झारखंड में इंडिया गठबंधन विधायक दल की बैठक में फिर से हेमंत सोरेन नेता चुने गए। जल्द ही वे फिर से मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे। रांची में बुधवार को हुई गठबंधन विधायकों की बैठक में सोरेन सर्वसम्मति से नेता चुन लिये गए। उनके फिर से मुख्यमंत्री का पद संभालने पर गठबंधन में काफी विचार-विमर्श हुआ, इसके बाद फैसला लिया गया। झारखंड में चार महीने बाद ही विधानसभा का चुनाव है। सोरेन के फिर से मुख्यमंत्री बनने का निर्णय भाजपा को परेशान करनेवाला है।
रांची हाईकोर्ट ने हेमंत सोरेन को जमानत देते हुए यह भी कहा कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है। जाहिर है उन्हें जानबूझ कर फंसाया गया, ताकि गठबंधन की सरकार गिर जाए और एक उभरते हुए आदिवासी नेता की राजनीतिक हत्या हो जाए। हाईकोर्ट के फैसले से झारखंड मुक्ति मोर्चा तथा गठबंधन की नैतिक जीत हुई और भाजपा की नैतिक हार भी हुई।
जेल से निकलने पर हेमंत सोरेन दुबारा मुख्यमंत्री बनने को इच्छुक नहीं थे। चुनाव में सिर्फ 6 महीने बचे हैं, ऐसे में चंपई सोरेन को हटाना नकारात्मक संदेश दे सकता था। लेकिन गठबंधन की बैठक में माना गया कि सोरेन के साथ हुए अन्याय से लोगों में रोष है और सोरेन के प्रति सहानुभूति है। गठबंधन चाहता है कि सोरेन के मुख्यमंत्री बनने से जनता की सहानुभूति का लाभ मिलेगा।
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एक दूसरी वजह भी है। चंपई सोरेन के मुख्यमंत्री रहते अफसरों में वह मुस्तैदी नहीं दिखी, जो सोरेन के मुख्यमंत्री रहते दिखी थी। प्रशासन की ढिलाई का चुनाव में नकारात्मक असर हो सकता था। अब अगर हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री होंगे, तो प्रशासन भी सरकार के निर्णयों को लागू करने में मुस्तैद रहेगा। अब भी चार महीने बचे हैं। इन चार महीनों में भाजपा को कोई नया मौका नहीं देने तथा आक्रामकता बनाए रखने के लिए हेमंत सोरेन का मुख्यमंत्री बनना गठबंधन की राजनीति के लिहाज से लाभदायी रहेगा। इस बीच कल्पना सोरेन की लोकप्रियता भी बढ़ी है, जिसका फायदा भी गठबंधन को मिलेगा।
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