मौलाना रहमानी पटना के गांधी मैदान में जनसैलाब को संबंधित करते हुए

गांधी मैदान में लाखों का जनसैलाब जुटा  कर इतिहास रचने के बाद अब इमारत शरिआ 82 साल पुराना इतिहास दोहराने की तैयारी में है. नौकरशाही डॉट कॉम को पता चला है कि आने वाले समय में इमारत सियासी पार्टी के गठन का ऐलान कर सकता है.

मौलाना रहमानी पटना के गांधी मैदान में जनसैलाब को संबंधित करते हुए

[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम, फॉर्मर इंटरनेशनल फेलो फोर्ड फाउंडेशन[/author]

अगर इमारत ने अपनी पार्टी का गठन कर दिया तो यह सेक्युलर राजनीति करने वालें दलों के लिए भारी चुनौती पेश कर सकती है.

ध्यान रहे कि 1936 में  इमारत शरिआ ने मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी बनायी थी. यह पार्टी न सिर्फ  बिहार की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी बल्कि बिहार के पहले प्रधान मंत्री ( अब के मुख्यमंत्री के समतुल्य)  मोहम्मद यूनुस बने थे जो इसी पार्टी के नेता थे.

बीते 15 अप्रैल को इमारत शरिआ ने दीन बचाओ देश बचाओ कांफ्रेंस का आयोजन पटना में किया था. इस कांफ्रेंस में लाखों की संख्या में मुसलमानों का जुटान हुआ था. इस रैली की तुलना 1974 के जेपी आंदोलन की रैली और 1996 के लालू प्रसाद के गरीब रैला से की गयी. गांधी मैदान के किसी कार्यक्रम में किसी एक समुदाय की इतनी बड़ी भीड़ कभी नहीं देखी गयी.

वली रहमानी अमीर ए शरिअत हैं

नौकरशाही डॉट कॉम को इमारत शरिआ के अंदरूनी सूत्रों से पता चला है कि सियासी पार्टी के गठन पर उच्चस्तरीय मंथन चल रहा है. इस बात की पुष्टि इमारत शरिआ के अमीर मौलाना वली रहमानी के उस बयान से भी होती है जिसमें उन्होंने एक समारोह में कहा था कि सियासत कोई शजर ए ममनुआ ( प्रतिबंधित फल) नहीं है. इमारत शरिआ राजनीति से कभी दूर नहीं रहा. उन्होंने कहा कि भविष्य में मुसलमानों को अपनी सियासत के लिए तैयार रहना होगा. उन्होंने याद दिलाया कि इमारत पहले भी मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी का गठन कर चुका है.

इमारत ने 1936 में बनायी थी मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी

गौरतलब है कि  इमारत शरिआ के तत्कालीन अमीर मौलाना सज्जाद  व दीगर लोगों ने 1936 में मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी का गठन किया था. इस पार्टी का गठन मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग की टु नेशन थ्यूरी और कांग्रेस के मुस्लिमों की उपेक्षा के विरोध में किया गया था. भारत के बहुसंख्यक मुसलमानों की तरह बिहार के मुसलमान टु नेशन थ्युरी के खिलाफ थे. इसी बात के मद्देनजर मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी का गठन हुआ था. 1937 में हुए चुनाव में मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी ने मुसलमानों के लिए आरक्षित 40 में से 20 सीटें जीत ली थीं जबकि कांग्रेस को महज 4 आरक्षित सीटों पर कामयाबी मिली थी. इसके बाद एक अप्रैल 1937 को बैरिस्टर मोहम्मद युनूस बिहार के प्रथम प्रधान मंत्री ( अब के मुख्यमंत्री के समतुल्य) बने थे.

सेक्युलर राजनीत करने वाले दलों को खतरा

ध्यान देने की बात है कि आजादी के बाद मुस्लिम नेतृत्व पर भारी संकट आने के बाद बिहार के मुसलमान अनेक सेक्युलर पार्टियों के साथ रहे हैं. पिछले कुछ दशक से मुस्लिम समाज में यह मांग जोरों पर उठती रही है कि दूसरे सामाजिक समुहों की तरह मुस्लिम नेतृत्व को भी स्वतंत्र रूप से अपनी पार्टी का गठन करना चाहिए. अनेक बुद्धिजिवी लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार का उदाहरण देते हैं और कहते हैं कि उनकी तरह क्षेत्रीय पार्टी का गठन किया जा सकता है. गौरतलब है कि असम में इसी तर्ज पर मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने युनाटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का गठन किया है जो वहां की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है.

अगर इमारत शरिआ अपनी राजनीतिक पार्टी का गठन कर देता है तो यह बिहार के क्षेत्रीय दलों- राजद, लोजपा, जदयू समेत कांग्रेस के लिए भी भारी चुनौती पेश कर सकता है.

 

By Editor


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