कोरोना से परेशान हुआ मिडिल क्लास, अब तबाही का इंतजार!
आज विश्व हैप्पीनेस डे है। भारत 149 देशों की सूची में 139 वें स्थान पर है। मिडिल क्लास के बुरे दिन ट्रेंड कर रहा है। आगे क्या होगा?
कुमार अनिल
भारत का मिडिल क्लास एक वर्ष में सिकुड़ गया है। मिडिल क्लास में शामिल 3 करोड़ 20 लाख लोग इस क्लास से बाहर फेंक दिए गए हैं। मिडिल क्लास में बाइक रखनेवाले से लेकर दो कार रखनेवाले तक आ सकते हैं। बड़ा सवाल यह है कि मिडिल क्लास के बुरे दिन तो दिख रहे हैं, आगे क्या होगा। क्या आगे सुधार की संभावना है या तबाही आएगी। क्या आज मोटरसाइकिल पर चलनेवाले मोटरसाइकिल बेचकर साइकिल पर आ जाएंगे?
बिजनेस स्टैंडर्ड ने अमेरिकी रिसर्च संस्था प्यू के हवाले से खबर प्रकाशित की जिसके अनुसार भारत में महामारी के कारण करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए। प्यू के अनुसार ऐसे लोग जो रोज 700 रुपए से 1400 रुपए कमाते थे, उनकी संख्या तीन करोड़ 20 लाख घट गई है।
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आज से 11 महीने पहले यानी पिछले साल अप्रैल में राहुल गांधी ने भारत के रिजर्व वैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के साथ एक वार्ता में कहा था कि माहामारी का देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। लेकिन तब देश का यही मिडिल क्लास अपनी छतों और बालकनी में थाली बजाने में खुश था। राहुल ने उसी समय लॉकडाउन को अनप्लांड ( अनियोजित-अव्यवस्थित) कहा था। तब भी उनका मजाक उड़ाया गया था। रोचक बात यह है कि आज भी अनेक ऐसे लोग मिल जाते हैं, जिनकी खुद की नौकरी चली गई, लेकिन उन्हें लगता है कि सब ठीक है।
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असली सवाल यह है कि क्या अब मिडिल क्लास के बुरे दिन समाप्त होंगे या तबाही आनेवाली है। सरकारी तौर पर तो यही कहा जा रहा है कि स्थितियां तेजी से सुधर रही हैं और जल्द ही हम फिर से चीन के साथ मुकाबला करते दिखेंगे। लेकिन वास्तविकता क्या है? एक तो करेला, दूजे चढ़ा नीम वाली हालत यह है कि एक तो नौकरी गई, उद्योग चौपट हुआ, दूसरे महंगाई भी आसमान छू रही है।
वहीं कोरोना का संकट एक बार फिर बढ़ने लगा है। कई शहरों में फिर से लॉकडाउन लगाया जा रहा है। जो लो पिछले साल अप्रैल में कह रहे थे, सब ठीक है, वे तो आज भी कह रहे हैं कि सब ठीक है, लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि मिडिल क्लास के बुरे दिन आ गए हैं।