लोकसभा चुनाव और शिक्षण संस्थानों का राजनीतिक शोषण
एम जे वारसी
दुनिया के लगभग सभी देशों के निर्माण और विकास में शिक्षण संस्थानों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. हमारे देश में हाल के दिनों में शिक्षण संस्थानों में राजनीती का ध्रुवीकरण देखने को मिलता है, चाहे वह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का मामला हो या हैदराबाद विश्वविद्यालय का, या फिर अलाहाबाद विश्वविद्यालय का. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भी इस राजनीती हस्तक्षेप से अछूता नहीं है.
एएमयू एशिया के बड़े आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना सन 1877 में एक धर्म निरपेक्ष एवं समाजसेवी सर सय्यद अहमद खान के द्वारा किया गया था जिसे 1920 में पूर्ण विश्वविद्यालय का दर्जा मिला. आज इसके अंतर्गत लगभग 32000 छात्र, 2000 अध्यापक तथा लगभग 6000 कर्मचारी कार्यरत हैं. इस विश्वविद्यालय काम करने वालों में अल्पसंखयक समुदाय के अलावा दूसरे समुदाय के लोगों की संख्या अच्छी खासी है. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की गणना इस उपमहाद्वीप की सबसे बड़ी आवासीय विश्वविद्यालय में होती है और यहाँ भारत में लगभग सभी राज्यों के साथ-साथ विश्व के विभिन्न देशों के छात्र भी यहाँ पढ़ने आते हैं. इस विश्वविद्यालय का अपना एक गौरवपूर्ण इतिहास रहा है.
स्वतंत्रता अभियान से लेकर भारतीय शिक्षा प्रणाली में अभूतपूर्व सुधार लाने की दिशा में निरंतर अपना योगदान देता आ रहा है. यह विश्वविद्यालय आज जिस ऊंचाई पर है उसके विकास में सभी धर्म और जाती के लोगों का योगदान रहा है. यहां यह बताना भी ज़रूरी है कि इस विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक स्वरूप को राष्ट्रहित में संरक्षण प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है जो की अल्संख्यक समुदाय द्वारा स्थापित और संचालित है और जिसे भारतीय संविधान की धारा 30 के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त है.
लोकसभा चुनाव और विश्वविद्यालय
जैसा कि हम सब जानते हैं कि 2019 भारत में लोक सभा चुनाव का साल है. छात्रों ने हमेशा ही विभिन्न अवसरों पर देश हित में अपनी आवाज़ें बलन्द की हैं. छात्रों ने हमेशा देश के विकास में न केवल बढ़-चढ़ क्र हिस्सा लिया है बल्कि समय-समय पर राजनितिक दलों को अपनी सोच एवं कार्य शैली से अवगत भी कराया है और देश को आगे ले जाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान भी दिया है. मगर ऐसा प्रतीत होता है कि पिछले कुछ समय से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा ध्रुवीकरण का केंद्र बना दिया गया है.
पिछले कुछ महीनों के दौरान एक के बाद एक घटित होने वाली घटनाएं इस तरफ इशारा करती हैं कि कुछ असामाजिक तत्व विश्वविद्यालय के शांतिपूर्ण वातावरण को खराब करने की कोशिश कर रहे हैं, चाहे वह छात्रावास में खाना पड़ोसने का मामला हो, बिना आज्ञा के तिरंगा यात्रा निकालने का या फिर विश्वविद्यालय छात्र संघ द्वारा आयोजित कार्यक्रम को कवर करने के लिए यूनिवर्सिटी परिसर में बिना अनुमति के एक टीवी रिपोर्टर द्वारा लाईव टेलीकास्ट का मामला हो, ये सभा घटनाएं श्रृंखलाबद्ध तरीके से एक ख़ास विचारधारा रखने वालों छात्रों द्वारा किया गया प्रतीत होता है. ऐसा प्रतीत होता है कि ये सब घटनायें विश्वविद्यालय के शान्तिपूर्ण और सुरक्षित वातावरण को भंग करने के लिए पूर्णनियोजित तरीक़े से की गई है. इस से साफ़ पता चलता है कि ऐसे छात्रों का एक संगठन किसी एक ख़ास राजनितिक विचार धारा के अनुयायी हैं तथा 2019 में होने वाले चुनाव से पहले बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार से लोगों का ध्यान भटकाना चाहते हैं.
कुलपति की भूमिका
इस बात में कोई संदेह नहीं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के दिनों से ही समाज के हर जाति धर्म के छात्रों और अध्यापकों के बीच समन्वय कायम करने के साथ-साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाये रखने में कामयाब रहा है. भारत सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी तरह के साम्प्रदायिक तत्वों को इस बात की छूट न दी जाय कि वह शिक्षण संस्थानों में अशान्ति का माहौल बनाये. यूनिवर्सिटी को सुचारू रूप से चलाने तथा इसे विश्वस्तरीय बनाने के लिए कुलपति प्रो तारिक़ मंसूर ने अपने दो साल से भी काम कार्यकाल में अनेक पहल किये हैं चाहे वह स्मार्ट क्लास रूम का मामला हो, विश्वविद्यालय परिसर में आधारभूत संरचना विकसित करने का मामला हो या फिर छात्रों और अध्यापकों के बीच आपसी सहयोग का मामला हो हर दिशा में कुशल नेतृत्व देने की कोशिश की है ताकि शिक्षा के इस महान संस्था को विश्वस्तरीय बनाया जा सके.
बिना किसी संकोच के मैं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो तारिक़ मंसूर का इस बात के लिए सराहना करना चाहता हूँ कि उन्होंने पिछले दिनों हुए घटना की मैत्रीपूर्ण और कुशलतापूर्वक इस समस्या का समाधान किया. एक ऐसे समय में जब उनके ऊपर विश्वविद्यालय को अनिश्चित काल के लिए बंद करने का बहुत दबाव था. प्रो तारिक़ मंसूर का यह मानना है कि छात्रों और उनके प्रतिनिधियों के साथ नियमित आधार पर बात-चीत करने से छात्र अपनेआप को सुखद एवं सहज महसूस करते हैं, जो किसी भी समस्या के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. छात्र हमेशा यह चाहते हैं कि प्रशासन उनसे सम्पर्क करे और उनकी बात ध्यान से सुने. प्रो तारिक़ मंसूर का का कहना है कि एक कुलपति के नाते मैं हमेशा छात्रों से एक पिता के सामान व्यवहार करता हूँ और उनके साथ संचार और संपर्क बनाये रखने का भरसक प्रयास करता हूँ जिस से किसी भी समस्या के समाधान में आसानी होती है.
भेदभाव का प्रोपगेंडा
पिछले दिनों हुए घटनाक्रम पर टिपणी करते हुए पूर्व छात्र शशि भूषण राय, जो कॉरपोरेट मीट में भाग लेने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी आये हुए थे, उन्होंने बताया कि “मैं लगभग 15 वर्षों तक इस विश्वविद्यालय में रहा और अपनी पूरी शिक्षा इसी महान शिक्षण संसथा से प्राप्त किया और मेरे साथ कभी भी धर्म या जाति के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं किया गया. दर असल मैं यह चाहता हूँ कि मेरा बेटा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिला ले. मेरे बेटे ने इस साल अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी प्रवेश के लिए आवेदन भी कर दिया है और अगर उसका चयन हो जाता है तो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी उसकी पहली पसंद होगी.
यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की गणना अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर की जाती है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे शिक्षण व्यवस्था के साथ तीव्रगति से अग्रसर है. कुलपति प्रो तारिक़ मंसूर के अंथक प्रयासों के कारण शिक्षा व्यवस्था में लगातार सुधार आ रहा है. यही कारण है कि हर विभाग अपने पाठ्क्रम को समय की आपश्यकता के अनुरूप अपडेट करते रहते हैं. आज आधुनिक शिक्षा हम्मारी आवश्यकता बन गई है क्योकि आधुनिक शिक्षा से ही छात्रों को रोज़गार के मौके प्राप्त होंगे. जहां एक ओर कुलपति का मक़सद अलीगढ की गंगा-जमुनी संस्कृति को बचाना है वहीँ दूसरी ओर छात्रों और शक्षकों के बीच सौहार्दपूर्ण एवं सम्मानजनक सम्बन्ध को मज़बूती प्रदान करना है. विश्व भर में फैले हुए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्रों एवं शुभचिंतकों की सहायता से प्रो तारिक़ मंसूर हर सम्भव प्रयास कर रहें हैं कि यहां के छात्र व्यवहारिक एवं गुणवक्तापूर्ण शिक्षा ग्रहण कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सकें.
इस शिक्षण संस्था को वह भली भांति समझते हैं क्योंकि पिछले तीन दशकों से उनका रिश्ता इस संस्था से रहा है. प्रो तारिक़ मंसूर कुलपति बनने से पहले जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कालेज के प्रिंसपल रहे. लगभग सात सालों तक यूनिवर्सिटी गेम्स कमिटी के सचिव रहे. इस के अतिरिक्त प्रो तारिक़ मंसूर एसोशियन ऑफ सर्जन के अध्यक्ष पद के साथ साथ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ज़्क्विटिव कमिटी के सदस्य भी रह चुके हैं. कुलपति प्रो तारिक़ मंसूर ने अब ता जो क़दम उठाये हैं उससे उनका दृष्टिकोण और यूनिवर्सिटी को आगे ले जाने के जज़्बे का पता चलता है.
कुलपति प्रो तारिक़ मंसूर अपने कार्यकाल के तीसरे साल में प्रवेश करने वाले हैं उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती क़ानून व्यवस्था को बनाये रखने की होगी। यूनिवर्सिटी को सुचारू रूप से चलाने और क़ानून व्यवस्था को बनाये रखने में उनका यूनिवर्सिटी से लम्बे समय से जुड़ाव निश्चित तौर पर मददगार साबित होगा। अब समय आ गया है कि दुनिया भर में मौजूद पूर्व छात्र तथा भारत में रह रहे बुद्धिजीवी वर्ग इस यूनिवर्सिटी की तरक़्क़ी में कुलपति को अपने भरपूर सहयोग दें.
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