गोपालगंज में राजद की हार ने इन सुलगते सवालों को जन्म दिया है

गोपालगंज में राजद को जीतते जीतते हार का मुंह देखना पड़ा. दर असल यह हार, हार नहीं बल्कि, राजनीतिक जमीन के विस्तार में गच्चा खा जाने की बानगी है.

इर्शादुल हक, हक की बात

गोपालगंज में राजद को जीतते जीतते हार का मुंह देखना पड़ा. दरअसल यह हार, हार नहीं बल्कि, राजनीतिक जमीन के विस्तार में गच्चा खा जाने की बानगी है.

इन बिंदुओं पर गौर करें-

एक

राजद ने वैश्य समाज के मोहन गुप्ता को टिकट दिया. वैश्य समाज बुनियादी तौर पर भाजपा समर्थक रहा है. राजद ने भाजपा की जमीन खोदने के प्रयास में मोहन गुप्ता को टिकट दिया. वैश्यों के गोपालगंज में 50 हजार वोट हैं. पिछले चुनाव में भाजपा को 77 हजार वोट मिले थे. इस बार करीब 68 हजार मिले.

राजद की लाख कोशिश के बावजूद भाजपा के खाते से महज 9 हजार वोट खिसके. इसमें वैश्यों के वोट भी कुछ रहे होंगे. तो दूसरे समुदायों के भी रहे होंगे. इस तरह वैश्यों ने बमुश्किल चार हजार ही वोट राजद को दिये. बाकी पांच हजार अन्य समाजों के रहे होंगे.

ध्यान रखिये कि जिस तरह यादवों के वोट का बड़ा हिस्सा राजद को जाता है उसी तरह वैश्य भी बमुश्किल भाजपा से अलग हो पाते हैं. अगर यादव प्रत्याशी हो, तो यादव वोट भाजपा में चला भी जाता है लेकिन गोपालगंज ने साबित किया कि वैश्य प्रत्याशी उतार देने से भी वैश्य राजद की तरफ नाम मात्र का ही आ पाता है.

दो

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के लोग 2020 के मई-जून से ही इस फिराक में थे कि वह राजद द्वारा दिये गये जख्म का बदला लेंगे. राजद ने तब एआईएमआईएम के पांच में से चार विधायकों को तोड़ कर अपने संग मिला लिया था. उसे गोपालगंज में मौका मिला. उस पर तुर्रा यह कि गोपालगंज चुनाव के ऐन एक दिन पहले एक तस्वीर वायरल हुई. जिसमें कुछ लोग खाकी नीकर और काली टोपी पहन कर आरएसएश की साखा में परेड कर रहे हैं. इस तस्वीर के बारे में बताया गया कि यह राजद प्रत्याशी मोहन गुप्ता की है. यह खबर जंगल की आग की तरह फैली और मुसलमानों का एक हिस्सा जो राजद को वोट देना चाहता था अचानक ओवैसी की झोली में जा गिरा. नतीजा हुआ कि औवैसी की पार्टी को 12 हजार से ज्यादा वोट पड़ गये.

तीन

मामा साधु यादव 2013 से अपने भांजा को हराने में जुटे हैं. तेजस्वी की शादी के समय भी साधु ने कसम खाई थी कि उन्हें छोड़ेंगे नहीं. हालांकि तेजस्वी ने मामा की तरफ ज्यादा वोट खिसकने नहीं दिया. फिर भी उनकी मामी इंदिरा यादव साढ़े आठ हजार वोट खीचने कामयाब रहीं. मतलब साथ है. इन वोटों में यादवों का भी एक हिस्सा था.

अब फिर से गौर कीजिए. राजद की हार में सिर्फ ओवैसी को जिम्मेदार ठहराने वाले, ईमानदारी से विश्लेषण नहीं कर रहे हैं. क्योंकि गोपालगंज में 60 हजार वोट मुसलमानों का है. इनमें 6-7 हजार या दस हजार ही मान लें कि मुसलमानों का वोट रहा होगा तो भी, अगर वैश्यों ने दिल खोल कर मोहन गुप्ता को वोट दिया होता तो राजद को कोई नहीं हरा सकता था. साधु फैक्टर ने अपना असर दिखाया सो अलग.

अब सवाल यह है कि राजद को क्या करना चाहिए.

राजद को इस बात पर गौर करना होगा कि लाख चाह कर भी वह वैश्य वोटों को बड़ा हिस्सा नहीं खीच सकता.

दूसरा असद ओवैसी से पंगा लेने के बजाये उनसे यारी करनी होगी. उन्हें अपने गठबंधन में शामिल करने पर विचार करना चाहिए. हालांकि कुछ लोग इसे जोखिम भरा मानते हैं. लेकिन सवाल यह है कि यही ओवैसी आंध्रप्रदेश में वर्षों तक कांग्रेस के सत्ता सहयोगी रहे हैं. अभी भी तेलंगना सरकार में हिस्सेदार हैं.

यह भी सच है कि पिछले पांच-छह वर्षों में असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी पार्टी को मुसलमानों के एक हिस्से में पैठ बना ली है. वह, यह समझाने में सफल रहे हैं कि अन्य पार्टियों को वोट दे कर जब गुलामी ही करनी है तो क्यों न अपनी पार्टी को वोट करें. चाहे इसका लाभ कोई ले जाये.

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By Editor


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