केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने यूं ही नहीं कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ वह जहर पीने को तैयार हैं. दर असल कॉलेजियम सिस्टम संविधान की धज्जी उड़ाने वाली अंग्रेजों की बनायी व्यवस्था है जिसके तहत जजों की नियुक्ति मनमाने ढंग से की जाती है.

[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2018/06/RAJENDRA.PRASAD.jpg” ]राजेंद्र प्रसाद, स्कॉलर व चिंतक[/author]

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 312 के तहत भारतीय न्यायिक सेवा के गठन का प्रावधान किया गया है जो उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा की तर्ज पर भारतीय न्यायिक सेवा के गठन का निदर्शे दिया गया है.यह प्रावधान सन् 1950 से लागू मूल संविधान मे है। लेकिन उसे आज तक लागू नहीं किया गया है।

 

उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश केवल सर्वोच्च न्यायालय के कुछ जजों की मर्जी पर संविधान के निर्देश के विपरीत सन् 1951 से ही नियुक्त होते आ रहे हैं. जजों की नियुक्ति के लिए भारतीय न्यायिक सेवा का गठन 68 सालों से टाले रहना संविधान की धज्जी उड़ाने जैसा है. चिंतित करने वाली बात यह है कि संविधान की यह धज्जी कोई नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट उड़ा रहा है. वही सुप्रीम कोर्ट जिस पर इस देश ने संविधान को मर्यादित ढ़ंग से लागू करन के लिए अधिकृत कर रखा है.  सुप्रीम कोर्ट के इस आचरण से यह साफ लगता है कि यहां लोकशाही नहीं राजशाही चलती है.

क्या है कॉलेजियम सिस्टम

दर असल सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही व्यवस्था को कॉलेजियम सिस्टम कहा जाता है. कॉलेजियम सिस्टम द्वारा जजों की नियुक्ति खुद जजों की टीम करती ह. इसके लिए योग्यता के बजाये कालेजियम अपनी मर्जी से जजों की नियुक्ति करता है. इसका परिणाम यह है कि कुछ खास जजों के परिवार ही बरी बारी से जज बनते रहते हैं. भारत में कई परिवार ऐसे हैं जिसकी अनेक पीढ़ियां एक के बाद एक करके जज बनती रहती हैं.

 

 

न्यायिक सेवा का गठन नहीं होने का दुष्परिणाम यह है कि   नियुक्त जजों में से अधिकांश केवल 300 परिवारों के बेटा बेटी और सम्बंधियों का ही कब्जा है. इस नियुक्ति प्रक्रिया की तीखी आलोचना कई-कई जगहों पर होती आ रही है।पत्रकारिता जगत, शिक्षा जगत से लेकर स्वयं कुछ सेवारत और सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने भी कालेजियम सिस्टम की कटु आलोचना की है. हाल ही में रोलोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा कॉलेजियम सिस्टम खत्म कर न्यायिक सेवा के गठन के मामले में सख्त बयान दिया है. उन्होंने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम खत्म करने के लिए अगर उन्हें जहर भी पीना पडे तो वह इसके लिए तैयार हैं. सामाजिक न्याय की राजनीतिक धुरी पर काम करने वाले तमाम नेता समय समय पर कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं. लेकिन अब समय बहुत बीत चुका है. अब इन दलों को सम्मिलत रूप से आंदोलन करके कॉलेजियम सिस्टम के ताबूत में आखिरी कील ठोकने के लिए तैयार हो जाना चाहिए.

इन राजनीतिक दलों के ढुल-मुल रवैये के कारण ही आज  सर्वोच्च न्यायालय बेखौफ़ है. उसे संविधान की मर्यादा का खौफ इसलिए नहीं है क्यों कि उसे यह मुगालता है कि वह सर्वोच्च है. जबकि लोकतंत्र में जनत की शक्ति सबसे सर्वोच्च होती है. जिस देश ने न्यायिक कार्यों के लिए न्यायलयों को शक्ति दी है उस पर भी महाभियोग लगाने की शक्ति संसद के पा है. लेकिन यह प्रक्रिया जरा  जटिल है, पर असंभव नहीं. इसलिए वे निश्चिंत रहते हैं, निर्भय रहते है.

 

उल्लेखनीय है कि संविधान के अनुच्छेद 234 के तहत राज्य न्यायिक सेवा के गठन के माध्यम से अवर न्यायाधीश से लेकर जिला न्यायाधीश तक के पदों पर नियुक्ति वर्षों से होती आ रही है और इसमें संबंधित राज्य के आरक्षण के नियम भी लागू है. पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में यह व्यवस्था अभी तक लागू नहीं होने दी गयी. लिहाजा भारत सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 312 के प्रावधानों के अनुरूप उच्च न्यायपालिका के जजों की भर्ती के लिए भारतीय न्यायिक सेवा के गठन करने की बजाय NJAC कानून के तहत जजों की नियुक्ति का प्रावधान वर्तमान व्यवस्था में संशोधित कर किया। जिसे सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने निरस्त कर दिया। संविधान लागू होने के 70 वर्षों बाद भी अब तक अनुच्छेद 312 के प्रावधान लागू नहीं कर भारत सरकार ने अनुसूचित जातियों जनजातियों पिछड़े वर्गों के आरक्षण नियमों को लागू करने से बचने के लिए किया ।

 

जाहिर है भारत सरकार और सर्वोच्च न्यायालय अपने अपने वर्चस्व के लिए मामलों को दूसरी दिशा देकर नूरा कुश्ती कर रहे है । दोनों नहीं चाहते है कि उच्च न्यायपालिका में आरक्षण लागू हो । इसलिए मामले को दूसरी दिशा की ओर मोड़ दिया गया । प्रबुद्ध जनता इसे जाने समझे और बूझे। अपनी मांग को विभिन्न मंचों पर उठावे और हो सके तो इसके लिए राष्ट्रव्यापी जनमत तैयार करने की दिशा में काम करे.

 

By Editor