बिहार चुनाव : कहाँ और क्यों गायब हैं कन्हैया ?

सीपीआई के स्टार प्रचारक कन्हैया कुमार बिहार चुनाव के समय क्यूँ गायब हैं ?

शाहबाज़ कि विशेष रिपोर्ट

बिहार चुनाव के पहले चरण के मतदान में अब एक हफ्ते का समय शेष है. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (CPI) नेता कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) इन दिनों सियासी तौर पर गुमशुदा हैं और बिहार चुनाव प्रचार से दूरी बनाये हुए हैं. 11 अक्टूबर के बाद उन्होंने न ही कोई वक्तव्य जारी किया है और ना ही बिहार के किसी विधान सभा सीट पर चुनाव प्रचार किया है.

11 अक्टूबर को कन्हैया ने ट्विटर पर वक्तव्य दिया था जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए अमेरिका से मंगवाए लक्ज़री विमान पर तंज़ कसते हुए कहा था कि “जहाँ के मज़दूर हज़ारों किलोमीटर पैदल चलते हों और उनके प्रधानसेवक आठ हज़ार करोड़ के विमान से उड़ते हों, ये गर्व का नहीं शर्म का विषय है”.

11 अक्टूबर को ही सीपीआई ने स्टार प्रचारकों कि सूचि जारी की जिसमें JNU छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार सबसे ऊपर था. लेकिन बिहार चुनाव प्रचार में कन्हैया कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं.

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कन्हैया ने बिहार में नागरिकता शंशोधन कानून के खिलाफ फुलवारी समेत बिहार के अन्य हिस्सों में हुए विरोध प्रदर्शन में सक्रिय रूप से भाग लिया था. कन्हैया के चाहने वाले उनके बिहार चुनाव से गायब रहने पर आश्चर्यचकित हैं. कन्हैया ने बिहार चुनाव कि घोषणा होने के बाद रामविलास पासवान के देहांत से लेकर TRP घोटाला, भाजपा कि नफरत कि राजनीति और प्रधानमंत्री के विमान तक पर अपने वक्तव्य दिए लेकिन बिहार चुनाव पर हाल में उन्होंने कुछ भी नहीं कहा है.

अब सवाल उठ रहे हैं कि कन्हैया बिहार चुनाव प्रचार से क्यूँ गायब हैं ? बिहार कि राजनीतिक गलियारों में चर्चा चल रही है कि कन्हैया तेजस्वी कि वजह से गायब हैं.

दरअसल राष्ट्रीय जनता दल नेता तेजस्वी यादव अब महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार हैं. तेजस्वी बिहार में सफलतापूर्वक माहौल बना रहे हैं, पिछले तीन महीनों में ही उन्होंने NDA कि संभावित जीत को अब अतिसंभावित हार में बदल दिया है. उनकी चुनावी सभाओं में अब जनसैलाब उमड़ रहा है.

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राज्य के सियासी एवं मीडिया के लोगों कि अनौपचारिक चर्चाओं में ऐसा कहा जा रहा है किसी और पोपुलर चेहरा जैसे कन्हैया कुमार कि बिहार के चुनावी प्रचार में मौजूदगी एवं भाषणों का विरोधी प्रोपगंडा करने के लिए इस्तेमाल कर सकते थे. बिहार के मीडिया के कुछ हलकों द्वारा तेजस्वी और कन्हैया कि तुलना कि जा सकती थी जिससे महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं होने का मेसेज जाता. इसलिए कन्हैया कुमार बिहार चुनाव प्रचार से दूरी बनाये हुए हैं.

दिप्रिंट हिंदी (The Print) के महेंद्र यादव ने अपने लेख में लिखा ” ताजा माहौल को देखते हुए आरजेडी के पक्ष में जिस तरह का माहौल बना दिखता है. उसमें कन्हैया के भाषणों के कथ्य में बदलाव ऐसी आशंका पैदा करता है कि वो आरजेडी को इतना मजबूत भी नहीं देखना चाहते कि उसे सीपीआई की जरूरत न रहे”.

कन्हैया ने इसी साल सितम्बर महीने में BBC को दिए इंटरव्यू में कहा था कि मैं बिहार विधान सभा चुनाव नहीं लड़ रहा हूँ. मुझे ज़िम्मेदारी मिलेगी तो निभाऊंगा”. “उन्होंने कहा था कि नयी पीड़ी में सिर्फ कुछ चेहरे नहीं हैं. मेरे लिए राजनीति में चेहरे से ज्यादा मुद्दा महत्वपूर्ण है”. उन्होंने यह भी कहा कि देश एवं बिहार राज्य को भाजपा से बचाने के लिए सेक्युलर पार्टियाँ और वाम दल साथ मिलकर काम करेंगी.

महागठबंधन में सीट बटवारे के तहत सीपीआई को 6 सीटें दी गयी वहीं राजद को 144, कांग्रेस को 70 और अन्य वाम दलों को 23 सीटें दी गयी थी.

इसी साल के अगस्त महीने में राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा था कि तेजस्वी यादव बिहार के सबसे बड़े नेता हैं और इस शर्त पर जो भी आयेगा उसका स्वागत होगा. इस बयान से यह साफ़ हो गया कि दोनों नेता एक मंच पर होंगे ऐसा होने कि सम्भावना नहीं है.

बिहार चुनाव शुरू होने में एक हफ्ते शेष हैं लेकिन सीपीआई के लोकप्रिय नेता महागठबंधन के पक्ष में चुनाव प्रचार और जनसंपर्क से दूरी बनाये हुए हैं. उन्होंने किसी महागठबंधन उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार अब तक नहीं किया है. कन्हैया बिहार में काफी लोकप्रिय हैं, 2019 लोक सभा चुनाव के समय बिहार के बेगुसराय सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन भाजपा नेता गिरिराज सिंह से वह हार गए थे. इसके बाद एंटी-CAA प्रोटेस्ट से उन्होंने बिहार कि राजनीति में वापसी की थी.

हालाकि सीपीआई नेता अभी इसपर कुछ कहने से परहेज़ कर रहे हैं. भाकपा ने 11 अक्टूबर को ही बिहार विधान सभा चुनाव के लिए अपने 30 स्टार प्रचारकों की सूची रविवार को जारी की। पार्टी महासचिव डी. राजा, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य व जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और राज्य सचिव रामनरेश पाण्डेय जैसे नाम शामिल हैं.

 

By Editor


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