जम्हूरियत में मजहबी कट्टरता व अतिवाद की कोई जगह नहीं
हमारे प्यारे देश हिंदुस्तान में जम्हूरियत की जड़े मजबूती के साथ जमी हुई है जहां हर इंसान को आजादी है.यहां पर नमाज पढ़ते वक्त यह खतरा नहीं है कि कोई हमलावर आकर मस्जिद में बम फेंकेगा, जैसे कि पाकिस्तान में आम बात है.
हिंदुस्तान में दहशतगर्द तंजीमों के पैर ना पसार पाने व हिंदुस्तानी अवाम को ना बहका पाने का सबसे बड़ा कारण यह है कि हिंदुस्तानी जम्हूरियत की जड़े गहराई के साथ जमी हुई हैं. जो मुट्ठी भर मुल्क के शहरी ऐसे तंजीमों के झांसे में आए हैं वह नासमझी की वजह से उनका समर्थन करते हैं.
इस मामले में एक महत्वपू्र्ण बात यह है कि हिंदुस्तान में आम नागरिकों में ऐसी दहशतगर्द तंजीमों के षड्यंत्र की बखूबी जानकारी है जिसके कारण वे उन्हें अच्छी तरह पहचानते हैं. ऐसे में हमें खुलकर उन्हें इस तरह के दहशतगर्दी तंजीमों की सच्चाई बतानी होगी.
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हम यह मानते हैं कि हम सब एक आदम और हव्वा की औलाद है और हर इंसान आपस में एक दूसरे के रिश्तेदार हैं इसलिए हमें किसी के खिलाफ गलत बोलने का हक नहीं है.
कानून किसी भी व्यक्ति को किसी के खिलाफ उसके धर्म जाति, रंग या नस्ल के आधार पर बुरा भला नहीं कह सकता. अगर कोई व्यक्ति अपने बयानों से समाज में नफरत फैलाता है वैसे व्यक्ति को 6 महीने से लेकर 10 साल की सजा हो सकती है.
कुरान के एक सुरा में कहा गया है कि किसी पर भी जबरदस्ती अपने दीन को थोपने की कोशिश ना करो और ना किसी के मजहब को बुरा भला कहो और ना ही उनके देवी देवताओं को. इंसान कुदरती और फितरी तौर पर अमन पसंद है और दहशतगर्दी कुदरती उसूलों के खिलाफ है.
इस्लाम की तालीम
कोई भी व्यक्ति नफरत और फसादों से भरी जिंदगी नहीं जीना चाहता है.कुछ तत्व आपस में फूट डलवा कर लोगों को लड़ाते हैं इसलिए हमें ऐसे लोगों की पहचान कर पूरे समाज के सामने उन्हें उनके गुनाहों का एहसास कराना पड़ेगा.और जब हम मुआसरे में एक दूसरे के साथ प्यार मोहब्बत के साथ रहेंगे तो मुआसरे का मुस्तकबिल सुनहरा होगा.इस्लाम भी इन्हीं तालीम में यकीन करता है.
आज अतिवाद और दहशतगर्दी पूरी इंसानियत के लिए बहुत बड़ा खतरा है
लिहाजा हर जिम्मेदार शहरी खासतौर पर मजहबी रहनुमाओं की यह जिम्मेदारी बनती है कि दहशतगर्दी व हिंसा से जुड़े लोगों को बेनकाब करें और नौजवानों के मुस्तकबिल को बर्बाद होने से बचाएं.