गुजरात चुनाव सम्पन्न हो गये हैं. इस चुनाव में सत्ता भले ही जो पार्टी भी जीते पर जो इंस्टिच्युशन या व्यक्ति हारा है वह है चुनाव आयोग और उसके प्रमुख एक जोति.
नौकरशाही ब्यूरो
चुनाव आयोग की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि वह किसी भी चुनाव को निष्पक्षता से सम्पन्न कराये. इसी लिए उसे एक स्वायित्य इंस्टिच्युशन के रूप में सारी शक्तियां दी गयी हैं. किसी जमान में मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषण जैसे लोगों ने इस इंस्टिच्युशन के सम्मान को बढ़ाया. शेषण ने साबित कर दिया कि चुनाव आयोग किसी सरकार के सामने नहीं झुक सकता. बल्कि सरकारों को उसके निष्पक्ष कामों के प्रति सचेत रहना पड़ता है. लेकिन गुजरात चुनाव के दौरान, खास तौर पर आचार संहिता लागू होेने के बाद एके जोति जिसने तरह से काम किया है उससे न सिर्फ आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठे हैं बल्कि मुख्य चुनाव आयुक्त एके जोति की छवि और उनकी ईमानदारी पर गहरे सवाल उठे हैं.
सेकेंड फेज के चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद गुजरात के एक लोकल चैनल ने कांग्रेस के प्रेसिडेंट एलेक्ट राहुल गांदी का साक्षात्कार प्रसारित कर दिया. इसके बाद आयोग ने इसे गंभीरता से लिाया और राहुल पर एफआईआर ठोक दिया. ऐसी ही एफआईआर अन्य चार चैनलों पर की गयी कि क्यों उन्होंने राहुल का साक्षात्कार दिखाया. हालांकि चैनल द्वारा इंटर्व्यू लेना और उसे प्रसारित करने का फैसला लेना चैनल का होता है. लेकिन मान लिया जाये कि चैनल ने प्रसारित कर दिया तो इस पर राहुल की क्या जवाबदेही है. और अगर आयोग का यह तर्क है कि यह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है तो ऐसे उल्लंघन करने वाले तमाम लोगों पर कारर्वाई करने की जवाबदेही भी आयोग की है. दूसरे फेज के चुनाव के दिन नरेंद्र मोदी ने वोट डालने के बाद रोड शो का आयोजन कर दिया. वह कार के खुले दरवाजे लग कर खड़े हो गये और अपनी उंलगली पर लगी सियाही हजारों लोगों को दिखाते रहे, लोग मोदी मोदी के नारे लगाते रहे. उनके आसपास भाजपा का झंडा भी लहराता रहा. एक पीएम जब ऐसा करते हैं तो आयोग का चुप रहना और वहां मौजूद उसके अफसरों द्वारा कुछ न कहना क्या दर्शाता है? इस मुद्दे पर चुनाव आयोग की मीडिया में काफी फजीहत हुई और राहुल पर की गीयी कार्रवाई से इसकी तुलना की गयी तब जब कर आयोग की आंख खुली और उसने इस मामले की जांच को कहा.
पक्षपात की पराकाष्ठा
ऐसी अनेक घटनाये पिछले दो पखवाड़े में सामने आयी जिसके कारण आयोग के पक्षपात पर खूब शोरशराबा हुआ. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त एके जोति ने आयोग की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को तहसनहस कर दिया है. उन्हें पीएम नरेंद्र मोदी ने अपाहिज बना दिया है. सबसे पहले गुजरात के मुख्य सचिव के रूप में और फिर चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में मोदी ने उन्हें आपाहिज बना डाला. भूषण ने यह भी याद दिलाया है कि एके जोति के जीएसपीसी के चेयरमैन के रूप में 20 करोड़ के घपले पर सीएजी ने गंभीर सवाल उठाये.
इस मामले पर राजदीप सरदेसाई ने प्रतिक्रिया में पूछा है कि क्या कोई बता सकता है कि वोटिंग के दौरान चुनावी रैली करना सही है और राहुल द्वारा) साक्षात्कार देना कैसे गलत है? चुनाव के कुछ घंटे पहले भाजपा मेनोफेस्टो जारी करे तो यह ठीक है पर साक्षात्कार कैसे गलत है ?
एक जोती जबसे मुख्य आयुक्त बने हैं तबसे उनके फैसले विवादित भी रहे हैं. 2012 में इसी आयोग ने एक ही दिन गुजरात और हिमाचल चुनावों का नोटिफिकेशन जारी किया ता लेकिन इस बार जब 2017 में चुनाव हुए तो गुजरात के लिए अलग से डेट तय की गयी. कुछ लोगो ने आरोप लगाया कि यह पीएम के इशारों पर हुआ. इस समय भी जोती के फैसले की काफी आलोचना हुई. क्योंकि कुछ लोगों ने कहा कि आयोग ने भाजपा को इस बीच तैयारी का मौका दिया. गुजरात में चुनाव की तारीख की घोषणा को टाल दिया गया जिसके बाद गुजरात की रुपानी सरकार ने ग्यारह हजार करोड़ की घोषणायें कर डाली.
एके जोति 1975 बैच के आईएएस अफसर हैं. वह गुजरात में नरेंद्र मोदी के सीएम रहते उनसे करीब और उनके वफादार हुए. उन्होंने गुजरात के मुख्यसचिव के रूप में सेवायें दीं. बाद में वह जीएसपीसी के चैयरमैन बने और तब भी उनकी खूब बदनामी हुई. जुलाई 2017 में वह चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त बनाये गये.