बिहार विधानसभा की चुनाव प्रक्रिया चार महीने बाद सितंबर में शुरू हो जाएगी। इस बीच भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर हो चुका है और इसके बाद इसके बिहार चुनाव पर होने वाले असर को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। बिहार में एनडीए के घटक दलों जदयू, लोजपा तथा हम की चुप्पी पर भी सवाल उठ रहे हैं।
भारत-पाकिस्तान के बीच लोग सीजफायर के विरोधी नहीं है, लेकिन जिस प्रकार सीजफायर हुआ उसे लेकर आम लोगों में नाराजगी देखी जा रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के हस्तक्षेप को लेकर लोगों की नाराजगी देखी जा रही है। भारत इससे पहले किसी तीसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करता रहा है। यह साफ देखा जा रहा है कि अमेरिकी हस्तक्षेप की खबरों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में खासी कमी आई है। स्थिति यह है कि प्रधानमंत्री मोदी से ज्यादा चर्चा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हो रही है। उनके साहस, उनकी कूटनीति की चर्चा हो रही है, जिसके कारण दुनिया का नक्शा बदल गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहलगाम की घटना के दो दिन बाद मधुबनी में कहा था कि हमलावरों को ऐसी सजा मिलेगी, जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी। उन्होंने यह भी कहा था कि वे पृथ्वी के अंतिम छोर तक पीछा करके सजा देंगे। अब लोगों को लग रहा है कि भारत पर हमला करने वालों को वैसी सजा नहीं मिली, जैसी प्रधानमंत्री ने कही थी।
देश में पहली बार ऐसा हुआ कि पूरे विपक्ष ने कह दिया कि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में हम मोदी सरकार के साथ हैं। देश भी पूरा एकडुट था। हिंदू-मुस्लिम सभी समुदाय के लोग एकजुट होकर कार्रवाई की मांग कर रहे थे, लेकिन लोगों को लग रहा है कि जैसी कार्रवाई होनी चाहिए, वैसी नहीं हुई।
इस स्थिति में राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को और खासकर भाजपा को नुकसान हो सकता है। शायद इसी स्थिति को भांप कर बिहार के एनडीए के घटक दलों ने चुप्पी साध ली है।