आध्यात्मिक आत्म – विकास के माध्यम से मानवजाति की सेवा पर सूफीवाद द्वारा दिया गया बल भारतीय संदर्भ में एक सिद्ध घटना है। चूंकि यह इस्लाम का एक मत नहीं है बल्कि यह जीवन की एक राह है, इसलिए इसे विभिन्न मतों के बीच की खाई को पाटने वाले के रूप में देखा गया है। इसके अलावा, सांस्कृतिक मेल के प्रति इसका झुकाव हिंदू – मुस्लिम एकता के लिए एक आधार प्रदान कर सकता है जिसकी इस समय देश में आवश्यकता है। हालांकि सूफीवाद इस्लाम धर्मशास्त्रीय परंपराओं के बीच मूलभूत असहमतियों को मानता है, किंतु उसका विश्वास है कि इससे शांति और आपसी समझ के माध्यम से समस्याओं से निपटा जा सकता है । वर्तमान भारतीय राजनैतिक परिदृश्य में, धार्मिक परंपराओं, विशेष रूप से हिंदू – मुसलमानों की परम्पराओं को शांति और आपसी समझ के सिद्धांत पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है ताकि लोकतंत्र ठीक से कार्य करे और आपसी सौहार्द्र के सिद्धांत को बनाए रखा जा सके।
सूफी परंपरा का विस्तार संपूर्ण भारत में है। इसके संतों और विद्वानों ने हमेशा कट्टरता और अतिवादिता का विरोध किया है, चाहे वे इस्लामिक धर्मशास्त्रियों के हों अथवा अन्य धर्मों के विद्वानों के । उनका ध्यान हमेशा भारत की एकता अखंडता और विविधता के संरक्षण के लिए विभिन्न धर्मों की एकता पर रहा है । इस्लामिक परंपरा में, सूफी इस्लाम आशा करता है कि मुसलमानों को हमेशा सैद्धांतिक मसलों और साम्प्रदायिक मतभेदों का त्याग कर देना चाहिए ताकि इस्लाम की शांति का संदेश उसके अनुयायी महसूस कर सकें और संपूर्ण विश्व में फैले । भारत में सूफ़ीवाद हिन्दु-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। ये किसी धर्म विशेष से जुड़ी हुई प्रथा नहीं बल्कि भारत की परंपराओं का मिश्रण है। जितने भी दरगाह हैं हिन्दुस्तान में उनसे ही पनापा है ये सूफ़ी परंपरा। जिसमें मन्दिर और मस्जिद का संगम है।