शाहबाज़ की कवर स्टोरी

बड़ी खबर यह है की सीटों को लेकर NDA (National Democratic Alliance) खेमे में तनातनी चल रही है। दोनों प्रमुख दल जदयू और बीजेपी शक्ति संतुलन की नीति अपना रही है।

राज्य के सियासी गलियारों में आजकल NDA खेमे के दो प्रमुख दल जदयू और बीजेपी के बीच सीट बटवारे की वजहकर चल रही तनातनी कीकाफी चर्चा है. इस बीच अक्टूबर नवंबर में होने वाले विधान सभा चुनावो से पहले जदयू और बीजेपी में मतभेद खुलकर सामने आ गए गए है। गठबंधन में आंतरिक खींचतान के संकेत तब सामने आया जब जदयू ने यह साफ़ कर दिया की वह बडे भाई के तमगे के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहती। पार्टी में 6 राजद से जीते विधायक आने के बाद बाहरी नेताओं के आने से पार्टी के अंदर के नेताओं को टिकट मिलना मुश्किल हो गया है। वही बीजेपी उन सभी सीटों पर जीतना चाहती है जहा वह 2015 में हार गयी थी।

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष BJP के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने ने जेडीयू के इस कदम का विरोध करते हुए कहा की हमारे पास पर्याप्त संख्या में अच्छे उम्मीदवार हैं. इसलिए हमें चुनाव लड़ने के लिए आउट साइडर्स की जरूरत नहीं है. हम किसी बाहरी व्यक्ति का प्रचार नहीं करने जा रहे हैं.

क्या बिहार में नीतीश की पिछलग्गू ही बनी रहेगी बीजेपी ?

जिन छह राजद से जीते विधायकों ने जदयू का दामन थमा है उनमे तेज प्रताप यादव के ससुर रह चुके चन्द्रिका राय है जो परसा से राजद के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते। इस सीट से लोजपा के छोटे लाल दुसरे नंबर पर रहे थे। फ़राज़ फातमी केवटी सीट से जीते वहा पर बीजेपी के अशोक यादव दुसरे नंबर पर रहे थे। राज्यवर्धन चाँद, महेश्वर यादव,प्रेमा चौधरी,डॉ अशोक कुमार क्रमशः पालीगंज,गायघाट,पातेपुर और सासाराम से राजद की तरफ से जीते थे और अब इन्होने खेमा बदल कर जदयू का दामन थमा है। बाकी पांच सीटों पर बीजेपी के रामजनम शर्मा,वीणा देवी, महेंद्र बैठा और जवाहर प्रसाद दुसरे नंबर पर रहे थे।

वहीं चिराग पासवान और उनकी हालिया रूख को देखते हुए ऐसा नहीं लगता की एलजेपी के परसा सीट पर अपना दावा छोड़ेगी। लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान कई मौकों पर नीतीश कुमार पर निशाना साध कर प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहे है। जिसके कारण भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को बयान देना पड़ा की भारतीय जनता पार्टी नीतीश कुमार के चेहरे के साथ ही चुनावी मैदान में उतरेगी एवं NDA के सभी प्रमुख दलों बीजेपी,जदयू और लोजपा का इसमें साथ रहना ज़रूरी है।

जानिये क्या है NDA खेमे की अंदरूनी शक्ति संतुलन की नीति और जदयू क्यों बिहार में बने रहना चाहती है बड़ा भाई
जदयू शक्ति संतुलन बनाये रखने के लिए एनडीए में रहते हुए भी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बने रहना चाहती है. वही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने अगले कार्यकाल पर नजर जमाये हुए हैं. राजनीतिक जानकार मानते है की जदयू अंदर ही अंदर चाहती है की बीजेपी 2015 चुनाव की तरह काम असरदार रहे ताकि वह नीतीश कुमार को चुनौती पेश करने की स्थिति में न रहे. इसे जदयू के शक्ति संतुलन की नीति कहना गलत नहीं होगा। बीजेपी भी राज्य में लम्बे समय से सत्ता में भागिदार रही है इसलिए वह भी बिहार में अपने पैर और भी मज़बूत करने पर बल दे रही है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने तो यहाँ तक कह दिया की वह चुनाव में किसी भी बाहरी व्यक्ति के लिए प्रचार नहीं करेगी। इस से यह साफ़ ज़ाहिर होता है की जदयू एवं भाजपा एक दुसरे को लेकर अंदरूनी रूप से सशंकित है।

बीजेपी क्यों है जदयू को लेकर शशंकित

दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव 2010 में जेडीयू ने 141 और बीजेपी ने 102 सीटों पर चुनाव लड़ा था. जिसमे जदयू को 115 और भारतीय जनता पार्टी को 91 सीटों पर जीती मिली थी। वही 2005 के चुनावों में जेडीयू ने 139 और बीजेपी ने 102 सीटों से चुनाव लड़ा था और क्रमशः 88 और 55 सीटों पर जीत हासिल की थी. बीजेपी इन 102 सीटों को अपना मान रही है और उसी के अनुरूप अपनी चुनावी नीतियों को संचालित कर रही है। लेकिन जदयू के द्वारा राजद के छह विधायकों को मिलाने से तनातनी शरू हुई है। जानकार बताते है की NDA खेमे में अंदरूनी शक्ति संतुलन की नीति नयी नहीं है। बिहार में जदयू एवं भाजपा एक दुसरे को लेकर शशंकित दिखाई देते है।

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2015 में चुनाव में NDA खेमे ने क्या पाया क्या खोया

साल 2015 के बिहार इलेक्शन में बीजेपी ने 157 सीटों पर, एलजेपी ने 42 सीटों पर, आरएलएसपी ने 23 सीटों पर और एचएएम ने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा था. चुनाव में जहां बीजेपी 53 सीटों से जीती, वहीं एलजेपी और आरएलएसपी ने दो-दो सीटों से जीत हासिल की थी जबकि एचएएम केवल एक सीट जीत सकी. हम (HAM) पार्टी के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने दो सीटों- गया और इमामगंज से चुनाव लड़ा था लेकिन गया सीट से हार गए थे. इस बार बीजेपी उन सीटों पर भी जीतना चाहती है जो वह 2015 में हार गयी थी।

जीतनराम मांझी का क्या होगा ?

जीतन राम मांझी महागठबंधन छोड़ चुके है और जदयू का दामन थम लिया है । अगर मांझी ज़्यादा सीटें देने की शर्त पर NDA में शामिल होते है तो ऐसी परिस्थितियों में बीजेपी को ऐसी सीटों पर समझौता करना होगा। मांझी की पार्टी 2015 विधान सभा चुनावो में 21 में से सिर्फ 1 सीट पर जीत पायी थी।
ऐसे में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘अगर पुराने लोगों को दरकिनार किया जाता है और पार्टी के दलबदलुओं को पुरस्कृत किया जाता है, तो यह खतरनाक हो जाता है.

By Editor


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