Draupdi MurmuDraupdi Murmu

क्या Draupdi Murmu कोविंद की तरह रीढ़विहीन राष्ट्रपति साबित होंगी


क्या Draupdi Murmu कोविंद की तरह रीढ़विहीन राष्ट्रपति साबित होंगी

बीएन सिंह


जब से द्रौपदी मुर्मू ( Draupdi Murmu) का नाम बीजेपी ने राष्ट्रपति पद के लिये चुना है, तब से उनके नाम के बारे में सूचना की बाढ़ आ गयी है, बीजेपी के सोच वाले कह रहे हे हैं कि एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति का प्रत्याशी बनाकर बीजेपी ने इतिहास रच दिया है। ये वे लोग हैं या तो ये बीजेपी का इतिहास और ऐतिहासिक नालेज से परिचित नहीं हैं या नकाब लगाये संघी हैं। दूसरी तरफ लोग है वे कह रहे हैं कि दलित आदिवासी रीढ़ विहिन रबर स्टांप हैं , जैसे कोविंद साहब 5 साल रहे , वैसे ही ये रहेंगी । मैं उन लोगों को बताना चाह रहा हूं कि सभी दलित आदिवासी रीढ़विहिन नहीं होते , हाँ बीजेपी के सत्ता के जूठन पर पलने वाले रीढ़ विहिन हो सकते हैं सब नहीं होते हैं।
इस देश में एक ऐसा भी दलित राष्ट्रपति हुआ था जो प्रधानमंत्री अटल बिहारी को भी उनकी औकात बता दिया था, जब वो सावरकर को बिस्मिल्ला खान की शहनाई के डब्बे में लपेटकर भारत रत्न देने कि सिफ़ारिस की थी । तब तत्कालीन दलित राष्ट्रपति ने दस्तख़त नही किया , उस दलित राष्ट्रपति का नाम था, ” के. आर. नारायनन”। दलित और दलित दलाल होन का अंतर आपको पता होना चाहिये।


घटना यह है कि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने अपने मैनिफेस्टो में वादा किया था कि सरकार बनने के बाद सावरकर को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। सरकार बन गयी , अब बारी थी, वादा निभाने की, महाराष्ट्रा की तरफ से बहुत दबाव था।


कैसे दफ़्न हुई वीडी सावरकर को भारत रत्न देने की अटल बिहारी वाजपेयी की सिफ़ारिश, जानिए कहानी
विनायक दामोदर सावरकर यानी वीडी सावरकर को भारतीय जनता पार्टी (BJP) हमेशा से ही स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी के तौर पर मानती आई है। वादे के अनुसार अटल बिहारी वाजपेयी ने सावरकर का नाम भारत रत्न के लिए सिफारिश भी की।


साल 2000 में शहनाई वादक उस्ताब बिस्मिल्लाह खान का नाम भारत रत्न के लिए आगे बढ़ाया गया था। उस वक्त वाजपेयी सरकार इसपर राजी हो गई थी। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के पूर्व राष्ट्रपति के. आर. नारायणन के पास सावरकर को भारत रत्न देने संबंधी सिफारिस भेजी थी, जिसका पूर्व राष्ट्रपति नारायणन ने विरोध तो नहीं किया क्योंकि राष्ट्रपति पद की एक गरिमा होती है । लेकिन उन्होंने इसकी फाइल को साइड करके कोने में रख दिया और चुप्पी साध ली। यह सिफारिश इतिहास के पन्नों में दफ्न होकर रह गई। क्या कोविंद साहब ऐसा कर सकते अगर मोदी सिफारिस करते? कदापि नहीं । क्या मुर्मु साहिबा की रीढ़ ऐसी है जो मोदी की सिफारिसको नकार दें? कभी नहीं । संघ के दलित/ आदिवासी केवल दिखावे के लिये हैं , जनता को मूर्ख बनाने के लिये ऐसे लोगों को रखा जाता है, फेस सेविंग दलित / आदिवासी रीढ़विहिन जंतु। जो सत्ता के जूठन पर जीते हैं और मात्र रबर स्टांप से ज्यादा कुछ नहीं। कोबिंद साहब की भाव भंगिमा नीचे देख लें, राष्ट्रपति पद की गरिमा को कहां पहुंचा दिये ?


सावरकर को भारत रत्न ना मिलने की पीछे जो वजह बताई जाती है उसे लेकर कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि के आर नारायणन, सावरकर को भारत रत्न दिये जाने के खिलाफ थे।


साल 1992 में नारायणन ने मस्जिद विवाद को महात्मा गांधी की हत्या के समान बताया था। उन्होंने राज्यसभा में कहा था कि यह एक निश्चित तौर से यह एक बड़ी ट्रैजडी है और हमें यह याद रखना चाहिए कि जिन्होंने मस्जिद विध्वंस का आनंद लिया वहीं लोग विडी सावरकर का खुलेआम समर्थन कर रहे हैं। विडी सावरकर जो हिंदू महासभा के कट्टरवादी मोर्चे का नेतृत्व करते हैं जो महात्मा गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार है।

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जिस वक्त बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ था, उस वक्त सभी लोगों ने एक सुर में इस घटना को कानून का प्रबल उल्लंघन माना था। जिस जमीन पर मस्जिद बनी थी उस जगह पर जिस तरह से लोगों ने हिंसा की और सुप्रीम कोर्ट को इसमें कोई विरोधाभास नजर नहीं आया। इसलिए वो राम मंदिर बना सके।


साल 2000 में शहनाई वादक उस्ताब बिस्मिल्लाह खान का नाम भारत रत्न के लिए आगे बढ़ाया गया था। उस वक्त वाजपेयी सरकार इसपर राजी हो गई थी। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने सावरकर का नाम भारत रत्न के लिए बढ़ाया, जिसका पूर्व राष्ट्रपति ने विरोध तो नहीं किया लेकिन उन्होंने इसकी फाइल को एक कोने में रख दिया और चुप्पी साध ली।

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साल 2001 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर उनकी मुलाकात अटल बिहारी से हुई थी तब उन्होंने कहा था कि सावरकर का नाम हटा दिया गया है।


इसलिये आप नहीं कह सकते की सब दलित आदिवासी रीढ़विहिन होते हैं , हाँ संघ पोषित दलित / आदिवासी रीढ़विहिन ही नहीं सरस्वती विहिन , प्रतिभाहीन लगनशील होते हैं। राष्ट्रपति, राज्यपाल पदों पर इन रीढविहीन दलितों और आदिवासियों की तैनाती दलितों ,आदिवासियों को मूर्ख बनाकर आंबेडकर के सोच को उन्हीं के लोगों के द्वारा मारने के सिवा कुछ नहीं है? .अब ये अगर राष्ट्रपति बन गयी तो सिर्फ आदिवासियों को हिंदू होने का प्रमाण पत्र बांटेंगी, कोविंद साहब से भी बुरा इनका हाल होगा। अभी तो नंदी को ही चूम रही हैं, मंदिर में झाड़ू लगा रही है, आगे क्या होगा देखते जाईये?

By Editor


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