विश्लेषकों के लिए यह दिलचस्प रहा है कि बिना किसी मजबूत वोटबैंक के नीतीश कुमार डेढ दशक से सत्ता केंद्र कैसे बने हुए हैं. इस सवाल के अनेक जवाबों में से एक यह है कि नीतीश जबर्दस्त कलकुलेटिव दाव खेलने में माहिर हैं. हमारे एडिटर इर्शादुल हक का विश्लेषण
पिछले तीन हफ्ते में नीतीश ने दलितों, अतिपिछ़ों और अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए ऐसे ही आकर्षक व बड़े फैसले लिए हैं जिनसे इन समुदायों में उनकी लोकप्रियता बढ़ाने वाले हैं.
पिछले दिनों नीतीश कैबिनेट ने दलित युवाओं के लिए ब़ड़ा फैसला किया था- बीपीएससी व युपीएससी का पीटी कम्पीट करने पर क्रमश: 50 हजार व एक लाख रुपये का वजीफा देने की घोषणा. यह फैसला देश के अन्य राज्यों के लिए भी एक नायाब फैसला था. इस फैसले के लिए नीतीश कैबिनेट ने बड़ा रणनीतिक स्टैंड अपनाया. सरकार को यह पता था कि इस फैसले का विरोध करने का साहस कोई नहीं करेगा. लिहाजा नीतीश कुमार ने इससे जुड़े अन्य फैसलों को फिलवक्त उजागर नहीं किया. जाहिर है उस फैसले का विरोध कत्तई नहीं हुआ पर यह सवाल जरूर उठाये गये कि अल्पसंख्यकों और अत्यंत पिछड़े वर्गों को क्या मिला? इस फैसले के अगले ही हफ्ते नीतीश ने दूसरा फैसला लिया. इसके तहत उन्होंने ऐलान किया कि यूपीएससी व बीपीएससी पीटी कम्पीट करने वाले अत्यतं पिछड़े वर्गों के छात्रों को भी ऐसा ही लाभ दिया जायेगा. यह एक बड़ा फैसला है. अत्यंत पिछड़े वर्गों के छात्रों को मिलने वाले इस लाभ का हिस्सा अल्पसंख्यक समुदाय को भी मिलेगा.
जनप्रिय फैसले
इसी तरह नीतीश कुमार की कैबिनेट ने कुछ और महत्पवूर्ण लिये हैं. इन फैसलों में 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई करने के लिए हर जिले में अल्पसंख्यकों के लिए विशेष रेसिडेसियल स्कूल खोले जायेंगे. इन विद्यालयों में मुफ्त शिक्षा के अलावा रहने समेत तमाम सुविधायें मुफ्त होंगी. इस स्कूल में नामांकन के लिए प्रतियोगिता परीक्षा देनी होगी और इसका लाभ छह लाख की सालाना आमदनी वाले अभिभावकों के बच्चे ही उठा सकेंगे. एक दूसरे महत्पूर्ण फैसल के तहत छात्रावासों में रहने वाले पिछड़े व अल्पसंख्यक समाज के छात्रों को दलितों की तरह हर महीने एक हजार रुपये का वजीफा भी मिलेगा.
इससे पहले नीतीश सरकार दो और महत्वपूर्ण फैसले ले चुकी है. इसके तहत महादलितों को मिलने वाले लाभ को सभी दलितों के लिए एक समान्य रूप से लागू करने का फैसला हो चुका है.
क्या है रणनीति
नीतीश कैबिनेट के ये तमाम फैसले पिछले दो तीन हफ्ते में लिए गये हैं. इस फैसले से समाज के बड़ा वर्ग का अहाता होगा. इतना ही नहीं युवा वोटर्स समुह को अपनी ओर आकर्षित करने का यह एक ऐसा लोकप्रिय कदम है जो नीतीश कुमार को बड़ा पॉलिटकल डेविडेंट तो देगा ही, साथ ही विरोधी दलों के लिए गंभीर राजनीतिक चुनौती पेश करेगा. अगर ध्यान से देखें तो 2015 के बाद नीतीश की राजनीति का सबस बड़ा टार्गेट युवा समुह ही रहा है. युवा वोटर्स की आबादी कुल आबादी का 25 प्रतिशत से ज्यादा है. युवाओं को बेरोजगारी भत्ता, प्रोफेनल कोर्सेज के लिए ट्युशन फीस और कौशल विकास जैसी योजनाओं पर पहले से ही काम शुरू किया जा चुका है.
एक बात और- नीतीश कुमार पिछले कुछ महीनों से जिस तरह ताबड़तोड़ बड़े और जनप्रिय फैसले लेने लगे हैं, उससे साफ है कि वह अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत बनाने में जुट चुके हैं. उन्हें बखूबी पता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद 2020 के विधान सभा चुनाव के वक्त राजनीति की रूपरेखा बदल सकती है. वह एनडीए का हिस्सा तब भी होंगे या नहीं, यह कहना मुश्किल है. साथ ही एनडीए से अलग होेने की स्थिति में महागठबंधन के साथ अगर नहीं गये तो अपनी स्वतंत्र राजनीतिक लड़ाई की संभावना भी बचेगी, लिहाजा ऊपर जिन फैसलों का उल्लेख किया गया है, वे नीतीश की राजनीति के लिए फायदामंद साबित हो सकते हैं.
ऐसे समय में, जब राजद विपक्ष में रहते हुए अपनी जनस्वीकार्यता को मजबूत बनाने में सफलता हासिल कर ली है, नीतीश कुमार के ये फैसले उन्हें मजबूत राजनीतिक धरातल मुहैया कराने के काम आ सकते हैं.