Muzaffarpur Shelter home रेपकांड में समाज कल्याण विभाग की मंत्री मंजू वर्मा नप गयी हैं. लेकिन महकमे के प्रधानसचिव अतुल प्रसाद अब भी पद पर बने हुए हैं. इन तथ्यों को जानिये जो साबित करते हैं कि सबकुछ पता होने के बावजूद वह खतरनाक चुप्पी साधे रहे.
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम[/author]
Muzaffarpur Shelter home रेपकांड की विस्तृत जानकारी समाज कल्याण विभाग के प्रधानसचिव अतुल प्रसाद को 15 मार्च को ही हो गयी थी. इसके बाद उन्होंने लिखित तौर पर घोषणा भी की थी कि “यह गंभीर चिंता का विषय है जिसे हम न तो बर्दाश्त कर सकते हैं और न ही एक पल के लिए न तो इग्नोर कर सकते हैं“.
अतुल प्रसाद ने बतौर प्रधान सचिव टाटा इंस्टिच्यूट आफ सोशल साइंस(TISS) की ऑडिट रिपोर्ट के प्रस्तावना में 15 मार्च 208 को खुद ही लिखा है. ढाई पेज के इस प्रस्तावना को लिखने से पहले अतुल ने 105 पेज की पूरी रिपोर्ट को काफी गंभीरता से लाइन-बाइ-लाइन पढ़ी थी, तब जा कर यह प्रस्तावना लिखा था. और फिर उन्होंने इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने से पहले खुद ही प्रस्तावना लिखा था. प्रस्तावना में अतुल प्रसाद ने (बच्चियों के साथ हुई दरिंदगी, उनकी मानसिक व शारीरिक पीड़ा को) चिंताजनक बताया था. साथ ही यह भी प्रस्तावना में लिखा था कि इन तमाम बिंदुओं पर सरकार कार्रवाई करेगी.
लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशन के दो महीने बाद तक इस पर कोई कार्वाई नहीं हुई. जब लिखित रूप से प्रधान सचिव ने ऐलान कर दिया कि वह इसे न तो ‘बर्दाश्त’ कर सकते हैं न ‘इग्नोर’ नहीं कर सकते है, फिर भी सरकर कुंडली मार कर क्यों बैठ गयी? क्या उस जघन्य मामले में ऊपर से उन पर कोई दबाव था?
यह रिपोर्ट औपचारिक रूप से 15 मार्च को समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव को सौंपी गयी थी. लेकिन जाहिर है कि इस रिपोर्ट को पढ़ने और उस पर प्रस्तावना लिखने के लिए उन्हें यह रिपोर्ट और पहले मिली होगी.
यहां हम मुजफ्फरपुर बालिका गृह में बच्चियों के यौन शोषण तथा दीगर पीड़ा के बारे में अतुल प्रसाद के फोरवर्ड के कुछ महत्वपूर्ण अंश को कोट कर रहे हैं.
यह रिपोर्ट हमें कुछ अति आवश्यक चिंताओं से अवगत कराती है, जिसे न तो बर्दाश्त किया जा सकता है और न इन सच्चाइयों से मुंह मोड़ा जा सकता है. अतुल ने इस प्रस्तावना में यह भी लिखा है कि ‘इस रिपोर्ट ने परेशान करने वाले सत्य के दरवाजे को खोल दिया है . इस रिपोर्ट के मिलने के बाद हमें इस मामले की तह तक जाना होगा और जांचना होगा’. अतुल ने इतनी तीखी टिप्पणी करते हुए जब यह बात लिखी है तो इससे साफ होता है कि वह इस रिपोर्ट के बाद खासे चिंतित थे और इस मामले को गंभीरता से लेने की बात कह रहे थे. फिर भी इस पर उनके महकमें, उनक सरकार ने लम्बी खामोशी बनाये रखी.
उन्हें इन सब बातों का जवाब देना होगा. क्योंकि व्यवहार में किसी भी महकमे का सुपर बॉस प्रधान सचिव ही होता है. विभाग के मंत्री की जिम्मेदारी आदेश देने तक सीमित रहती है. तो क्या उन्हें निवर्तमान मंत्री ने इस मामले में कदम बढ़ाने से रोका?
इन बातों के बावजूद एक सच्चाई यह भी है कि प्रधान सचिव के मन में अगर सचमुच की चिंता होती, जैसा कि उन्होंने प्रस्तावना में लिखा है तो तत्काल इस मामले को मुख्यसचिव को लिखित तौर पर सूचित करते. लेकिन ऐसा भी कोई प्रमाण अब तक सामने नहीं आया कि रिपोर्ट मिलने के तुरत बाद उन्होंने कोई जल्दबाजी दिखाई हो. उसके इशारे के बिना एक पत्ता तक नहीं हिलता.