आज बिहार विधान सभा के मॉनसून सत्र के पहले दिन हम विधानमंडल परिसर पहुंचे तो दोनों सदनों की कार्यवाही समाप्त हो चुकी थी और बैठक सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी गयी थी। अधिकतर विधायक प्रस्थान कर चुके थे और कुछेक विधायक ही लॉबियों में नजर आ रहे थे। लेकिन हमारी नजर विपक्षी बारात का ‘दूल्हा’ तलाश रही थी।
प्रेस रूम में पहुंचे तो हमसे पत्रकार मित्र से पूछा- तेजस्वी यादव आए थे। जबाव मिला- नहीं।
—- वीरेंद्र यादव ——–
अब सवाल यह था कि लोकसभा चुनाव में पराजय के बाद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ‘गायब’ हैं तो कहां। राजद नेताओं को भी उम्मीद थी कि 28 जून से शुरू हो रहे मॉनसून सत्र में भाग लेने नेता जरूर ‘अवतरित’ होंगे। लेकिन आज भी दर्शन नहीं हुए। विधान मंडल के विभिन्न लॉबियों में घुम-घुम कर हम विधायकों से यही जानने की कोशिश कर रहे थे विधान सभा में सबसे बड़ी पार्टी का नेता राजनीतिक रूप से इतना ‘बौना’ क्यों हो गया है कि विधान सभा का सत्र का सामना करने को तैयार नहीं है। जितनी मुंह उतनी बात। राजद वाले तो मुंह खोलने को तैयार नहीं और सत्तारूढ़ दल वाले ‘विपक्षी नौटंकी’ का मजाक उड़ाते रहे।
पार्टियां और नेता ही क्यों, नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी भी तेजस्वी यादव का इंतजार करती रही, लेकिन नहीं आया कुर्सी पर बैठने वाला। खाली पड़ी रही कुर्सी। विपक्ष का हौसला ही पस्त था। सत्र का पहला दिन होने के कारण सदन में हंगामे की कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन विपक्ष सदन में पहली बार ‘सदमे’ में नजर आया। हर चेहरा नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी की ओर देख कर मायूस नजर आ रहा था। ठीक वैसे ही जैसे बारात से दूल्हा भाग जाये और बाराती अलबलाने लगें।
उधर, सदन की कार्यवाही स्थगित होने के बाद सीएम चैंबर में नीतीश कुमार के ‘मीडिया दरबार’ में शामिल लोग खबरों से ज्यादा लोग सीएम का चेहरा पढ़ रहे थे। धारा 370 से लेकर डबल इंजन की सरकार पर चर्चा हुई। सीएम कुछ खबर दे रहे थे और पत्रकार भी सूचनाएं साझा कर रहे थे। विधानसभा परिसर में बयानों का दौर भी जारी रहा। आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे। चमकी बुखार को लेकर राबड़ी देवी ने सीएम से नैतिक आधार पर इस्तीफे की मांग भी कर दी। लेकिन इतना तय है कि विपक्ष मुद्दों पर बहस के बजाये हंगामे को मुद्दा बनाता रहा तो सरकार को घेरने का मंसूबा पूरा नहीं होगा।