भाजपा के खिलाफ खुलकर बोलने से क्यों बच रहे चिराग
लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान की आगे की रणनीति क्या होगी? वे अबतक भाजपा के खिलाफ खुलकर बोलने से क्यों बच रहे? इसकी तीन वजहें हो सकती हैं।
कुमार अनिल
चिराग पासवान की पार्टी लोजपा टूट गई। संसद में वे अकेले रह गए हैं। लोकसभा अध्यक्ष ने कुछ ही घंटे में चिराग के चाचा पशुपति पारस को लोकसभा में पार्टी का नेता मान लिया। पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न पर उनका अधिकार रहेगा या नहीं, इसपर भी संशय है। मामला चुनाव आयोग के पास है। उन्हें अपनी पार्टी और जनाधार बचाने के लिए पांच जुलाई से दौरा करना पड़ रहा है। इतना कुछ होने के बाद भी अबतक चिराग प्रधानमंत्री मोदी या भाजपा के खिलाफ खुलकर क्यों नहीं बोल रहे?
चिराग पासवान पार्टी में टूट के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर खुलकर हमला बोल रहे हैं। यहां तक कहा कि नीतीश कुमार मेरे पिता की राजनीतिक हत्या करना चाहते थे। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि खुद चिराग की राजनीतिक हत्या की कोशिश क्या नहीं हुई? हुई, तो वे खुलकर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ क्यों नहीं बोल रहे?
चिराग ने इशारों में बात की है। कहा कि नीतीश के खिलाफ अकेले लड़ने के बारे में पहले ही भाजपा नेताओं से पूरी बात हो गई थी। यह भी कहा कि एकतरफा प्रेम ज्यादा दिन नहीं रह सकता। चिराग भाजपा के बारे में अबतक बच-बचकर बोल रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ खुलकर नहीं बोलने के पीछे तीन वजहें हो सकती हैं। पहला और बड़ी वजह यह है कि चिराग ने आजतक कभी सामाजिक न्याय की लड़ाई नहीं लड़ी। इसके विपरीत 2016 में टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए वेशेष साक्षात्कार में चिराग ने कहा था कि संपन्न दलित आरक्षण का लाभ नहीं लें। वे आरक्षण उसी तरह छोड़ दें, जैसे संपन्न लोग गैस सब्सिडी छोड़ रहे हैं। आरक्षण के अलावा भी कोई ऐसा आंदोलन या अभियान उनके नाम नहीं है, जो सामाजिक न्याय के लिए हो।
दूसरी वजह यह है कि चिराग खुद संघ-भाजपा और मोदी की राजनीति के कायल रहे हैं। भाजपा के हिंदुत्व वाले एजेंडे के साथ रहे हैं। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का चिराग ने समर्थन किया था। रामविलास पासवान भी कह चुके हैं कि 2014 में एनडीए के साथ जाने का निर्णय चिराग का था। चिराग भाजपा की राजनीति से अंतरंगता महसूस करते रहे हैं। चिराग उस पूरी वैचारिकी से बाहर आने का तार्किक आधार खोज रहे हैं। इसके लिए शायद वे वक्त चाहते हैं। हालांकि आजकल रातोंरात कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने के उदाहरण भी हैं।
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अब चिराग के भाजपामुखी सारे सांसद उन्हें छोड़ कर जा चुके हैं। चिराग को नई शुरुआत करनी है। सांसदों का साथ छोड़कर जाना एक तरह से चिराग की नई राह के लिए बाधाओं का कम होना ही है।
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तीसरी वजह यह हो सकती है कि चिराग को अब भी प्रधानमंत्री मोदी से कोई उम्मीद बची हो। भाजपा नेताओं के साथ उनकी करीबी रही है। नीतीश के खिलाफ चुनाव लड़ने की रणनीति पर भाजपा की सहमति थे, यह चिराग कह चुके हैं। उन्हें शायद कोई उम्मीद दिखती हो कि भाजपा कोई बीच का रास्ता निकालेगी। हालांकि इस संभावना के साकार होने की उम्मीद कम है, पर राजनीति कोई स्थिर चीज तो नहीं है।