बिहार दिवस : लोग नीतीश को छोड़ गुप्त वंश को क्यों कर रहे याद
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, तेजस्वी यादव ने बिहार दिवस पर सम्राट अशोक, गुप्त वंश को याद किया। हद है, जदयू नेता भी वर्तमान छोड़ इतिहास में डूबे।
कुमार अनिल
आज बिहार दिवस है। कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी और बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने गुप्त वंश, मौर्य वंश, सम्राट अशोक के शासन को याद किया और नीतीश शासन की चर्चा भी नहीं की, तो आप कह सकते हैं कि ये नेता विपक्षी नेता हैं, लेकिन जदयूू नेताओं को भी देखें, तो अधिकतर 17-18 सौ साल पुराने बिहार में ही खोएं हैं और वर्तमान में 15 साल से जारी नीतीश सरकार को भुला बैठे।
कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने ज्ञान की भूमि के निवासियों को शुभकामनाएं दी हैं। ज्ञान की भूमि का अर्थ क्या है? ज्ञान की भूमि का संबंध आज के नीतीश शासन से नहीं है, बल्कि लगभग 1800 साल पहले गुप्त वंश से है, जिसके शासन में प्राचीन नालंदा विवि की स्थापना हुई और जहां दुनिया भर के छात्र पढ़ने और विद्वान पढ़ाने आते थे। आज का बिहार नहीं, जहां के छात्र पढ़ने के लिए दिल्ली भागते हैं और विद्वान विदेश।
तेजस्वी यादव ने भी ज्ञान की भूमि को बधाई दी है। उन्होंने पराक्रम की भूमि को भी बधाई दी है। पराक्रम का क्या अर्थ है ? पराक्रम भी सम्राट अशोक और मौर्य वंश से जुड़ता है, जिन्होंने शासन का विस्तार दक्षिण से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान तक किया। बौद्ध और महावीर के विचारों को दूर-दूर तक फैलाया। नगर बसाए, प्रजा के जीवन को खुशहाल करने के उपाय किए। तेजस्वी ने भी वर्तमान बिहार के नीतीश शासन को याद नहीं किया जैसे किसी शुभ घड़ी में छींक न आए। तेजस्वी ने एक फोटो भी ट्वीट किया है, जिसमें महात्मा बुद्ध और नालंदा विवि का खंडहर दिख रहा है। तेजस्वी ने अच्छा किया वर्तमान की बंद चीनी मिलों और नौकरी के लिए इंतजार में उदास आंखों का कोई चित्र शेयर नहीं किया।
हद तो यह है कि जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने भी नीतीश शासन को प्रमुखता नहीं दी। उन्होंने बिहार दिवस की जो बधाई दी है, उसमें भी तीन चित्र ही प्रमुख हैं-बुद्ध, बोधगया का बौद्ध मंदिर और वैशाली स्तूप। हां, जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह जरूर कुछ अलग हैं। उन्होंने लिखा है-गौरवशाली अतीत और जीवंत बिहार के साथ विकास पुरुष नीतीश कुमार के नेतृत्व में स्वर्णिम भविष्य की तरफ बढ़ रहे वासियों को शुभकामना। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि सोने जैसे भविष्य की तरफ बढ़ते हुए 15 साल में हम कहां तक पहुंचे हैं। चांदी युग तक पहुंच गए या लौह युग में हैं?
अच्छा है देश कश्मीर फाइल्स के हल्ले में महंगाई झेलने को तैयार है। बिहार भी नालंदा के खंडहर को देख-देख कर नौकरी-पढ़ाई से दूर रहेगा। जय बिहार, जय भारत।
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