लाकडाउन में वाहन पास के सहारे बेटी को कोटा से बिहार लाने के मामले में BJP विधायक व नवादा प्रशासन आलोचना की जद में हैं. पर इन दोनों ने कानून की धज्जी उड़़ाने में एक और अपराध किया है.
मुकेश कुमार की रिपोर्ट
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश के अलग-अलग जगहों पर फंसे बिहार के छात्र-छात्रायों और दिहाड़ी मजदूरों से अपील की है कि वह लॉकडाउन का पालन करें और जो लोग जंहा ठहरे हैं वहीं रहें.
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के बीच किसी को बुलाना “नाइंसाफी” है. दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री यह अपील राजस्थान की कोचिंग नगरी कोटा में फंसे बिहारी छात्र-छात्रायों के लिए था जो वापिस बिहार अपने घरों में आना चाहते थे.
मुख्यमंत्री पर यह दबाव तब बढ़ा जब उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने राज्य के छात्रों को लाने के लिए 200 बसों से छात्रों को अपने राज्य बुला लिया.
तैज्सवी का नीतीश को चैलेंज:सरकार अक्षम है तो मुझसे कहे कोटा से मैं ले आऊंगा बिहारी छात्रों को
नीतीश कुमार ने आगे कहा कि कोटा में मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढाई करने वाले ज्यादातर छात्र संपन्न परिवार से आते हैं इसलिए उन्हें खाने और रहने संबंधी किसी संकट का सामना नहीं करना पड़ रहा है, इसलिए जंहा हैं वंही रहकर लॉकडाउन का पालन करें. मुख्यमंत्री ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि “लॉकडाउन के बीच किसी को बुलाना नाइंसाफी है, लॉकडाउन के दौरान किसी को बुलाना संभव नहीं है” पर लगता है यह विचार सिर्फ जनता के लिए है, यह माननीय लोगों पर लागू नहीं होता है.
दरअसल अनिल सिंह, विधायक हिसुआ जो बिहार विधानसभा के सदस्य हैं ने इसी लॉकडाउन के दौरान, न केवल ‘कोटा में फंसे पुत्र ( पुत्री) को लाने’ का काम किया बल्कि मुख्यमंत्री के अनुसार “नाइंसाफी” की है और यह घोषणा कर दी कि इस राज्य में दो-दो विधान चलते हैं.
एक तरफ मुख्यमंत्री जनता को ‘जंहा हैं वंही रहकर लॉकडाउन का पालन करने’ की बात करते हैं वंही दूसरी तरफ उनकी सरकार में शामिल भाजपा के विधायक इसी दौरान अपने बेटे-बेटी को पत्नी सहित वापिस घर ले आते हैं और कहते हैं कि ‘पहले मैं पिता हूँ, बाद में विधायक’ इसलिए मैंने पिता का धर्म और कर्तव्य निभाया.
सवाल यह है कि अगर कोई सामान्य पिता भी अपना कर्तव्य निभाना चाहेगा तो इसी तरह नियमों को धज्जियाँ उड़ाकर माननीय की मदद की जाएगी.
प्रशासनिक अक्षमता
SDO के अधिकार क्षेत्र में नहीं राज्य से बाहर पास निर्गत करना
माननीय विधायक अपने पिता होने का कर्तव्य निभा रहे थे परन्तु नवादा सदर के अनुमंडल दंडाधिकारी अपने कर्तव्य के प्रति घोर लापरवाही कर रहे थे और बिहार सरकार के दिशा निर्देश की की अवहेलना कर रहे थे. बिहार सरकार द्वारा जारी किए गए प्राधिकृत पदाधिकारी का उपयोगकर्ता पुस्तिका के अनुसार संचालन के प्रकार जिले के भीतर, अंतर-जिला और अंतर –राज्यीय हेतु ई-पास निर्गत करने के लिए प्राधिकृत पदाधिकारी जिलाधिकारी है. परंतु गोपनीय शाखा के आदेश संख्या 256 दिनाकं 15.04.2020 को अनिल सिंह के कोटा में फंसे पुत्र को लाने हेतु नवादा (बिहार) से कोटा (राजस्थान) जाने एवं पुन: नवादा (बिहार) वापस आने हेतु प्रतिबंधित अवधि में 16.04.2020 से 25.04.2020 तक का पास जारी किया गया है, उसपर हस्ताक्षर और मुहर नवादा सदर के अनुमंडल दंडाधिकारी का है. जिसमें यह लिखा गया है कि ‘ वाहन परिचालन की अनुमति लोगों को जान-माल की रक्षा हेतु दावा/ पशुचारा/कृषि/अन्य आवश्यक सेवा के लिए इस शर्त के साथ आदेश दिया जाता है कि कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए कोरोना वायरस के रोकथाम हेतु राज्य साकार/जिला प्रशासन नवादा के द्वारा जारी निदेश का अनुपालन करेंगें और सभी व्यक्ति के लिए मास्क लगाना अतिआवश्यक है.
अंडर सेक्रेटरी की गाड़ी का उपयोग किस अधिकार से किया विधायक ने
नवादा सदर के अनुमंडल दंडाधिकारी ने किस अधिकार के तहत यह पत्र निर्गत किया यह सवाल प्रशासनिक चूक का नमूना है या राजकीय नियमों को धत्ता बनाने की चाल. परंतु सबसे अधिक मजेदार है वह गाड़ी नंबर BP01PJ- 0484. सरकारी संसाधनों का दुरूपयोग : —- नवादा सदर के अनुमंडल दंडाधिकारी ने जिस वाहन महिंद्रा स्कोर्पियो S-6 (डीजल) गाडी संख्या BP01PJ- 0484 का पास जारी किया गया है दरअसल वो एक सरकारी वाहन है और भारत सरकार के सरकारी दस्तावेजों में इसके मालिक का नाम ‘अंडर सेकेरेट्री’ दर्ज है.
अगर यह वाहन सरकारी है तो माननीय किस अधिकार से इस वाहन का उपयोग अपने परिवार को कोटा से लाने के लिए कर रहे थे?
सरकारी वाहनों का प्रयोग किसके कहने पर व्यक्तिगत कार्यों के लिए किया गया. सवाल यह भी उठता है कि आखिर यह वाहन किस विभाग के अंडर सेकेरेट्री के पास थी और उन्होंने किस अधिकार से इसका उपयोग माननीय के निजी कार्यों के लिए किया गया. यह जांच का विषय है.
दरअसल यह पूरी कहानी राजनीतिक मर्यादा के दोहरेपन के साथ शुरू होकर प्रशासनिक अधिकारीयों द्वारा नियमों की अवहेलना के रास्ते होते हुए सरकारी तंत्र के लुट के साथ ख़त्म होती है. परन्तु यह ख़त्म होकर भी कई सवाल छोड़ जाते हैं जिनके जवाब शायद कभी मिल पाए.
(लेखक पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में मीडिया के पीएचडी स्कॉलर हैं. यह लेखक के निजी विचार हैं