प्रगतिशील लेखक संघ, पटना की ओर से प्रख्यात व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन माध्यमिक शिक्षक संघ भवन में किया गया। विषय था ‘हमारे समय का संकट और परसाई ‘। इस मौके पर  बड़ी संख्या में पटना शहर के बुद्धिजीवी, साहित्यकार, रंगकर्मी, समाजिक कार्यकर्ता सहित समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोग मौजूद थे। पूरे कार्यक्रम का संचालन प्रगतिशील लेखक संघ, पटना के कार्यकारी सचिव जयप्रकाश ने किया।

साहित्य अकादमी सम्मानित कवि अरुण कमल ने बताया ” मेरी भेंट हरिशंकर परसाई से हुई थी तो मैंने उनसे पूछा था की आपके प्रिय व्यंग्य लेखक कौन हैं? तो उन्होंने गोगोल, जोनाथन स्विफ्ट और मार्क तवेन का नाम लिया था। उन्होंने बताया था कि भारत में व्यंग्य भारत में भारतेंदु काल से शुरू होता है। आज का हमारा समय परसाई जी के समय से मिलता जुलता है।

हिंदी में व्यंग्य बहुत कम लिखा जा रहा है। उर्दू में इतना कम व्यंग्य क्यों लिखा जा रहा है। जो सच कहेगा, बिना डरेगा वही व्यंग्य लिखेगा। अभी के समय में व्यंग्य लिखना बहुत मुश्किल काम है। हुकूमत को सबसे ज्यादा इसी बात से डरता है। हंसना ही आलोचना है। परसाई को अपने जीवन काल में ही लग गया था। आरएसएस वालों ने उनकी टांग तोड़ दी थी। परसाई जी बहुत मुफलिसी में रहे। जो मार्क्सवादी है वे लोग जीवन को  ज्यादा समझते हैं। हरिशंकर परसाई इस कारण प्रासंगिक हैं कि वे हमें न्याय की याद दिलाते हैं। ”

व्यंग्यकार और कथाकार संतोष दीक्षित ने कहा ” परसाई जी का लेखन सामाजिक यथार्थवाद को सामने लाता है। ‘प्रहरी’ में उनकी पहली रचना प्रकाशित हुई। वे कहा करते थे कि जो शाश्वत के चक्कर में रहा करता है वह जल्दी मरता है। उन्होंने व्यंग्य को एक विधा के रूप में विकसित किया। परसाई की तुलना कबीर से की जा सकती है। आरएसएस के लोगों ने उन्हें पीटा भी था। तब उन्होंने कहा कि मेरा लेखन सफल रहा। मंहगाई पर उनका एक व्यंग्य है ‘अन्न की मौत’। परसाई ने अपने समय के भय को फैंटेसी के साथ प्रस्तुत किया। ‘इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर’ बड़ा दिलचस्प है जिसमें चांद का प्रधानमंत्री पृथ्वी के प्रधानमंत्री को पत्र लिखता है। ठीक ऐसे ही ‘भोलाराम का जीव’ उनकी चर्चित व्यंग्य रचना है। जिसमें भोलाराम का जीव उसके पेंशन की फाइल में है। यह रचना चेखव की ‘एक क्लर्क से मौत’ से मिलती जुलती है। परसाई जी नारद और हनुमान का खूब उपयोग करते हैं। परसाई ने नौकरी किया लेकिन बाद में नौकरी छोड़ दिया, विवाह नहीं किया। तीन बहनें थी सबका निर्वाह किया उसके बच्चों को पढ़ाया लिखाया। जीवन बहुत कष्टमय था।”

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पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो तरुण कुमार ने  कहा” जब-जब मैं उदास होता हूं समय, समाज को लेकर तो मैं परसाई जी की रचनाओं के पास जाता हूं।

स्वागत वक्तव्य देते हुए प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य उपमहासचिव अनीश अंकुर ने कहा ” हरिशंकर परसाई ने 1939 में मैट्रिक पास किया था। और बहुत कम समय उम्र में ही इनपर परिवार का भार आ गया था। इस द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था। लेकिन उन्होंने काम उम्र में ही समझ लिया था की हिटलर काली ताकतों का प्रतिनिधित्व कर रहा है। दुनिया को पीछे ले जाने वाला है। वे मुक्तिबोध से प्रभावित थे। वे कहा करते थे मुक्तिबोध दुनियादारी में भले छल खा जाएं पर विचार के छल को पकड़ लिया करते थे। परसाई जी बचपन के घटनाओं से  वर्ग चेतना  की समझ हो गई थी।

अध्यक्षीय संबोधन करते हुए प्रख्यात कवि आलोक धनवा ने कहा ” जब मैं परसाई जी से मिला तो उनके सिरहाने मुक्तिबोध की तस्वीर थी। मैक्सिम गोर्की ने अमेरिका में 1904 में  ‘मां जैसा उपन्यास लिखा। परसाई जी यह जानते थे कि मनुष्यता कभी भी पराजित नहीं होगी।  इसी समाज में लोग मनुष्यता के प्रहरी आयेंगे। ”

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By Editor


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