इर्शादुल हक, संपादक, नौकरशाही डॉट कॉम
महाराष्ट्र की तरह बिहार की सियासत पर कब्जा करने की अमित शाह की भूख कम नहीं हो रही है. अभी नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखली के पेंच टाइट हैं. इसी बीच भाजपा पर, पिछले चंद महीनों से चिराग आंखें तरेर रहे हैं.
कभी वक्फ संशोधन विधेयक पर भाजपा की हेकड़ी निकाल कर तो कभी झारखंड चुनाव में शाह की बादशाहत को ललकार कर. और अब नीतीश से नजदीकियां बढ़ा कर.
यूं तो ईडी ने चिराग के खासमखास हुलास पांडेय के परिसरों पर छापेमारी की है, लेकिन यूं समझिये कि हुलास चिराग के दाहीने हाथ हैं. पूर्व एमएलसी हैं. उनके ठीकानों पर ईडी की छापेमारी बिरले छापेमारियों में से है. अमित शाह की ईडी अपने सहयोगियों पर तभी छापेमारी करता है जब सहयोगी को नाथने की कोशिश भाजपा करती है.
दर असल चिराग को वह दर्द खूब याद है जबकि पिता की मौत के बाद भाजपा ने उनके परिवार और पार्टी दोनों को तबाह कर दिया था. चाचा पारस को मिर्च की झाड़ पर चढाते हुए उन्हें तो मंत्री बनवा दिया, चिराग के अनेक सांसदों को तोड़ कर.
अब, जब वक्त ने करवट बदला है. मोदी सरकार कमजोर हुई है. तो चिराग ने भी बदला लेने की तर्ज पर आंखें दिखाने शुरू किये. चिराग वह हैं जिन्होंने वक्फ संशोधन बिल पर मोदी सरकार पर डायेरेक्ट हिट किया. नतीजतन वक्फ विधेयक गताल खाने में चला गया.
शाह की दूसरी पीड़ा यह है कि चिराग नीतीश के करीब होते जा रहें हैं. अगर सत्ता का सिंहासन हिला तो चिराग कुछ भी कर सकते हैं.
तो हुलास पांडेय पर छापेमारी को इसी आईने में देखनी की जरूरत है.
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मैं कत्तई नहीं कह रहा कि हुलास दूध के धुले हैं. बालू माफिया की सूची में उनका नाम है. ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या में उनका नाम उछल चुका है. पर ईडी, भाजपा के इशारे पर जैसी सेलेक्टिव कार्रवाई करती है तो उससे भाजपा की नियात कहां से दूध के धुली हो सकती है.
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