हमारे कई साथियों से फोन किया और बीपीएससी रिजल्ट को लेकर अपना पक्ष रखा। कुछ लोगों से मुलाकात भी हुई। उनका भी पक्ष सुना। लेकिन सबके पास मौखिक या जानकारी पर आधारित तर्क था, कोई दस्तावेज नहीं। बीपीएससी के परिणाम और उसमें में दिये तथ्यों के अलावा हमारे पास भी कोई दस्तावेज नहीं है।
फेसबुक पर अपलोड एक स्टोरी के संदर्भ में एक साथी ने कहा कि मैरिट लिस्ट में क्रमांक 2 वाले यादव जाति के हैं। इस पर हमने पूछा कि उनके नाम के आगे आरक्षण श्रेणी 1 क्यों लिखा हुआ है तो वे इसका जवाब नहीं दे पाये। यादव जाति के व्यक्ति के सामने आरक्षण कैटगरी 5 होना चाहिए। वस्तुस्थिति यह है कि आरक्षित श्रेणी की जाति वाला कोई उम्मीदवार आरक्षण का दावा नहीं करता है तो वह सामान्य श्रेणी में ही माना जाएगा। एक साथी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने एक आदेश में कहा है कि आरक्षित कोटे का विकल्प चुनने वाले का सामान्य श्रेणी में सेलेक्शन नहीं होगा। हालांकि इस संबंध में हमने कुछ वकीलों से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि इस तरह का कोई फैसला सर्वोच्च न्यायालय का नहीं है। यदि ऐसा होता तो सामान्य श्रेणी की सीट से कांटी विधान सभा क्षेत्र में पासी जाति के अशोक चौधरी चुनाव नहीं लड़ सकते थे। क्योंकि अनुसूचित जाति को नामांकन में ही आधी राशि की छूट मिलती है। अभी अशोक चौधरी विधायक हैं।
दरअसल, बीपीएससी में कटऑफ मार्क का विवाद इसलिए पैदा हुआ कि सवर्ण से ज्यादा पिछड़ी जाति का कटऑफ कैसे हो सकता है। उससे नीचे ही होना चाहिए। देखने से स्पष्ट रूप से भेदभाव नजर आता है। यदि बीपीएससी को इसमें कोई भेदभाव या गड़बड़ी नजर नहीं आती है तो इसका स्पष्टीकरण देना चाहिए। संभव है कि तकनीकी रूप से बीपीएससी सही हो और राजनीतिक दल इसकी गलत व्याख्या कर रहे हैं तो इस संदर्भ ज्यादा और आसान तरीके से समझाने का प्रयास करना चाहिए।