बिहार चुनाव : कितने दल कितने गठबंधन, किसकी नैय्या होगी पार
शाहबाज़ की कवर स्टोरी
बिहार चुनाव जिसे त्रिकोणीय (RJD,JDU & BJP) माना जा रहा था अब षट्कोणीय हो गया है। विधान सभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन समेत कुल 6 गठबंधन हो गए है जिसके कारण 2020 में स्थिति अलग लग रही है.
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने बिहार चुनाव करीब आते ही रोज़ बनते गठबंधनों पर चिंता जताई है. हाल ही में जब लालू ने जन अधिकार पार्टी (JAP) अध्यक्ष पप्पू यादव (Pappu Yadav) द्वारा प्रगतिशील लोकतान्त्रिक गठबंधन (Progressive Democratic Alliance) बनाने की खबर सुनी तब लालू ने ट्वीट कर कहा कि पप्पू यादव ने अलग मोर्चे का ऐलान किया है. इससे किसका फायदा होगा?? सेक्युलर वोट बंटेगा, और सीधा फायदा भाजपा-जदयू को होगा।
बिहार विधान सभा चुनाव 2020 में कुल 6 गठबंधन चुनावी मैदान में अपने उम्मीदवार उतारेंगे। माना जा रहा है कि ज़्यादा संख्या में गठबंधन बनने से चुनाव के नतीजों में जीत/हार का मार्जिन घट सकता है. जिससे किसी भी दल को बहुमत न मिल पाने की स्थिति बन सकती है. ऐसे में एनडीए को फायदा होना तय माना जा रहा है.
बिहार चुनाव : किस गठबंधन के साथ जाएगी कौन सी जाति ?
आइए एक नज़र डालते है बिहार में तमाम गठबंधनों एवं उनके आने वाले चुनाव में प्रदर्शन पर.
एनडीए (National Democratic Alliance)
NDA गठबंधन में मुख्यतः बीजेपी और जदयू है. लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने फिलहाल अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है. लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान 42 सीटें मांग रहे है. ऐसा नहीं होने पर चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने के भी संकेत दे दिए हैं. उनकी पार्टी को 27 विधानसभा सीट का ऑफर दिया गया. साथ ही लोक जनशक्ति पार्टी को दो एमएलसी का भी ऑफर दिया गया. मगर इसके बावजूद भी चिराग मानने को तैयार नहीं हैं.
बिहार चुनाव में किसान बिल से NDA को कितना होगा नुक्सान ?
ऐसी चर्चाएं चल रही है कि चिराग एनडीए से अलग होने का जोखिम उठा सकते है. क्यूंकि लोक सभा चुनाव 2024 में होने है और इसमें चार साल का वक्त बचा हुआ है. 2015 बिहार विधान सभा चुनाव में लोजपा 42 में से सिर्फ 2 सीटों पर जीती थी. एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने की स्थिति में लोजपा दलित वोट बैंक पर निर्भर रहेगी। अगर दलित भाजपा के खिलाफ वोट करते है तो इसका नुकसान लोजपा को भी होगा। अगर भाजपा की बात करें तो पार्टी का स्ट्राइक रेट अच्छा है. लेकिन अगर नीतीश कुमार के खिलाफ वोटिंग ज़्यादा हो गयी तो भाजपा-जदयू दोनों को बड़ा झटका लग सकता है.
बिहार चुनाव : किस गठबंधन के साथ जाएगी कौन सी जाति ?
2015 बिहार चुनाव में भाजपा और जदयू ने क्रमशः 71 और 53 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार दोनों दलों को नुक्सान होने की आशंका है. क्यूंकि जहाँ एक तरफ जनता में नीतीश कुमार के राजनीतिक फैसलों के लिए नाराज़गी है वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी 2014 की तुलना में विश्वसनीयता और लोकप्रियता दोनों घट चुकी है. इसलिए 2020 में भाजपा और जदयू के दुसरे और तीसरे नंबर पर रहने की सम्भावना है.
चुनाव को लेकर राजद में इतना आत्मविश्वास क्यों है ?
महागठबंधन (Grand Alliance)
बिहार को जातीय राजनीति के लिए जाना जाता है. इस परिदृश्य में महागठबंधन मज़बूत स्थिति में है. महागठबंधन में राजद और कांग्रेस दो सबसे बड़े दल है. इसके साथ इस गठबंधन में वामपंथी पार्टियां भी है जो कुछ सीटों पर जीत सकती है. बिहार की बदली हुई फ़िज़ा में फिलहाल महागठबंधन मज़बूत दिख रही है. बिहार की आधी आबादी पिछड़े वर्गों के लोगो की है. जो राजद परंपरागत रूप से राजद का समर्थन करते है. इसके साथ यादव और मुस्लिम वोट बैंक भी है. नीतीश कुमार से नाराज़ वोटर भी महागठबंधन को वोट कर सकते है. वही युवा भी बेरोज़गारी, पलायन और कोरोना महामारी को लेकर नीतीश कुमार के खिलाफ वोट कर सकते है.
अगर RJD ने नहीं दी ज़्यादा सीटें तो टूट सकता है महागठबंधन
माना जा रहा है कि 2020 में भी राजद सबसे बड़े दल के रूप में उभर सकता है. राजद को इस बार 100 के करीब या उससे ज़्यादा सीटें जीत सकती है. 2015 में भी राजद ने 80 सीटों पर जीतकर बिहार में सबसे बड़ी पार्टी थी. वही कांग्रेस ने 27 सीटें जीती थी. इस बार कांग्रेस की भी ज़्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है. 2020 बिहार चुनाव में राजद की सबसे बड़ी पार्टी बने रहने की सम्भावना है.
यूनाइटेड डेमोक्रेटिक अलायन्स (United Democratic Alliance, UDA)
पूर्व वित्त मंत्री एवं भाजपा के पूर्व कद्दावर नेता यशवंत सिन्हा के नेतृत्व वाली UDA में एक समय में 19 दल हो गए थे. लेकिन इसके बाद बिहार चुनावों की तारीखों का ऐलान होते है कुछ दल इधर उधर हो गए. हाल ही में UDA के साथ गठबंधन का ऐलान करने वाली देवेंद्र प्रसाद यादव की समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक ने असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली UDSA (United Democratic Secular Alliance) में शामिल हो गयी. सूत्रों के माने तो कई दुसरे दल भी UDA छोड़ने का मन बना रहे है. इसलिए गठबंधन फिलहाल कमज़ोर पड़ता दिख रहा है.
UDA ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. लेकिन असदुद्दीन ओवैसी, पप्पू यादव और उपेंद्र कुशवाहा द्वारा अलग गठबंधन बनाने के ऐलान के बाद इसका महत्व काफी कम हो गया है.
यूनाइटेड डेमोक्रेटिक सेक्युलर अलायन्स (United Democratic Secular Alliance, UDSA)
AIMIM (All India Majlis-e-Ittehadul Muslimeen) ने बिहार में अपनी बढ़ती हुई ताकत को देखते हुए अलग गठबंधन का ऐलान कर दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव (Devendra Prasad Yadav) UDA छोड़कर ओवैसी के गठबंधन में शामिल हो गए. खुद देवेंद्र प्रसाद ने दावा किया है कि हम कई दलों के बड़े नेताओं से संपर्क में है जो UDSA में आ सकते है.
UDSA ने किया देवेंद्र यादव को CM बनाने का ऐलान
UDSA ने सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है. AIMIM की स्थिति सीमांचल में मज़बूत है लेकिन अन्य विधान सभा क्षेत्रों में ओवैसी का कितना असर होगा यह 2020 बिहार चुनाव के नतीजों से पता चल पायेगा. UDSA के ज़रिये पुरे प्रदेश में चुनाव लड़ने की स्थिति में पार्टी को लाभ होने की उम्मीद है. 2020 में AIMIM के बिहार में कांग्रेस की जगह लेकर चौथी सबसे बड़ी पार्टी बन जाने की सम्भावना है.
प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक अलायन्स (Progressive Democratic Alliance, PDA)
जन अधिकार पार्टी (JAP) अध्यक्ष पप्पू यादव के नेतृत्व वाली PDA में फिलहाल JAP के आलावा, एमके फ़ैज़ी की SDPI (Social Democratic Party of India) और चंद्रशेखर आज़ाद की आज़ाद समाज पार्टी और बहुजन मुक्ति पार्टी जैसे दल शामिल है. पप्पू यादव ने भी बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है.
सम्भावना है कि विकाशसील इंसान पार्टी (VIP) के मुकेश सहनी भी PDA, UDSA या उपेंद्र कुशवाहा के गठबंधन को ज्वाइन कर सकते है.
उपेंद्र कुशवाहा का गठबंधन
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी अलग गठबंधन का ऐलान कर दिया। उन्होंने एनडीए और महागठबंधन दोनों को दरकिनार कर दिया। फिलहाल कुशवाहा के गठबंधन में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) राष्ट्रीय जनवादी पार्टी सोशलिस्ट शामिल है.
ना एनडीए के ना महागठबंधन के हुए कुशवाहा, मायावती के साथ किया गठबंधन
2019 लोक सभा चुनाव में रालोसपा एक भी सीट नहीं जीत पायी थी. 2020 विधान सभा चुनाव में इस गठबंधन की क्या स्थिति होगी यह चुनाव के नतीजे आने के बाद मालूम होगा।