बिहार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का यह नकारापन है या दुर्भावना! कहना मुश्किल है, पर हकीकत यह है कि इस वर्ष एक भी बेरोजगार को भी कर्ज नहीं मिला. हद यह है कि पिछले वर्ष कुल लक्षय का केवल 6.5 प्रतिशत अल्पसंख्यक बेरोजगारों को कर्ज मिला.
ऐसा नहीं है कि विभाग के पास फंड नहीं है. सच्चाई यह है कि उसकी झोली में 100 करोड़ रुपये पड़े हैं. गौरतलब है कि अल्पसंख्यक वित्त निगम बिहार के अल्पसंख्यक बेरोजगार युवकों के स्वरोजगार के लिए कर्ज मुहैया करता है.
दैनिक अखबार प्रभात खबर ने अपने पड़ताल में यह खबर छापी है. अखबार ने लिखा है कि बिहार विकास मिशन ने 26 सितंबर को सभी विभागों की समीक्षा की थी. इसमें अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की भी बारी आयी. इसमें प्रदर्शन निराशाजनक मिला. मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक रोजगार ऋण योजना की प्रगति की समीक्षा में पाया गया कि वर्ष 2016-17 में सात हजार का लक्ष्य था. इसमें 460 आवेदकों को ही रोजगार ऋण योजना से लाभान्वित किया गया है. वर्ष 2017-18 में किसी को भी लाभान्वित नहीं किया गया है. तीन नवंबर तक भी स्थिति यही मिली है. लोन देने का खाता तक नहीं खुल सका है. यह भी जानकारी मिली है कि इस वित्तीय वर्ष के लिये सरकार ने सौ करोड़ रुपये आवंटित किये हैं. इस योजना के तहत एक से पांच लाख रुपये तक का ऋण दिया जाता है.
अखबार ने लिखा है कि मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक रोजगार ऋण योजना की प्रगति की नब्ज टटोली गयी तो निराशा हाथ लगी है. हालांकि, इसको लेकर अल्पसंख्यक विभाग के मंत्री खुर्शीद अहमद गंभीर हैं. उन्होंने पिछले हफ्ते ही बैठक करके ऋण वितरण में तेजी लाने के निर्देश दिये थे. साथ ही, यह भी कहा था कि हर स्तर से छानबीन जरूर कर ली जाये, ताकि अंतिम व्यक्ति तक लाभ पहुंच सके. वर्ष 2017-18 में किसी को भी लाभान्वित नहीं किया गया है.
अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के मंत्री इस मामले में लीपापोती करते दिख रहे हैं. उन्होंने प्रबात खबर को बताया है कि अधिकारियों को कैंप लगा कर कर्ज वितरित करने को कहा गया है. लेकिन पिछले वर्ष के आंकड़े उनकी बातों को खुद नकारते हैं. पिछले वर्ष यानी 2016-17 में 70000 अल्पसंख्यक बेरोजगारों को पांच लाख रुपये तक कर्ज देना था जबकि विभाग ने महज 460 लोगों को ही कर्ज वितरित किया. यह संख्या कुल लक्ष्य का महज 6.5 प्रतिशत है.