नीतीश को बेदखल करने के लिए चिराग के बाद अब मुकेश के बलि लेगी बीजेपी
चिराग पासवान को नीतीश कुमार के खिलाफ खड़ा कर भाजपा ने, चुनावपूर्व मिशन नीतीश पूरा कर लिया. अब चुनाव बाद के मिशन के लिए भाजपा ने मुकेश सहनी को बलि पर चढ़ाने की तैयारी की है?
भाजपा के दिल्ली नेतृत्व ने बड़ी चतुराई से मुकेश सहनी को अपने मकड़जाल में लिया. मुकेश सहनी की पार्टी को 11 सीटें एक झटके में देने के लिए क्यों तैयार हो गयी BJP ? जो 11 सीटें उन्हें दी जा रही हैं, उनमें अधिकतर पर भाजपा नेतृत्व के पसंदीदा प्रत्याशी खड़े किये जायेंगे.
चिराग पासवान को क्या इतनी हिम्मत हो सकती थी कि बिना भाजपा आलाकमान की शह के वह लगातार नीतीश कुमार पर हमला दर हमला करते. यह बात जदयू नेतृत्व को भी मालूम है. भाजपा तो पर्दे के पीछे है और थी ही. भाजपा के बहाने मिशन नीतीश में लगी थी. वह चिराग को आगे करके नीतीश को साधने के इस मिशन में कामयाब रही. जिसके तहत बिहार विधान सभा चुनाव में जदयू के पाले में 122 सीटें जा सकीं और भाजपा लगभग बराबर यानी 121 सीट झटकने में कामयाब रही. यह चिराग के कंधे पर बंदूक रख के चुनाव पूर्व मिशन था. इसमें भाजपा सफल रही.
जरा गौर से सोचिए. जिन नीतीश कुमार से सीट शेयरिंग के लिए एक-एक सीट पर महीनों माथापच्ची करने वाली भाजपा ने 48 घंटे में मुकेश सहनी की पार्टी को 11 सीटें एक झटके में देने के लिए क्यों तैयार हो गयी? वो भी, मुकेश सहनी के नेतृत्व वाली उस पार्टी को जिसे भरी सभा से बेआब्रू हो कर राजद गठबंधन छोड़ना पड़ा था. गठबंधन की सीट शेयरिंग घोषणा के लिए आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में तमाम पार्टियों की सीटों की संख्या घोषित कर दी गयी थी. लेकिन वीआईपी की नहीं की गयी. इसे मुकेश ने अपने खिलाफ साजिश बताया और प्रेस कांफ्रेंस से वाक आउट कर गये. गठबंधन छोड़ने का ऐलान कर दिया. उस घटना के बाद मुकेश बेबस हो गये. दूसरे दिन प्रेस कांफ्रेंस की और ऐलान किया कि वह तमाम 243 सीटों पर अकेल लड़ेंगे. लेकिन शाम होते-होते सारी बाजी पलट गयी. दिल्ली से भाजपा नेतृत्व का बुलावा आया. और फिर सियासत की नयी बिसात बिछ गयी.
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भाजपा के दिल्ली नेतृत्व ने बड़ी चतुराई से मुकेश सहनी को अपने मकड़जाल में लिया. उसने ऊपरी तौर पर मुकेश को न सिर्फ 11 सीटें आफर की बल्कि विधान परिषद की एक अतिरिक्त सीट भी गिफ्ट में दे दी. दोनों पार्टियों के बीच समझौते का जाहरी पक्ष है. इसलिए लोग अचंभित हैं कि आखिर भाजपा ने 11+1 पर सझौता क्यों कर लिया. कुछ विश्लेषक इस समझौते पर मुकेश सहनी को ‘गुड नेगोशिएटर’ घोषित कर रहे हैं. तो क्या भाजपा ने अपने खाते की सीटों को भगवान का प्रसाद समझ कर मुकेश को थमा दिया? नहीं. बिल्कुल नहीं.
दर असल भाजपाई नेतृत्व का निशान कहीं और है. मेरा आंकलन है कि भाजपा ने मुकेश सहनी को सीटें देने के बहाने बड़ा गेमप्लान तैयार किया है. उसने मुकेश को इस बात के लिए कंविंस किया कि वह खुद विधानसभा चुनाव न लड़ें. भविष्य में जब विधान परिषद का चुनाव होगा तो भाजपा उन्हें परिषद में भेज देगी. लेकिन जो 11 सीटें उन्हें दी जा रही हैं, उनमें अधिकतर पर भाजपा नेतृत्व के पसंदीदा प्रत्याशी खड़े किये जायेंगे. संभव यह भी है कि उन सीटों पर भाजपा के नेता, अपनी पार्टी से टिकट न मिलने का बहाना बना कर भाजपा छोडने का नाटकीय ऐलान करेंगे. फिर वीआईपी से टिकट लेंगे और चुनाव मैदान में कूद जायेंगे.
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कुछ ऐसी ही रणनीति भाजपा के नेता लोजपा के साथ अपना रहे हैं. भाजपा के कद्दावर नेता रामनरेश चौरसिया, ऊषा विद्यार्थी, इंदू कश्यप आदि को आलरेडी इस मिशन पर लगाया जा चुका है. ये नेता लोजपा ज्वाइन कर चुके हैं. चुनाव भी लड़ रहे हैं. इसी रणनीति के तहत वीआईपी पर काम होने की संभवाना है.
क्या है अंदर की रणनीति ?
तो सवाल यह है कि इस के पीछे की रणनीति क्या है. दर असल भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व;नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा ने बार बार कह रखा है कि नीतीश कुमार ही अगले मुख्यमंत्री होंगे. पर भाजपा-संघ की आंतिरक रणनीति कुछ और है. उसका मानना है कि नतीश के नेतृत्व में 15 साल काम किया जा चुका है. अब भाजपाक को नीतीश नामक वटवृक्ष की छाया से निकलना होगा. तभी भाजपा बिहार में प्रभावी हो सकेगी. यूपी जैसे बड़े राज्य में भाजपा अपने दम पर सरकार बनाती रही है. लेकिन हिंदी प्रदेशों में अकेल बिहार ही है जहां भाजपा अबतक पिछलग्गू बनी हुई है.
इसलिए नीतीश से पिंड छुड़ाने का यही उचित समय है. ऐसे में चुनाव के बाद भाजपा किसी और विकल्पिक रणीति पर काम कर रही है. उसके रणनीतिकार मानते हैं कि इस चुनाव में नीतीश के प्रित जनता में भारी नाराजगी है. उस नाराजगी को नीतीश के सर ही मढ़ा जाये. उनकी पार्टी को कम सीटें आने की स्थिति में फिर वीआईपी और लोजपा को आगे करके काम लिया जायेगा.
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चीराग पहले ही कह चुके हैं कि अगली बार चीफ मिनिस्टर भाजपा से होगा. कुछ ऐसे ही बयान मुकेश सहनी से दिलवाया जायेगा. सरकार बनाने में कुछ सीटें घटेंगी उसे भी मध्यप्रदेश ” फार्मुला ” पर निपटाया जायेगा. चूंकि वीआईपी और लोजपा में भाजपाई संस्कृति के प्रत्याशियों को पहले ही भेजा जा चुका रहेगा तो इस खेल में कोई दिक्कत भी नहीं होगी. और फिर नीतीश को मजबूर किया जायेगा कि वह मुख्यमंत्री बनने का दावा छोड़ दें.
आपको याद होगा कि 2005 से अब तक जनता दल यू के साथ गठबंधन में भाजपा नेतृत्व हर बार खुद को छोटा भाई स्वीकार करने में कभी गुरेज नहीं करते थे.
अब पता चला तेजस्वी ने मुकेश सहनी को क्यों ठिकाने लगाया ?