामाजिक न्याय के इस  तकाजे को तेजस्वी बखूबी समझते हैं. लिहाजा राजनीतिक नेतृत्व का विस्तार अत्यंत पिछड़े वर्ग तक पहुंचाने की दिशा में ठोस पहल हो, इसकी कोशिश में तेजस्वी अब लगेंगे. क्योंकि उन्हें पता है कि भाजपा की चुनौतियों को कमजोर करने के लिए यह जरूरी है.

 

 

 

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427