आप चाहें तो आज ( 13 जुलाई) बिहार के तमाम दिग्गज हिंदी अखबारों के पन्नों को पलट लें. अमित शाह व भाजपा की खबरों से अखबार पटे पड़े हैं. पर अगर कोई अखबारों से गायब है तो वह बिहार के मुख्य विपक्षी दल राजद व उसके नेता तेजस्वी यादव हैं.
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम[/author]
पत्रकरिता की साधारण समझ रखने वाला आम पत्रकार भी जानता है कि जब किसी दल का बड़ा कार्यक्रम होता है तो उस पर विपक्ष की प्रतिक्रिया जरूर छापी जाती है. लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बहुचर्चित बिहार दौरे पर बिहार के अखबारों ने जो अपना रंग दिखाया है वह पत्रकारिता के इस मौलिक सिद्धांत की धज्जी उड़ाने जैसा है. प्रभात खबर, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान और दैनिक भास्कर समेत तमाम बड़े अखबारों ने अमित शाह की खबर मुख्य पेज के अलावा अंदर के पेजों पर भी बहुरंगी चित्रों के साथ छापी है. ऐसा कोई अखबार नही जिसने भाजपा के इस आयोजन की चार से पांच खबरें नहीं छापी हों. लेकिन इन में से किसी भी अखबार ने भाजपा के इस आयोजन पर मुख्य विपक्षी दल( जो हकीकत में विधान सभा की सबसे बड़ी पार्टी है) के विधायक दल के नेता तेजस्वी यादव को कम्पलीटली वाइप आउट कर दिया है. इससे बेहतर पत्रकारिता तो उर्दू अखबारों ने की है जिसने राजद के कुछ नेताओं के बयान छापे हैं.
तेजस्वी के साथ अखबार के व्यवहार का नमूना
मुख्य विपक्षी दलों के प्रति अखबारों के रवैये की एक और बानगी चिंताजनक है. अमित शाह के दौरे के पहले तेजस्वी ने उन पर व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर एक व्यंग्यातमक टिप्पणी सोशल मीडिया पर की थी. बाद में इस टिप्पणी को उन्होंने अपने व्हाट्सऐप ग्रूप में शेयर की थी. ताकि राजद कवर करने वालों तक उनकी यह टिप्पणी पहुंच जाये. लेकिन किसी अखबार ने उनकी इस टिप्पणी को भी प्रकाशित नहीं किया. हद तो तब हो गयी जब फेसबुक पर छपी इस टिप्पणी के खिलाफ जदयू के एक प्रवक्ता की प्रतिक्रिया को एक अखबार ने छाप दी. यानी, तेजस्वी का बयान नहीं छापा गया, पर उनके बयान पर जदयू की प्रतिक्रिया छप गयी. सोचने की बात है कि जब एक आम पाठक इस प्रतिक्रिया को पढ़ रहा होगा तो उसे क्या समझ आयेगा कि तेजस्वी के किस बयान पर यह पत्रिक्रिया छपी?
अखबारों के इस रवैये पर राष्ट्रीय जनता दल ने कई बार अपनी नाराजगी दिखाई भी है. राजद के ऑफिसियल ट्विटर हैंडल से ऐसी पत्रकारिता पर क्षोभ भी जताया गया है और कटाक्ष भी किया गया है. लेकिन इसका कोई असर नही दिखता. पटना में आयोजित होने वाले भाजपा के इस कार्यक्रम को बिहार के कोने-कोने में पहुंचाने की भूमिका अखबारों ने निभाई है. इसस स्वाभाविक तौर पर भाजपा के, सुदूर इलाकों के समर्थकों का आत्मबल व उत्साह बढ़ा है. पर इस आयोजन के पर राजद की प्रतिक्रिया जानने की इच्छुक उसके लाखों समर्थकों को घोर मायूसी इसलिए हुई है क्योंकि उसे पता भी नहीं चला कि उसके नेता का, भाजपा के इस आयोजन पर क्या रियक्शन है.
दर असल राजद के अनदरुनूी सूत्रों का स्पष्ट मानना है कि बिहार में उसकी चुनौती भाजपा से नहीं, बल्कि हिंदी अखबारों से है. राजद के एक मीडिया कम्पेन से जुड़े एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नौकरशाही डॉट कॉम को बताया कि पिछले कुछ महीनों में हुए उप चुनाव में राजद ने भाजपा गठबंधन को कूटृ-कूट कर पटका है. इससे भाजपा खेमे में राजद की बढ़ती लोकप्रियता से घबराहट है. इसकी खीज वे मीडिया के माध्यम से निकालने में लगे हैं. हमारे नेता तेजस्वी यादव की, अमित शाह की यात्रा पर ,कोई प्रतिक्रिया ना छापना इस बात का साफ प्रमाण है.
तो कैसे मैनेज होते हैं अखबार
एक अखबार के बड़े पत्रकार ने नौकरशाही डॉट कॉम को बताया है कि अखबार ऊपर से मैनेज कर लिये जाते हैं. उसमें पत्रकारों की भूमिका बहुत सीमित होती है. पत्रकार अपने बीट की खबर डेस्क को देते हैं. लेकिन इसके छपने की जिम्मेदारी ऊपर की होती है. ऊपर क्या तय हुआ रहता है यह पत्रकारों को तब ही पता चलता है जब उनकी खबर नहीं छप पाती.