बिहार में कैबिनेट का विस्तार क्यों नहीं होने दे रही भाजपा
बिहार में चुनाव हुए दो महीने होने को हैं, पर अब तक कैबिनेट का विस्तार नहीं हो पाया है। यह सवाल रहस्य बनता जा रहा है कि आखिर भाजपा कैबिनेट विस्तार क्यों नहीं होने दे रही?
कुमार अनिल
एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया कि भाजपा के कारण ही बिहार में कैबिनेट का विस्तार नहीं हो पा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सचिवालय में एक समीक्षा बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए अपनी पीड़ा का इजहार किया। उन्होंने कहा कि पहले कैबिनेट विस्तार में देर नहीं होती थी। वे शुरू में ही कर देते रहे हैं। अभी तो कुल मिला कर 14 लोग हैं। आगे उन्होंने इसका कारण भी स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि जबतक लोगों (भाजपा) की राय नहीं आ जाएगी, तब तक कैसे विस्तार होगा।
अब बड़ा सवाल यही है कि आखिर भाजपा कैबिनेट के विस्तार को क्यों टाल रही है। इससे तो बिहार के विकास का कार्य भी बाधित होता है। निर्णय प्रक्रिया लंबी हो जाती है। कैबिनेट विस्तार को लगातार टालना क्या भाजपा की कोई मजबूरी है या यह किसी रणनीति (प्लान) का हिस्सा है।
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माना जा रहा था कि गुरुवार को भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव और प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल जब मुख्यमंत्री से मिलेंगे, तो कैबिनेट विस्तार पर मुहर लग जाएगी। पटना से प्रकाशित एक हिंदी दैनिक ने आज लिख दिया कि इस मुलाकात में कैबिनेट विस्तार को अंतिम रूप दे दिया गया। अखबार ने यहां तक लिखा कि विस्तार 15 जनवरी को होगा और इसमें भाजपा के दस और जदयू के सात नए मंत्री बनाए जाएंगे। मुख्यमंत्री ने आज अखबार में प्रकाशित उस खबर का भी खंडन कर दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि भाजपा नेताओं के साथ कोई राजनीतिक बातचीत नहीं हुई हुई।
अब यह तो तय है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार को हरी झंडी नहीं दिखा रहा है। मंत्रिमंडल विस्तार को क्या राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने रोक रखा है या इस पर भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह की कोई योजना है। क्या भाजपा फिर कोई चौंकानेवाला निर्णय देगी, जैसा उसने दो उप मुख्यमंत्रियों के नाम के चुनाव में किया। दोनों पिछड़े और अतिपिछड़े समुदाय से हैं, जिस पर जोर देकर वह जदयू के सामाजिक आधार को भविष्य में अपने करीब लाना चाहेगी?
कैबिनेट विस्तार को टालना क्या भजपा की कोई मजबूरी है, क्या ऐसा किसी खेमेबाजी की वजह से हो रहा है या यह जदयू के सामाजिक आधार को लुभाने में अपने पुराने और मजबूत सवर्ण आधार को खोने का डर है?