यह कहानी है कोरोना वायरस के प्रति बरती गयी लापरवाही की. फिर इस लापरवाही के नतीजे में ग्यारह अन्य लोगों के संक्रमित होने की
बिहार में यूं तो कोरोना संक्रमित लगों की संख्या अभी मात्र 15 है. पर इनमें चार ऐसे हैं जिनको सिर्फ एक व्यक्ति से संक्रमण फैला. और इस फैलवा के लिए मुंगेर के सिविल सर्जन डॉ. पुरुषोत्तम कुमार की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.
क्या है कहानी
संक्रमण की यह कहानी कतर से मुंगेर लौटे युवा से शुरू होती है. वह 13 मार्च को कतर से अपने घर मुंगेर लौटा.उसकी मौत 21 मार्च को पटना एम्स में हो गयी. इससे पहले जब वह युवा अपने घर पहुंचा था तो उसके सम्पर्क में उसके घर की महिला और एक बच्ची आये थे. दोनों को कोरोना का संक्रमण हो गया. इन संक्रमितों के साथ मुंगेर के सिविल सर्जन ने एक ही एम्बुलेंस में सात अन्य लोगों को भागलपुर भेजा था. इस एम्बुलेंस के चालक को भी तब संक्रमण का शिकार होना पड़ा. इसकी पुष्टि स्टेट सर्विलेंस आफिसर डॉ. रागिनी मिश्रा ने की. उन्होंने बताया कि यह चेन उस युवा से जुड़ा हुआ है। इस तरह मृतक की चेन से यह 11 संक्रमित हुए है।
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भागलपुर मेडिकल काॅलेज अस्पताल से आईजीआईएमएस में 11 सैंपल जांच के लिए आए थे। इसमें से चार सैंपल पॉजिटिव मिले हैं। ये सभी सैंपल मुंगेर के नेशनल हॉस्पिटल का है। पहले वह युवा मुंगेर के नेशनल हॉस्पिटल में भर्ती हुआ था। वहां से उसे पटना के शरणम हॉस्पिटल लाया गया था और शरणम से पटना एम्स में भर्ती कराया गया था. रागिनी मिश्रा बताती हैं कि 11 सैंपल में अस्पताल के तीन कर्मचारी और एक ड्राइवर पॉजिटिव मिला है। एम्बुलेंस ड्राइवर ने उसे लाकर शरणम अस्पताल में भर्ती कराया था।
सर्विलेंस अफसर की पुष्टि
अगर स्टेट सर्विलेंस अफसर रागिनी मिश्रा की बातें तथ्यपूर्ण हैं तो हमें इसकी गंभीरता को समझना होगा. अगर एक लापरवाही न हुई होती तो अन्य 11 लोग संक्रमित नहीं हुए होते. लेकिन ऐसी लापरवाही आगे रुक जायेगी यह आसान भी नहीं है. क्योंकि सबसे पहले जब संक्रमित की पहचान हो पाये उससे पहले वह कई अन्य को संक्रमित कर चुका होता है. और जब जांच रिपोर्ट पोजिटिव आती है तब जा कर हमारा अमला उस संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आये लोगों की खोज में निकलता है. हम इसके लिए सरकार को, सरकारी अमले को ही जिम्मादार नहीं मान सकते. क्योंकि पहली जिम्मेदारी उस संक्रमित व्यक्ति से शुरू होती है जिसे संदेह है कि उसमें कोरोना वायरस के असर के लक्षण हैं. उसके बाद इसका पहला शिकार उसके ही परिवार के लोग होते हैं. हमारे समाज की पारिवारिक बनावट ऐसी है कि हममें से ज्यादातर लोग अपने बीमार सदस्य को आइसोलेट करना नहीं चाहते. इसका परिणाम अब बिहार में दिखना शुरू हो गया है.
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हमरारे पा अब भी समय है कि हम सबसे पहले संक्रिमित या संभावित संक्रमित व्यक्ति को आसोलेट करें. फिर उसकी जांच करवायें. जांच रिपोर्ट पोजिटिव आये तो फिर उस मरीज का इलाज शुरू हो. अगर हमने इन साधारण बातों पर ध्यान नहीं दिया तो हम एक भयावह दौर की तरफ बढ़ेंगे. जहां से हम खुद को, फिर परिवार को और अंत में समाज और देश को कोरोना संक्रमण के खतरनाक प्रकोप में झोंकते चले जायेंगे.
सवाल यह है कि क्या हम कोरोना के संक्रमण और उसके अनुभवों से कुछ सीख रहे हैं?