हड़ताल से मरीजों की मौत, सरकार व डाक्टर दोनों हत्यारे हैं
आपको यह खबर पढ़ के ऐसा नहीं लग रहा कि हम एक क्रूर, लापरवाह और असभ्य व्य्वस्था में हैं जहां जान बचाने वाले डाक्टर और उनकी व्यवस्था की जिम्मेदार सरकार दोनों इसके जिम्मेदार हैं.
स्वास्थ की देखभाल की जिम्मेदारी अगर सरकार ने अपने अस्पतलाों के जरिये उठाई है तो उसे उन मरीजों की मौत की जिम्मेदारी भी स्वीकार करनी होगी जो हड़ताली डाक्टरों द्वारा इलाज न करने के कारण मौत के शिकार हुए.
डीएमसीएच (DMCH Strike) में जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के दौरान अभी तक विभिन्न विभागों में नौ मरीज दम तोड़ चुके हैं।
कुछ ऐसा ही 2017 में पीएमसीएच में हड़ताल के कारण हुआ था. वहां जूनियर डाक्टरों की हड़ताल के कारण 12-15 मरीजों की मौत हो गयी थी.
डाक्टरों की पिटाई:डाक्टरी छोड़ आप रंगदारी करेंगे तो तीमारदार आपकी पूजा तो नहीं करेंगे
तब स्वास्थ्य विभाग ने आश्वासन दिया था कि भविष्य में ऐसी स्थितियां उनत्पन्न नहीं होंगी. मगर बीते तीन सालों में सरकार ने क्या व्यवस्था की,इसका ताजा उदाहरण डीएमसीएच ( DMCH Strike) की मौजूदा हड़ताल से देखा जा सकता है.
रही बात डाक्टरों के लोकतांत्रिक अधिकार और उनकी सेवा शर्तों के लिए हडताल करने के अधिकार की बात, तो हमें यह याद रखना चाहिए कि किसी की जान की कीमत पर आप हड़ताल करते हैं तो आप अमानवीय, क्रूर और हिंसा को बढ़ावा देने वाले हैं. लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हम डाक्टरों की सेवाशर्तें और उन्हें मिलने वाली सरकारी सुविधाओं की कमियों का ख्याल रखने वाली सरकार को इस जिम्मेदारी से कभी मुक्त नहीं कर सकते.
लिहाजा सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी ही होगी जिससे यह सुनिश्चित कर सकें कि डाक्टरों की सुविधायें या उनकी जायज मांगे समय समय पर खुद ही मानी जायें.
लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि बिहार सरकार और स्वास्थ्य विभाग इतना निकम्मा है कि वह इन मुद्दों पर कभी ध्यान नहीं देती और हमारे नागरिकों की मौत इलाज के बिना तड़प तड़प कर हो जाती है.
अगर सरकार अपने चिकित्सकों के साथ इंसाफ नहीं कर सकती, अगर सरकार मरीजों की मौत को तमाशाई की तरह देखती रह जाती है तो हमें ऐसी सरकार पर शर्म करनी पड़ेगी. और ऐसी सरकार को कोई हक नहीं कि वह हमारे नागरिकों की जान से खेलती रहे.