बात सिर्फ उपेंद्र कुशवाहा की नहीं है, बल्कि बिहार में भाजपा ने अपने सभी सहयोगियों की कब्र खोद दी है। अब तक जो रिपोर्ट मिल रही है, उसके अनुसार जहां-जहां भाजपा के सहयोगी चुनाव लड़ रहे हैं, वहां-वहां भाजपा समर्थक उस तरह सक्रिय नहीं दिख रहे हैं, जैसे वे अपनी सीटों पर सक्रिय रहते हैं। काराकाट में भाजपा समर्थक जनाधार पहले दिन से ही पवन सिंह के साथ दिख रहा है। अब खबर है कि हाजीपुर में, जहां लोजपा के चिराग पासवान चुनाव लड़ रहे हैं, वहां भी भाजपा समर्थकों ने बेरुखी और सुस्ती दिखाई है। तेजस्वी यादव ने कहा कि भाजपा ने चिराग पासवान के साथ खेला कर दिया है।
पूर्णिया में भाजपा समर्थकों के पप्पू यादव को समर्थन देने के मामले सामने आए थे। गया में हम के संरक्षक जीतनराम मांझी की सीट भी फंसी हुई है। वहां भी कहा जा रहा है कि भाजपा ने मन से मांझी के लिए काम नहीं किया।
तमाम राजनीतिक विश्लेषकों में इस बात पर सहमति है कि बिहार में भाजपा को कम नुकसान होगा और उसके सहयोगियों को ज्यादा नुकसान होगा। उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान, मांझी के साथ ही नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को भी कई सीटों पर नुकसान हो सकता है। इस आकलन के पीछे प्रमुख कारण भाजपा समर्थकों का मन से काम नहीं करना बताया जाता है।
चिराग पासवान की लोजपा के पांच प्रत्याशी हैं। जमुई, खगड़िया, समस्तीपुर, हाजीपुर तथा वैशाली में लोजपा के प्रत्याशी हैं। हाजीपुर को छोड़ कर सारी सीटें फंसी हुई मानी जा रही थी। अब मतदान के बाद हाजीपुर से भी खबर आ रही है कि खुद चिराग पासवान भी फंसे हुए हैं। हाल यह है कि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के तीन दलों का अस्तित्व ही संकट में है। जदयू 16 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। जदयू को भारी नुकसान का कयास लगाया जा रहा है।
एनडीए के छोटे दलों के संकट का अंदाजा पहले भी था। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा पहले की कह चुके हैं कि देश से क्षेत्रीय दल समाप्त हो जाएंगे। उनकी भविष्यवाणी बिहार में बहुत हद तक सच साबित होती दिख रही है।
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शेरनी की तरह भाजपा के षडयंत्र से लड़ रही कल्पना : प्रियंका
एनडीए के दलों में आपसी समन्वय का अभाव अब खुल कर सामने आ गया है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ पटना में रोड के बाद अब तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री एक साथ एक मंच पर नहीं दिखे हैं। इस बीच गृहमंत्री अमित शाह भी बिहार का दौरा कर चुके हैं, लेकिन वे न तो मुख्यमंत्री से मिले और न ही संयुक्त सभाएं कीं। भाजपा और जदयू के बीच बढ़ती दूरी पटना के राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बन गया है। अब तो चर्चा चह भी हो रही है कि लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार एक बार फिर से पलट सकते हैं।