इर्शादुल हक, संपादक, नौकरशाही डॉट कॉम
वक़्फ़ के हथियार से बीजेपी ने क्षेत्रीय दलों को समाप्त करने के मिशन का पहला फेज पूरा कर लिया है। फिलवक्त इसका पहला मुकम्मल शिकार जदयू को बनना है।
वक़्फ़ कानून ने जदयू के अस्तित्व को भाजपा के पैरासाइट में बदल दिया है। अब भाजपा का क्षेत्रीय दलों को समाप्त करने के मिशन का पहला फेज पूरा हो गया। जदयू इसका पहला खुराक बन चुका है। यह महाराष्ट्र के शिवसेना को बर्बाद करने जैसा है।
जदयू ने मुसलमानों की कक़्फ़ जायदाद को भाजपा के हवाले करते हुए शायद यह सोचा भी न हो कि वह ऐसा करके खुद अपने अस्तित्व को भाजपा में समाहित कर रहा है।
मैं ऊपर वर्णित बात को दूसरे तरीके से कहना चाहता हूं। हिंदुत्व की आइडियोलॉजी की देश में फिलवक्त बस एक धारा है- आरएसएस। अगर कोई अन्य संगठन हिंदुत्व का पोषक बनने की चेष्टा करता है तो उसे अपने अस्तित्व को आरएएस में समाहित करना ही होगा। इस लिए आप विश्वास करना शुरू कीजिए कि 2025 के बाद जदयू नाम का ढांचा तो दिख जाएगा, पर संगठन शायद न दिखे।
वक़्फ़ कानून के फेवर में जा कर जदयू ने अघोषित रूप से घोषणा कर दी है कि उसे मुसलमानों का वोट नहीं मिलने वाला। इसकी नैया भाजपा के कोर वोटर्स से पार लगेगी।
ऐसे में अब जदयू का अगला कदम यह हो सकता है कि वह अगले चुनाव में मुस्लिमों को टिकट न के बराबर दे, मुस्लिम बहुलता वाले चंद सीट अपवाद हो सकती है।
ऐसे में जदयू के वो ओहदेदार जो मुसलमान हैं, उनकी क्या उपयोगिता होगी ?
वे अपने जमीर की दुत्कार और लताड़ सह लेंगे पर जदयू में बने रहेंगे। चंद बाज़ामीरों को छोड़ कर। आखिर सैयद मुख्तार नकवी व सैयद शाहनवाज़ भाजपा की जरूरत हैं कि नहीं ?