Caste Census पर नीतीश नीति:BJPऔर RJD दोनों से बार्गेनिंग
Caste Census पर क्या नीतीश NDA छोड़ेंगे और क्या तेजस्वी नीतीश को सीएम बना देंगे? यह खेल कहां तक पहुंचेगा. हक की बात में पढ़िये Irshadul Haque का आकलन.
जाति जनगणना ( Caste Census) जदयू-भाजपा के बीच तलवार खिचनी शुरू हो गयी है. कुछ सियासी पंडितों को लगने लगा है कि नीतीश, भाजपा से अलग होने का बहाना तलाश रहे हैं. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दे कर साफ कह दिया है कि जाति जनगणना नहीं होगी. फिर भी नीतीश अपने रुख पर अड़े हैं. उन्होंने सर्वदलीय बैठक बुला ली है. गोया राजद, वामपंथी,कांग्रेस व अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ भाजपा को इस बैठक में शामिल होना है. भाजपा छोड़ तमाम दल एक मत हैं कि जाति गणनना, अगर केंद्र नहीं कराता तो राज्य सरकार यह काम खुद करे. जाहिर है भाजपा इस बैठक में अलग-थलग होती जा रही है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार भाजपा गठबंधन से अलग हो जायेंगे?
इस सवाल का खूंटाठोक जवाब यह है कि अगर तेजस्वी यादव नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री स्वीकार कर लेते हैं तो नीतीश कुमार आसानी से भाजपा का दामन छोड़ देंगे. ऐसे में वह किसी भीक्षण महागठबंन में आ जायेंगे. लेकिन क्या राजद नेता तेजस्वी यादव उन्हें मुख्यमंत्री स्वीकारेंगे. यही वह साल है जिसे हथियार बना कर नीतीश कुमार, राष्ट्रीय जनता दल से जहां एक तरफ तोल-मोल की सियासत करेंगे, वहीं दूसरी तरफ राजद का भय दिखा कर भाजपा को नाको चना चबाने की राजनीति करेंगे.
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नीतीश इस मुद्दे पर किसी जल्दीबाजी में नहीं हैं.बार्गेंनिंग की यह सियासत लम्बी चलेगी. ऐसा इसलिए कि आने वाले समय में देश की सियासत के तीन बड़े पड़ावों पर नीतीश की सियासत की आधारशिला खड़ी होगी. सबसे पहला पड़ाव यूपी चुनाव का होगा. 2022 में वहां चुनाव होने हैं. अगर भाजपा यूपी हार जाती है तो नीतीश की सियासत और आक्रामक होगी. वह एनडीए में रह कर भी भाजपा का जीना दूभर करते रहेंगे. अगर भाजपा यूपी जीत जाती है तो भी नीतीश की सियासी बार्गेनिंग जारी रहेगी. लेकिन तब उनकी बार्गेनिंग राजद महागठबंधन से ज्यादा होगी.
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दूसरा पड़ाव 2024 का होगा. 2024 में लोकसभा चुनाव होना है. 2024 भाजपा के देश की सत्ता से बेदखली की लड़ाई होगी. तब नीतीश खुदकी पार्टी को इतनी शक्तिशाली बनाने पर काम करेंगे कि वह भाजपा के पक्ष और भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले दोनों गठबंधनों के लिए अपनी उपयोगिता साबित करना चाहेंगे.
नीतीश की यह सियासत 2025 के बिहार चुनाव तक खीच सकती है, बशर्ते कि इस बीच राष्ट्रीय जनता दल नीतीश को मुख्यमंत्री स्वीकारने या नकारने पर फैसला नहीं ले लेती. यह वह असली एजेंडा है जो नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच सह-मात का खेल बनेगा.
लेकिन होगा क्या
ऐसे में ये तमाम बातें तेजस्वी यादव पर निर्भर होगी कि वह क्या फैसला लेते हैं. अब तक तेजस्वी यादव का जो रुख रहा है उससे यह साफ है कि वह किसी भी हाल में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के रूप में सपोर्ट नहीं करेंगे. इसका उदाहरण पिछले दिनों तब सामने आया था जब राबड़ी देवी के हवाले से एक बयान आया था जिसमें यह कहा गया था कि नीतीश अपने दूत उनके पास भेज कर आग्रह कर चुके हैं कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री स्वीकार कर लिया जाये तो वह भाजपा छोड़ सकते हैं. लेकिन राजद ने उनकी इस डिमांड को सिरे से खारिज कर दिया था. लेकिन कहा जाता है कि सत्ता की सियासत में कुछ भी असंभव नहीं होता. नीतीश कुमार इसी उम्मीद से सियासत करने के लिए चर्चित रहे हैं.