गुजरात में भाजपा का सत्ता में आ कर भले ही उसने अपनी लाज बचा ली हो लेकिन जमीनी सच्चाई उसके लिए काफी पीड़ा दायक हैं क्योंकि 2014 में सभी 26 लोकसभा जीतने वाली पार्टी को असेम्बली चुनाव में 7 जिलों में खाता तक नहीं खुला है.
इतना ही नहीं भाजपा की चिंता का एक कारण यह भी है कि उसके 8 जिलों में महज एक एक प्रत्याशी जीत सके हैं.
दूसरी तरफ चुनाव नतीजों के आंकड़े देखने से पता चलता है कि भाजपा ने 2013 में जो सात नये जिले बनाये उसमें उसे केवल दो सीटें मिली हैं. चुनाव नतीजे भाजपा के लिए इस लिए भी सरदर्द बढ़ाने वालें हैं कि पिछले 22 वर्षों से लगातार सत्ता में रहने और हिंदुत्व की प्रयोगशाला माने जाने वाले गुजरात के ग्रामीँण क्षेत्रों में उसे कांग्रेस की तुलना में काफी कम सीटें मिली हैं .
सौराष्ट्र के क्षेत्र में भाजपा को सबसे बड़ा नुकसान हार्दिक पटेल के कारण हुआ है.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रदेश की 26 सीटें जीतकर इतिहास रचा था, पर 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में 33 में से 15 जिलों में बीजेपी की करारी हार हुई है। बीजेपी को 7 जिलों में एक भी सीट नहीं मिली, जबकि 8 जिलों में एक-एक सीट से कुछ संतोष हुआ। इस परिणाम से 2019 के लोकसभा चुनाव में भारी उलटफेर हो सकता है। 2013 में बनाए गए 7 नए जिलों से बीजेपी को केवल दो सीटें मिलीं।
मोरबी, गिर-सोमनाथ, अमरेली, नर्मदा, तापी, डांग, अरावली जिले की 21 सीटों में से बीजेपी एक भी नहीं जीत पाई। कांग्रेस को 25% सीटें तो यहीं से मिल गई थी। सुरेन्द्रनगर, देवभूमि द्वारका, पोरबंदर, जूनागढ़, बोटाद, पाटण, महिसागर और छोटा उदेपुर की 26 सीटों में से बीजेपी को एक-एक सीट यानी कुल 8 सीटें मिली हैं। जबकि कांग्रेस 18 पर विजयी रही।
भाजपा की चिंता का कारण यह है कि अगर उसने एक साल में हालात नहीं संभाला तो 2019 में मोदी के गृह राज्य में भारी मुश्किल आ सकती है क्योंकि जिग्नेश मेवानी और हार्दिक पटेल ने कहा है कि वे अभी से भाजपा के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले हैं.