स्वतंत्रता सेनानी शहीद अब्दुल बारी के शहादत दिवस के अवसर पर पटना में दो कार्यक्रमों द्वार उन्हें याद किया गया. पहला आयोजन बिहार पॉलिटिकल फ्रंट के बैनर तले हुआ जबकि दूसरा आयोजन उत्साही युवाओं की टीम ने किया.
बिहार पॉलिटिकल फ्रंट के प्रमुख एडवोकेट एजाज अहमद व सामाजिक कार्यकर्ता अवौस अमबर की पहल पर बिहार चेम्बर आफ कामर्स में आयोजित समारोह में पहले क्रांतिकारी बहादुर शाह जफर की कब्र को रंगून से भारत लाने का प्रस्ताव पारित किया गया. जबकि इंतखाब आलम व उमर अशफर की पहल पर आयोजित कार्यक्रम में अब्दुलबारी का कारनामों को जीवंत करने की पहल किये जाने की घोषणा की गयी.
28 मार्च 1947 को राजनीतिक प्रतिद्वंदियों द्वारा शहीद कर दिए गए महान स्वतंत्रता सेनानी, बड़े मजदूर नेता, बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी के तात्कालीन अध्यक्ष प्रोफेसर अब्दुल बारी का शहादत दिवस बुधवार को बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के सेमिनार हॉल में मनाया गया ।
पहले कार्यक्रम में रोजमाइन ट्रस्ट के चेयरमैन ने अब्दुलबारी को याद करते हुए कहा कि भावी पढ़ी द्वारा उन्हें खिराज ए अकीदत पेश करने का सबसे उचित तरीका यह है कि हम उनके त्याग और आदर्शों पर चलें. एडवोक्ट एजाज ने कहा कि अब्दुलबारी की कुर्बानियों से हमें प्रेरणा लेने की जरूरत है.
दूसरे कार्यक्रम में प्रोफेसर अब्दुल बारी साहब पर किताब लिखने वाले अशरफ अस्थानवी ने कहा कि सरकारों ने उनकी विरासत को नजरअंदाज किया। सरकारों के साथ साथ इतिहासकारों ने भी प्रोफेसर बारी साहब के साथ नाइंसाफी की है। अशरफ साहब ने विस्तार से प्रोफेसर बारी की शख्सियत से परिचित कराया।
साहित्यकार व जगजीवन राम शोध संस्था के निदेशक श्रीकांत ने ‘साहित्य, समाज और साझी संस्कृति ‘ पर बोलते हुए नई पीढ़ी को बताया कि आने वाले वक़्त ने युवाओं को किन क्षेत्रों पर विशेष तौर पर काम करना है जहां पहले कम काम हुआ है। उन्होंने बताया कि शिक्षा के व्यापारीकरण से हमारे समाज का ताना बाना भी बिगड़ा है । बिहार के वर्तमान साम्प्रदायिक माहौल पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि एक अच्छे समाज के लिए आपस मे सौहाद्र होना चाहिए ।मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए प्रोफेसर अब्दुल बिस्मिल्लाह ने एक भुला दिए गए नायक पर आयोजित इस कार्यक्रम में शामिल होने पर प्रसन्नता जाहिर की । उन्होंने संस्कृत, संस्कृति और राष्ट्र पर विस्तार से बात रखी और वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक परिस्थिती में इससे संबंधित गलतफहमियों पर विस्तार से बताते हुए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बुराइयों को लोगों के सामने रखा उन्होंने कहा कि भारत देश को uniformity नही unity की जरूरत है। उन्होंने भाषा विज्ञान और भाषा तथा संस्कृति के बीच के संबंधों पर व्याख्यान दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार सरूर अहमद ने और संचालन शोधार्थी मो दानिश ने की। अध्यक्षीय भाषण में पत्रकार सरूर अहमद ने युवाओं में सेंस ऑफ हिस्ट्री पर चिंता जाहिर की। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अब्दुल बिस्मिल्लाह प्रमुख वक्ताओं में प्रख्यात पत्रकार अशरफ अस्थानवी, साहित्यकार श्रीकांत , सामाजिक कार्यकर्ता काशिफ यूनुस, प्रोफेसर तनवीर अहमद इत्यादि मौजूद थे। कार्यक्रम का आयोजन वेब पोर्टल सम्पूर्ण क्रांति द्वारा कराया गया था जिसके उमर अशरफ , मो इंतेखाब आलम, मो सैफुल्लाह, अब्दुल सलाम इत्यादि के सक्रिय भागीदारी से सम्पन्न हुआ।