शांति और भाईचारे का विश्व गुरू है भारत

भारत अपने आध्यात्मिक पांडित्य व अंतरधार्मिक सौहार्द की परम्परा के कारण शांति के प्रति सदा वचनबद्ध रहा है और पूरे विश्व को अपना परिवार मानता है.

‘वसुदैव कुटुम्बकम’ अर्थात सारी कायनात खुदा की. भारत इसी फलसफा को मानता है.

भारत ने हमेशा ही विभिन्न देशों की सियासी सरहदों के परे जा कर मानवता के प्रति मधुर संबंधो को मजबूत बनाने में प्रमुख भूमिका निभाता रहा है. ऐसा करने में हम न तो धार्मिक और न ही नस्लीय भेदभाव को प्राथमिकता देते हैं.

वैश्विक एकता को बनाये रखने के लिए, सामाजिक घृणा को समाप्त करने के लिए और विश्व शांति के लिए नेताओं के साथ आम जनों के लिए भी उच्च मूल्यों की जरूरत है ताकि पूरे संसार को एक इकाई के तौर पर स्थापित किया जा सके. इसे हम तौहीद या एक ब्रह्म भी कहते हैं.

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आस्था और पंथ के परे जा कर हर भारतीय, हिंसा, भेदाभाव और वर्चस्व की मानसिकता को अस्वीकार करता है. लेकिन इसके लिए जरूरी कारक यह है कि धार्मिक नेता अंतर्रधार्मिक संबंधों और भाईचारे के माहौल का प्रचार-प्रसार करें. कट्टरवाद को हतोत्साहित करें और धार्मिक ग्रंथों की गलत व्याख्या को रोकें.

विश्व गुरू बने रहने के लिए

समाज में खाई बढ़ाने का नतीजा हिंसा और नफरत के रूप में सामने आता है. दर असल धर्म मानव समुदाय की भलाई के लिए है. लिहाजा युवाओं को सौहार्द के माहौल में विकसित करने की जरूरत है क्योंकि ये ही हमारे समाज के भविष्य की पूंजी है जो आगे चल कर वैश्विक शांति के लिए काम कर सकते हैं.

एक खूबसूरत विश्व के निर्माण के लिए शांति का होना सबसे महत्वपूर्ण है. तभी हम एक ऐसे समाज का विकास कर सकते हैं जहां न अलगाववाद हो और न ही आपसी तनाव.

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इस्लाम का मूल दिशानिर्देश भी यही है कि परिवार ही शांति की बुनियादी इकाई है.इसके लिए हमें बच्चों के लालन पालन में इसी दिशा निर्दे के तत्व का पालन करना चाहिए. अगर भारत को दुनिया में शांति, अमन व भाईचारा कायम करने का अपना कर्तव्य निभाना है तो उसके नागरिकों को अपनी निजी आस्था और अकीदे के दायरे से ऊपर उठ कर सभी के साथ बेहतर समझ की संस्कृति विकसित करनी होगी.

 

By Editor