तो कौन-कौन होगा सोरेन का संभावित सेना नायक

तो कौन-कौन होगा सोरेन का संभावित सेना नायक

झारखंड में हेमंत सोरेन की ताजपोश के साथ अब चर्चा इस बात की है कि किन 17 विधायकों के भाग्य का पिटारा खुलेगा और वे मंत्री बनेंगे. झारखंड ब्युरो प्रमुख मुकेश कुमार से जानिए.

रांची।झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 में ऐतिहासिक सफलता के बाद हेमंत सोरेन झारखंड के 11वें मुख्यमंत्री के तौर पर 29 दिसंबर को शपथ लेंगे। राजधानी रांची के मोरहाबादी मैदान 29 दिसंबर को दोपहर एक बजे राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू हेमंत सोरेन को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएंगी।

 

हेमंत के साथ कुछ विधायक भी मंत्री पद की शपथ ले सकते हैं। महागठबंधन को झारखंड की जनता ने 47 सीटों का जनादेश दिया है। इसमें झामुमो के खाते में 30 सीट, कांग्रेस को 16 और राजद को 1 सीट पर कामयाबी मिली है।

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कुल विधानसभा सीट के 15 फीसदी के नियम के अनुसार 81 विधानसभा सीटों वाले झारखंड में मुख्यमंत्री समेत अधिकतम 12 मंत्री ही हो सकते हैं। अनुमान के मुताबिक झामुमो 30 सीट जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई है इसलिए झामुमो के खाते में मुख्यमंत्री के अलावा 5 मंत्री आ सकते हैं। वहीं कांग्रेस के खाते में भी 5 मंत्री और राजद के लिए 1 मंत्री पद की चर्चा है। कांग्रेस उपमुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष पद भी चाहेगी। मंत्रिमंडल की रूपरेखा तैयार करने में आमतौर पर अनुभव, क्षेत्र, जाति और धर्म का भी ख्याल रखा जाता रहा है।

चंपई सोरेन-

कोल्हान में कांग्रेस के साथ मिलकर झामुमो ने क्लीनस्वीप किया है। इस लिहाज से इस क्षेत्र से कम से कम दो चेहरे हेमंत मंत्रिमंडल में शामिल हो सकते हैं। कद और वरिष्ठता के हिसाब से चंपई सोरेन का नाम सबसे पहले आता है। झारखंड अलग राज्य के आंदोलनकारी रहे चंपई सोरेन इससे पहले 5 बार विधायक रह चुके हैं। आदिवासी बहुल इलाकों में इनकी अच्छी पकड़ है और शिबू सोरेन के काफी करीबी माने जाते हैं।

जोबा मांझी-

कोलहान से दूसरा नाम जोबा मांझी का है। मनोहरपुर सीट से जोबा मांझी पांचवीं बार विधायक चुनी गई हैं। 1995 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने और जीतने के बाद 2000, 2005 और 2014 में भी विधायक बनीं। हालांकि इस बीच बीजेपी के गुरु चरण नायक ने 2009 चुनाव में उन्हें हरा दिया था। अब एक बार फिर चुनाव जीतने पर जोबा मांझी को महिला कोटे से मंत्री पद मिलने की संभावना है।

समीर महंती-

बहरागोड़ा में कुणाल षाड़गी को हराने वाले समीर महंती को भी जगह मिल सकती है क्योंकि कोल्हान क्षेत्र में उड़िया वोटरों का अच्छा खासा प्रभाव है।समीर ने झामुमो से राजनीति की शुरूआत की थी। विधानसभा चुनाव 2004 और 2009 में वे आजसू की टिकट पर चुनाव लड़े। इसके बाद 2014 में झामुमो की टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन कुणाल षाड़ंगी से हार गए। हार के बाद समीर बीजेपी में शामिल हो गए लेकिन चुनाव के पहले उन्होंने घर वापसी की और झामुमो के टिकट पर जीत दर्ज की।

नलिन सोरेन-

संथाल प्रमंडल के लिहाज से शिकारीपाड़ा से लगातार सातवीं बार जीत दर्ज करने वाले नलिन सोरेन मंत्री पद के बड़े दावेदार हैं। उन्होंने 1985 में पहली बार निर्दलीय चुनाव लड़ा था। इसके बाद 1990 में पहली बार झामुमो की टिकट पर जीता चुनाव और तब से लगातार जीत रहे हैं। झामुमो के कद्दावर नेताओं में शुमार नलिन सोरेन राज्य में कृषि मंत्री का पद संभाल चुके हैं।

स्टीफन मरांडी-

संथाल प्रमंडल से स्टीफन मरांडी को भी जगह मिलने की संभावना है। महेशपुर सीट से जीते स्टीफन मरांडी एसपी कॉलेज दुमका में संथाली विषय के प्रोफेसर थे। वे दुमका से 1985 से 2005 तक लगातार विधायक चुने गए। विधानसभा चुनाव 2005 में वे निर्दलीय लड़े और हेमंत सोरेन को हरा दिया। इसी दौरान 2006 में मधुकोड़ा के कार्यकाल में स्टीफन को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। 2009 में कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने दोबारा हेमंत को हराया। 2014 में स्टीफन मरांडी झामुमो में वापस लौट आए और चुनाव जीते। विधानसभा चुनाव 2019 उन्होंने फिर से जीत दर्ज कर अपनी कुर्सी पक्की कर ली है।

जगरनाथ महतो-

उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल से डुमरी विधायक जगरनाथ महतो ने अपने सियासी सफर की शुरुआत झामुमो से की। 2005, 2009, 2014 और 2019 में वे लगातार 4 बार विधायक चुने गए हैं। जीत का चौका लगाने वाले जगरनाथ महतो को मंत्री पद मिलना तय माना जा रहा है।

मथुरा महतो-

उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के टुंडी से विधायक मथुरा महतो की गुंजाइश दिख रही है। मथुरा महतो को शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के लिए जाना जाता है। वे कई स्कूल और कॉलेज का संचालन करते हैं। झामुमो से राजनीति शुरू करने वाले मथुरा विधानसभा चुनाव 2005 में पहली बार विधायक चुने गए। इसके बाद 2009 में दोबारा जीत दर्ज की लेकिन 2014 के चुनाव में राजकिशोर महतो से हार गए। अब एक बार फिर वापसी की है और मंत्री पद के प्रबल दावेदारों में एक हैं। इन्हें बीजेपी-जेएमएम सरकार मंत्री पद का अनुभव भी है।

जीगा होरो-

दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के लिहाज से झामुमो ने गुमला में शानदार प्रदर्शन किया है। 2014 में भाजपा ने सिसई से विधायक रहे दिनेश उरांव को विधानसभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी थी इसलिए संभव है कि दिनेश उरांव को हराने वाले जीगा होरो को भी मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है।

आलमगीर आलम-

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आलमगीर आलम पूर्व में विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं लेकिन विधानसभा नियुक्ति घोटाले में वे सवालों के घेरे में आए थे। आलमगीर इससे पहले पाकुड़ सीट से 2000 और 2005 में बीजेपी के बेनी प्रसाद को हराकर विधायक बने थे। 2005 में उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली थी। 2009 के विधानसभा चुनाव में वे झामुमो के अकील अख्तर से हार गए लेकिन 2014 में उन्होंने अकील अख्तर को हराकर बदला पूरा कर लिया। 2014 में वे कांग्रेस विधायक दल के नेता भी रहे हैं।

रामेश्वर उरांव

झारखंड पुलिस के एडीजी रहे रामेश्वर उरांव लोहरदगा सीट से जीते हैं। वे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। इसके साथ ही दो बार सांसद और केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। वरिष्ठता के लिहाज से रामेश्वर उरांव को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है।

बन्ना गुप्ता-

जमशेदपुर पश्चिम से जीते बन्ना गुप्ता ऑटो चालक से राजनेता बने हैं। उन्होंने 2000 और 2005 में सपा के टिकट से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। 2009 में वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते और हेमंत सरकार में मंत्री पद मिला। 2014 में सरयू राय से कांटे की टक्कर में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। अब दूसरी बार विधायक बनने के बाद फिर से मंत्री पद की आस लगाए बैठे हैं।

इरफान अंसारी-

जामताड़ा से विधायक इरफान अंसारी को राजनीति पिता फुरकान अंसारी से विरासत में मिली है। इनकी गिनती प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में की जाती है। इरफान कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष हैं। 2005 में उन्होंने पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन बीजेपी के विष्णु भैया से हार गए। 2014 में वे विधानसभा पहुंचे और अब एक बार फिर जीत दर्ज की है।

रामचंद्र सिंह-

पहली बार वे 1995 में राजद के टिकट से विधायक बने थे। उन्होंने 6 बार से विधायक रहे यमुना सिंह को हराया था। इसके बाद 2005 में दोबारा विधायक चुने गए। पिछले विधानसभा चुनाव में वे महज 0।88 फीसदी के मार्जिन से बीजेपी उम्मीदवार हरिकृष्ण सिंह से हार गए थे। इस बार उन्होंने दमदार वापसी की है।

राजेंद्र सिंह-

बेरमो से विधायक राजेंद्र सिंह कांग्रेस के कद्दावर नेता और बड़े मजदूर नेता के रूप में जाने जाते हैं। इसके साथ ही उन्हें राहुल गांधी और सोनिया गांधी का करीबी माना जाता है। राजेंद्र बेरमो विधानसभा से छठी बार विधायक चुने गए हैं और बिहार-झारखंड दोनों राज्यों में मंत्री पद संभाल चुके हैं।

अंबा प्रसाद-

बड़कागांव से चुनाव जीतने वाली सबसे कम उम्र की विधायक हैं अंबा प्रसाद। अंबा को राजनीति विरासत में मिली है। इनके पिता योगेंद्र साव मंत्री रह चुके हैं लेकिन फिलहाल जेल में हैं वहीं मां निर्मला देवी राज्यबदर हैं। एनटीपीसी के लिए जमीन अधिग्रहण के दौरान बड़का गांव गोली कांड में योगेंद्र पर भीड़ को उकसाने और दंगा भड़काने का आरोप है। अंबा तेजतर्रार युवा छवि रखती हैं। युवा वोटरों पर पकड़ रखने के लिए उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है।

ममता देवी-

रामगढ़ से चुनाव जीतने वाली ममता जिला परिषद की सदस्य हैं। बहुचर्चित गोला गोलीकांड में वे जेल जा चुकी है।कांग्रेस से पहले ममता झामुमो की सदस्य थी। रामगढ़ में आजसू के गढ़ में सेंध लगाकर उन्होंने अपनी सीट पक्की कर ली है।

सत्यानंद भोक्ता-

राजद कोटे से सत्यानंद भोक्ता का मंत्री बनना तय माना जा रहा क्योंकि राजद के 7 उम्मीदवारों में केवल एक सत्यानंद भोक्ता ने ही जीत दर्ज की है।राजनीतिक गलियारों में इन नामों की चर्चा तेज है।बताया जा रहा है कि मंत्रिमंडल के चेहरे तय कर लिए गए हैं। जल्द ही विभागों के बंटवारे पर भी फैसला हो जाएगा।

 

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By Editor


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