बसपा 19 से घटकर सिर्फ एक सीट पर रह गई, किधर जाएंगे दलित

यूपी में सपा भले ही सत्ता से दूर रह गई, लेकिन उसकी सीटें दोगुना से ज्यादा 140 के आसपास रहने की उम्मीद है, लेकिन बसपा 19 से घटकर सिर्फ एक पर सीट पर रह गई।

यूपी विधानसभा चुनाव परिणाम के ट्रेंड बता रहे हैं कि सीटें थोड़ी कम होने के बाद भी भाजपा अपने ‘राष्ट्रवाद और विकास’ के एजेंडे पर आगे बढ़ सकती है, समाजवादी पार्टी पहले से काफी मजबूत हुई है। 2017 में उसकी 52 सीटें थीं, इस बार उसके 140 सीटों के आसपास जीतने की संभावना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यूपी विपक्ष की इस बढ़ी हुई ताकत का असर सदन और सड़क पर देखेगा, लेकिन सबसे बड़ा सवाल बसपा को लेकर है। 2017 में उसने 19 सीटें जीती थीं। इस बार वह कभी एक, कभी दो सीटों पर आगे जाती दिख रही है। स्पष्ट है, बसपा को बहुत बड़ा झटका लगा है।

इसी के साथ यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि बसपा प्रमुख मायावती का दलित आधार, खासकर उनकी अपनी बिरादरी जाटव क्या करेंगे। यूपी में दलितों की बड़ी आबादी है। कुल 21 प्रतिशत वोटर दलित हैं, इनमें 11 प्रतिशत जाटव मतदाता माने जाते हैं। मायावती पिछले पांच वर्षों में कभी संघर्ष करती नहीं दिखीं। सवाल उठाने पर कहा जाता था कि मायवती सड़क पर संघर्ष नहीं करतीं, लेकिन फिर भी उनका समर्थक आधार उन्हीं के साथ रहता है। अब परिणाम कुछ और बता रहा है। तो नए सिरे से सवाल भी उठना लाजिमी है कि यूपी के दलित अब किधर जाएंगे।

यूपी के दलित भी सोचेंगे कि जब मायावती उनकी आवाज नहीं बन रहीं, तो उनकी आवाज कौन बन सकता है। क्या यूपी के दलित अब पूरी तरह भाजपा के हिंदुत्व के रंग में रंग जाएंगे। क्या सपा प्रमुख अखिलेश यादव अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए अब दलितों के सवाल पर भी मुखर होंगे या कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, जो लगातार दलितों के सवाल पर संघर्ष कर रही हैं, उनके साथ जाएंगे। या इन सबसे अलग चंद्रशेखर आजाद के साथ दलित जाना पसंद करेंगे।

मायावती का राजनीतिक संघर्ष से दूर रहना और फिर बसपा के एक या दो सीटों पर सिमट जाने पर इतना तय है कि यूपी की दलित राजनीति अब स्थिर नहीं रह सकती। पहले ही गैर जाटव वोटों में भाजपा सेंध लगा चुकी है। प्रियंका गांधी ने भी अपने लिए इस वर्ग में सकारात्मक छवि बना ली है। आगे के कुछ महीने निर्णायक साबित होंगे।

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By Editor


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