हर कदम पर सुबूत है कि बहुसंख्यक समाज में नफरत का जहर बोया, पुलिस को बेअसर बनाया, नतीजा सामने है
नौकरशाही डॉट कॉम
दिल्ली जल रही है. दिल्ली पर हमला हो रहा है. इबादतगाहें जलाई जा रही हैं. लोगों को गाजर मूली की तरह कत्ल किया जा रहा है. ऐसी घटनाओं की शुरुआत अफवाह से की जाती है. झूठ फैलाया जाता है कि पूजास्थल पर हमला किया गया है.
यह सुनते ही भीड़ आक्रोषित होती है. फिर इबादतगाहों पर हमले होते हैं. भगवा लहराया जाता है. उधर अनेक इंडिपेंडेंट मीडिया खबर देते हैं कि पूजास्थल पर हमले की बात अफवाह है. स्क्राल ने लिखा है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में भीड़ के अंदर से प्रताप नाम का एक शख्स कहता है कि उन लोगों ने दो मुसलमानों पर हमला किया है क्योंकि उन्होंने मंदिर की एक मूर्ति तोड़ दी है लेकिन मूर्ति तोड़ने का कोई सुबूत सामने नहीं आता.
दि वायर ने एक व्यक्ति को यह कहते बताया है कि उन लोगों ने मजार पर हमला किया. वह व्यक्ति भीड़ से कहता है कि क्या मुसलमान हमसे बड़े गुंडे हैं. नहीं उनसे बड़े गुंडे हम हैं. हम उन्हें घर में भी चैन से नहीं रहने देंगे. इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि पुलिस चुप खड़ी रही. भीड़ ने राड और डंडों से हमला किया. घरों में आग लगाई. 250 से ज्यादा लोग घायल हुए हैंं. आधिकारिक सूचना के अनुसार 13 लोग जान गंवा बैठे हैं.
इसी तरह कि एक खबर दि वॉयर ने लिखी है कि जिसमें बताया गया है कि एक शख्स का मजहब जानने के लिए उसका पतलून खोल कर देखा गया. फिर उस पर जानलेवा हमला किया गया. उधर जहां दूसरे मजहब के लोग संख्याबल में भारी हैं वहां वे हमला कर रहे हैं. वे दूसरे धर्म के लोगों की जान ले रहे हैं. लोगों की हत्यायें संख्याबल का खेल हो चुका है. भाजपा के सांसद रहे और अब कांग्रेस के नेता उदित राज ने लिखा है कि अल्पसंख्यकों पर जुल्म की सारी हदें पार हो चुकी हैं. अगर यह मामला संख्याबल का खेल बन चुका है तो नतीजा समझा जा सकता है कि क्या हो रहा है.
आखिर ये घटनायें शुरू कैसे हुईं. भाजपा के नेता कपिल मिश्रा जब खुले आम ऐलान कर रहे थे कि ट्रम्प ( राष्ट्रपति, अमेरिका) के जाने तक हम सब्र करेंगे. इंतजार करेंगे कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आंदोलन कर रहे लोग सड़क खाली कर दें. ऐसा नहीं हुआ तो हम सड़क पर उतरेंगे. जब कपिल मिश्रा यह कहते सुने जा रहे थे तो पुलिस के आला अधिकारी अपने सर पर हेमलेट और शरीर पर सुरक्षा कवच पहने मुस्कुरा रहे थे.
ट्विटर पर दिल्ली जीनोसाइड यानी नरसंहार ट्रेंड कर रहा था. डरावनी तस्वीरे और विडियो पोस्ट किये जा रहे हैं.
आखिर सवाल यह है कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दो महीने से चल रहे प्रोटेस्ट शांतिपूर्वक चल रहे थे. अचनाक यह क्या हो गया. शुरूआत कपिल मिक्षा के बयान से हुई. दिल्ली में भाजपा की शर्मनाक हार के बाद चीजें अचानक बदल गयीं. गृहमंत्री अमित शाह के अधीन काम करने वाली पुलिस अनेक जगह दंगाइयों के साथ पत्थरबाजी करती देखी गयी.
यह भयावह स्थिति है. डर तो यह है कि दंगा की आग दिल्ली से बाहर न भड़क जाये. शांति बनाये रखने की जरूरत है. इसके लिए पुलिस का अहम रोल है. लेकिन पुलिस अपने आकाओं के इशारे पर काम करती है. इंसान, इंसान के खून का प्यासा बन चुका है. कोई नहीं जानता कि हम किस अंधेरी और काली कोठरी की तरफ बढ़ रहे हैं.