भारत की विदुषियाँ पुरुषों से मुक्ति की नहीं बल्कि प्रकृति और संस्कृति की कहानी लिखती हैं : मृदुला सिन्हा
भारत की १०० विदुषियों का एक साथ सम्मान कर बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन ने इतिहास रचा
साहित्य सम्मेलन के शतीवर्ष में आयोजित हुआ शताब्दी–सम्मान समारोह और राष्ट्रीय कवयित्री–सम्मेलन
छायावाद काल की सुप्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा की जयंती पर उन्हें दी गई काव्यांजलि
पटना,२६ मार्च । बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने, भारत वर्ष के सभी प्रांतों से विदुषियों को एक साथ बुलाकर और उन्हें शताब्दी–सम्मान से विभूषित कर एक इतिहास रचा है। देश भर से आई विदुषियाँ जब यहाँ से लौट कर अपने प्रांत जाएँगी तो हिन्दी के उन्नयन में और भी अधिक ऊर्जा से आर्य करेंगी। आज का यह समारोह भविष्य में हिन्दी के लिए कार्य कर रही महिलाओं के लिए एक उत्सव के रूप में मनाया जाएगा।
यह बातें आज यहाँ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के शतीवर्ष में, हिन्दी की महान कवयित्री महादेवी वर्मा की जयंती पर, आयोजित शताब्दी–सम्मान समारोह का उद्घाटन करती हुई,गोवा की राज्यपाल और विदुषी साहित्यकार डा मृदुला सिन्हा ने कही। राज्यपाल ने कहा कि भारत की विदुषियों का सम्मान वस्तुतः भारत की उस उच्च परंपरा का सम्मान है,जिसमें स्त्रियों को प्रथम–पूज्या माना जाता रहा है। उन्होंने कहा कि, भारत की विदुषियाँ पुरुषों से मुक्ति की नहीं बल्कि प्रकृति और संस्कृति की कहानी लिखती हैं। उन्होंने अनेक लोक–गीतों के माध्यम से भारतीय नारी–मन के विविध भावों का लालित्यपूर्ण व्याख्या की। उन्होंने साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की भूरि भूरि प्रशंसा की तथा इस भव्य आयोजन की सफलता के लिए बधाई देते हुए, उन्हें साहित्यिकों के एक बड़े समाज के साथ गोवा आने का निमंत्रण दिया। इसके पूर्व उन्होंने अंडमान निकोबार से जम्मू–कश्मीर तक और उत्तर–पूर्व से लेकर पश्चिम तक, संपूर्ण भारत वर्ष से चुनी गई १०० विदुषियों को ‘साहित्य सम्मेलन शताब्दी–सम्मान से विभूषित किया। विदुषियों का प्रथम सम्मान गोवा के राज्यपाल मृदुला सिन्हा को दिया गया। सम्मेलन अध्यक्ष डा सुलभ ने उन्हें वंदन–वस्त्र एवं प्रशस्ति–पत्र देकर सम्मानित किया।
समारोह की मुख्य अतिथि और उच्चतम न्यायालय की अवकाश प्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्र ने कहा कि, साहित्य का प्रभाव हमारे जीवन के हर एक मूल्य पर पड़ता है। यह मानव जीवन को दिशा और रूप प्रदान करता है। विदुषियों का सम्मान अपनी अस्मिता के प्रति आदर प्रकट करना है। साहित्य का यह एक बड़ा कार्य है, जो साहित्य सम्मान ने किया है।
अपने अध्यक्षीय उद्गार में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन अपनी स्थापना के शतीवर्ष में, भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी को भारत की सरकार की राजकीय भाषा का वास्तविक अधिकार सुनिश्चित हो, इसके लिए पूरे देश में नव–जागरण का ध्वज लेकर घूमेगा। इसी महान उद्देश्य के लिए आज का उत्सव आयोजित हुआ। हमने इस आयोजन के माध्यम से देश को एक सूत्र में जोड़ा है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि, देश की ये विदुषियाँ, जो शक्ति–स्वरूपा हैं,इस महान उद्देश्य में हमारी सुदृढ़ सहायिका सिद्ध होंगी।
इस अवसर पर, वरिष्ठ साहित्यकार मृदुला गर्ग,चित्रा मुद्गल,ममता कालिया, डा शेषा रत्नम, डा अहिल्या मिश्र, शांति सुमन, शेफालिका वर्मा, डा अनामिका,डा राजलक्ष्मी कृष्णन ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने किया। मंच का संचालन डा शंकर प्रसाद ने तथा डा भूपेन्द्र कलसी ने किया।
उद्घाटन सत्र के पश्चात भव्य राष्ट्रीय कवयित्री–सम्मेलन संपन्न हुआ, जिसमें सम्मानित सभी विदुषियों ने अपनी भावपूर्ण कविताओं से श्रोताओं को भाव–विभोर कर दिया। आज का पूरा दिन कवयित्रियों की महनीय चेतना का साक्षी रहा। पूरा परिसर कोमल और मृदु स्वरों से दिन भर गुंजायमान रहा। गीत और ग़ज़ल की सरिता बहती रही। तीन सौ से अधिक लोग इस ऐतिहासिक समारोह के साक्षी बने।