जब से दलित आदिवासी अपने हितों के लड़ाई के लिए सड़कों पर उतर चुके हैं तो नीतीश कुमार की बेचैनी बढ़ गयी है। वो आनन-फानन में दलित आंदोलन को खत्म करने और उनके ग़ुस्से को शांत करने के लिए इस तरह के फैसले ले रहे हैं।
पटना : हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेकुलर ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर प्रोत्साहन राशि के नाम पर दलितों को खरीदने का आरोप लगाया है। नीतीश कैबिनेट के फैसले पर कड़ा एतराज जाहिर करते हुए हम के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉक्टर दानिश रिजवान ने कहा कि नीतीश कुमार को लगता है कि ऐसा करके वह दलितों का वोट खरीद लेंगे, पर ऐसा होगा नहीं। बिहार और देश की जनता जान चुकी है कि भाजपा और नीतीश कुमार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ये दलितों का कभी विकास नहीं कर सकते, बस उन्हें चुनाव के समय दलितों की याद आती है।
उल्लेखनीय है कि नीतीश सरकार ने दलित एवं आदिवासी छात्रों को बीपीएससी एवं यूपीएससी परीक्षा के पीटी पास करने पर 50 हजार और 1 लाख रुपय दिये जाने की घोषणा की है।
सरकार के इस फैसले को दलितों को दी जा रही लालच बताते हुए डॉक्टर रिजवान ने कहा कि जब से दलित आदिवासी अपने हितों के लड़ाई के लिए सड़कों पर उतरे हैं तब से नीतीश कुमार की बेचैनी बढ़ गयी है। वो आनन-फानन में दलित आंदोलन को खत्म करने और उनके गुस्से को शांत करने के लिए इस तरह के फैसले ले रहे हैं।
डॉ रिजवान ने कहा कि नीतीश कुमार अगर सही में दलितों के हित की बात कर रहे हैं, तो उन्हें सबसे पहले एससी एसी एक्ट पर अध्यादेश की मांग करनी चाहिए न कि पैसे का लालच दिखा गरीब दलितों को गुमराह करना चाहिए।
हम प्रवक्ता ने कहा कि आजकल दलितों के हित की बात करने वाले नीतीश कुमार आखिर इस बात को क्यों नहीं सोंचते कि राज्य में दलितों के बच्चे आखिर स्कूल क्यों नहीं जा रहें और जब वह स्कूल जाएंगे ही नहीं तो महाविद्यालयों में नामांकन कैसे लेंगें। ऐसी स्थिति में एससी एवं एसटी के छात्रों का परीक्षा पास करने का सवाल ही कहां होता है।
डॉ दानिश ने कहा कि एक तरफ जहां राज्य में सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण खत्म कर दिया गया है, दिन-प्रतिदिन दलितों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। जहानाबाद, आरा, गया सहित राज्य के हर जिलों में दलित लड़कियों के साथ बलात्कार की घटना घट रही है और इन तमाम घटनाओं पर चुप रहने वाले मुख्यमंत्री तो अचानक यह दलित प्रेम कहा से आ गया।
दानिश ने पासवान जाति को महादलित में शामिल करने के कैबिनेट के फैसले को नौटंकी करार करते हुए याद दिलाया कि यह निर्णय जीतन राम मांझी ने मुख्यमंत्री रहते 14 फरवरी, 15 को अपने कैबिनेट में पास कर दिया था, पर पासवान विरोधी नीतीश कुमार ने उसे बदल दिया था और अब वक्त की नज़ाकत और वोट बैंक की सियासत को ध्यान में रखकर उसी फैसले को फिर से लागू कराया गया है।