मुसीबत में नीतीश, भवन निर्माण में महाघोटाले का खुलासा
20.10.2018
एलेक्शन कमिशन द्वारा चुनावी बिगुल फूक दिये जाने के बाद जहां तमाम दल वोटरों को अपनी तरफ आकर्षित करने में लगे हैं वहीं इसी बीच कैग के एक खुलासे से बिहार सरकार में एक नये भ्रष्टाचार का खुलासाह हुआ है.
NDTV.in के पास मौजूद रिपोर्ट में सीएजी ने कहा है कि ठेके बांटे जाते समय न केंद्रीय सतर्कता आयोग(सीवीसी) की गाइडलाइंस का पालन हुआ और न ही राज्य सरकार के वित्तीय नियमों का. बानगी के तौर पर देखें तो कृषि महाविद्यालय किशनगंज के निर्माण में ठेकेदार को तो 3.39 करोड़ का अधिक भुगतान कर दिया गया.
एनडी टीवी डॉट इन ने अपनी खबर में दावा किया है कि कहीं बिना टेंडर के तो कहीं अपात्र ठेकेदारों को बिना अनुभव प्रमाणपत्र के ही करोड़ों का काम बांट दिया गया. वहीं कहीं पर आंख मूंदकर तयशुदा धनराशि से करोड़ों की ज्यादा रकम ठेकेदार के खाते में भेज दी गई.
CAG ने किया उजागर
vनिर्माण कार्यों का ठेका देते समय हर नियम-कायदे टूट गए. यह सब हुआ बिहार सरकार के सबसे प्रमुख उपक्रम बिहार राज्य भवन निर्माण लिमिटेड में. वर्ष 2008 में स्थापित यह सरकारी कंपनी तमाम विभागों के नए भवनों के निर्माण और मरम्मत का काम देखती है. कई वर्षों से बगैर मैनेजिंग डायरेक्टर के चल रही इस कंपनी में अंधेरगर्दी का बड़ा खुलासासीएजी(कैग) की वर्ष 2017-18 की ऑडिट में हुआ है.
जिस अवधि के ठेकों पर कैग ने सवाल उठाए हैं, उस दौरान राज्य के जहां दस महीने तक जीतन राम मांझी सीएम रहे वहीं बाकी समय नीतीश कुमार.
वेबसाइट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि बिहार स्टेट बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन लिमिटेड का पटना में मुख्यालय है. यह बिहार सरकार के बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन्स डिपार्टमेंट(BCD)के अधीन आता है. इस सरकारी कंपनी की कुल नौ यूनिटें या यूं कहें नौ पीएसयू हैं. जिन्हें वर्ष 2017-18 तक कुल 1754.78.05 करोड़ का काम कराने की जिम्मेदारी मिली थी. देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी कैग ने नौ में से पांच पीएसयू के 1309.05 करोड़ रुपये के 699 कार्यों की नमूना जांच की तो भारी गड़बड़ी का खुलासा हुआ. पता चला कि ऑडिट की अवधि में इस सरकारी कंपनी को 27 विभागों से जुड़े भवनों के निर्माण की जिम्मेदारी मिली थी.
वेबसाइट ने लिखा है कि बिहार सरकार के वित्त विभाग की ओर से बनाए नियम के मुताबिक दस लाख से ऊपर के सभी कार्यों का ठेकेदारों को आवंटन सिर्फ और सिर्फ खुले टेंडर से होगा. सीवीसी ने भी जुलाई 2007 में आर्डर जारी कर रखा है, जिसमें 10 लाख से ऊपर के कार्यों का आवंटन पब्लिक टेंडर पॉलिसी से ही करने की व्यवस्था है. ताकि ठेकों में पारदर्शिता होने से भ्रष्टाचार की समस्या दूर हो. मगर बिहार राज्य भवन निर्माण निगम लिमिटेड ने न सीवीसी के नियमों का ख्याल रखा और न ही अपनी सरकार के वित्त विभाग का.
कैग की जांच में पता चला कि वर्ष नवंबर 2014-दिसंबर 2016 के बीच 19.48 करोड़ के अतिरिक्त कामों को ठेका बगैर किसी टेंडर के एक ही ठेकेदार को दे दिया गया. जबकि उससे पहले इस सरकारी कंपनी ने पांच पीएसयू से जुड़े 278.51 करोड़ के ठेके जनवरी 2013 अप्रैल 2015 तक बांटे थे. बिना टेंडर के ठेके देने पर जब कैग ने स्पष्टीकरण मांगा तो बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन्स डिपार्टमेंट(बीसीडी) ने नवंबर 2017 में सफाई देते हुए कहा कि इन कार्यों को बीपीडब्ल्यूडी कोड के तहत मंजूरी मिली थी. मगर सीएजी ने इस जवाब को खारिज कर दिया. ये ठेके गोदाम और स्वास्थ्य केंद्रों के अप्रग्रेडेशन, स्कूलों के निर्माण आदि से जुड़े रहे.