प्रकृति हमेशा तमाम जीवों के बीच संतुलन बनाये रखती है. अल्लाह ताला यह काम अपने मखलूक में आपसी हमदर्दी व खैरसगानी का जज्बा मजबूत करके यह काम लेता है.
तमाम मखलूकों में इंसान सबसे ज्यादा विकसित है. एक सामाजिक प्राणी होने के नाते इंसान अपने चारों ओर बसे जीवों के प्रति ज्यादा हमदर्दी रखने के प्रति जवाबदेह है. लेकिन इस जवाबदेही को निभाने में इंसानों को उसके वर्चस्ववादी नजरिये, घृणा और क्रोध पर नियंत्रण रखने की जरूरत है.
और यह तभी संभव है जम इंसान मेडिटेशन और इच्छाशक्ति के बल पर ही अल्लाह ताला से जुड़ा जा सकता है. इस बात का उल्लेख मौजूद है कि पैग्मबर साहब के ऊपर समय समय पर ऐसे इल्म नाजिल होते रहे और उन्होंने अपने अनुयायियों को इसकी जानकारी दी. लेकिन समस्या तब खड़ी होती है जब लोग इन आयतों की व्याख्या के संबंध में एक दूसरे के प्रति असहमत होने लगते हैं और इसके नतीजे में आपसी नाइत्तेफाकी के कारण हिंसा और घृणा के भाव पनपने लगते हैं.
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इन मतभिन्नताओं को खत्म करने के लिए हममें आंतरिक प्रकाश और बाहरी दुनिया के साथ सकारात्मक संवाद जरूरी है. खुदा की वहदानियत ( एक ईश्वर की मान्यता) को स्वीकार करने के बाद हमें अल्लाह की तमाम मखलूकात के साथ सद्भावपूर्ण संबंध बनाने की जरूरत है.
तब ही जा कर अल्लाह की मखलूकात के साथ हम हमदर्दी का बरताव कर पायेंगे. इसके लिए हमारे अंदर इच्छाशक्ति की जरूरत है और तभी हम अपनी इस इच्छाशक्ति के बल पर आपसी सौहर्द और शांति कायम कर सकेंगे. इसके लिए मेडिटेशन के तौर पर सूफियों ने व्हिरलिंग डांस का भी सहारा लिया है. सूफियों ने इस खास रक्स की बदौलत लोगों में आपसी भाईचारे और हमदर्दी को मजबूत किया है.