शाहनवाज आलम
इं. राजेंद्र प्रसाद की पुस्तक ‘जगजीवन राम और उनका नेतृत्व’ एक ज़रूरी और महत्वपूर्ण किताब है। 289 पृष्ठों की इस पुस्तक में 22 अध्याय है। बाबूजी के 76 दुर्लभ आकर्षक फोटो भी हैं।
यह पुस्तक जगजीवन राम और आंबेडकर के संबंधों को तथ्यों के साथ खंगालती है और साबित करती है कि दोनों महापुरुष समतामूलक समाज बनाने के लक्ष्य के प्रति समर्पित योद्धा थे। जगजीवन राम ने एक भाषण में कहा डॉ आंबेडकर ने आरक्षण की जो बुनियाद रखी उस पर मैंने महल खड़ा किया है। उस साँचे में मैंने रंग भरा है।
6 दिसंबर 1956 को डॉ0 आंबेडकर के निधन के समय बाबूजी संचार और नागरिक उड्डयन मंत्री थे। उन्होंने दिकोटा हवाई जहाज से उनके पार्थिव शरीर और उनके परिजनों को दिल्ली से मुंबई ले जाने की व्यवस्था की। उस समय यह सुविधा किसी सांसद को उपलब्ध नहीं थी। बाबूजी ने नियमों को शिथिल करते हुए ऐसा आदेश दिया था। (पेज 59)
इंदौर की महू सैनिक छावनी के जिस बैरक में डॉ0 आंबेडकर का जन्म हुआ था वह रख रखाव न होने के कारण जर्जर होकर गिरने लगा था। जिस कारण वह खाली करा दिया गया था। 1977 को कुछ दलितों और बौद्ध भिक्षुओं ने उस जगह पर चुपके से एक चबूतरा बना कर डॉ आंबेडकर जन्म भूमि स्मारक स्थल लिख कर बैनर टांग दिया। जिसे बाद में सेना के अधिकारियों ने तोड़ दिया। जब यह बात रक्षामंत्री बाबूजी को लोगों ने बताई तो उन्होंने तत्काल उस जगह को सेना के क़ब्ज़े से हटाकर उस स्थान का आवंटन डॉक्टर आंबेडकर जन्म स्थल स्मारक कमेटी को करने का निर्देश सेना के अधिकारियों को दिया।
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‘गांधी, जगजीवन राम की निंदा के मायने’ अध्याय आंबेडकर और गांधी के संबंधों पर नये नज़रिए से रोशनी डालता है। आंबेडकर का गांधी पर क्या असर पड़ा यह महत्वपूर्ण और नया नज़रिया है। ‘शुरू में गांधी ग्राम स्वराज्य को मानने वाले सनातनी, वर्ण व्यवस्था के मानने वाले और संसदीय लोकतंत्र के विरोधी थे। इसी गांधी का सनातनी हिंदू ताकतें समर्थन करती थीं। लेकिन आंबेडकर के प्रहार ने गांधी को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित किया। उन्हें बदल दिया। इस कारण गांधी सोशलिस्ट नेहरू और सामाजिक क्रांतिकारी आंबेडकर के विचारों से प्रभावित हुए और अपने नज़रिए को बदला। इस कारण उन्होंने देश की बागडोर नेहरू और आंबेडकर को सौंपने का निर्णय लिया।
यह सभी जानते हैं कि संविधान सभा में आंबेडकर को गांधी जी के कहने पर ही नेहरू ने मंत्रिमंडल में लिया था। डॉ0 आंबेडकर ने संविधान सभा में खुद कहा था “मैं कांग्रेस का घोर विरोधी रहा हूँ इसलिए जब संविधान सभा ने मुझे प्रारूप समिति के सदस्य के लिए चुना तो मुझे बहुत आश्चर्य हुआ था। मुझे तब और भी आश्चर्य हुआ जब मुझे उस समिति का अध्यक्ष बनाया गया।”
बाबूजी सामाजिक न्याय के लिए संवैधानिक आरक्षण के प्रबल हिमायती थे। वे कहते थे कि आरक्षण का प्रश्न रोटी का प्रश्न नहीं है । यह सामाजिक क्रांति लाने का जरिया है ।आरक्षण गरीबी उन्मूलन का कार्यक्रम नहीं है।
बाबूजी ने विभिन्न मंत्रालयों के ज़रिये समाज को बदलने वाले अनगिनत काम किये। मसलन, अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए प्रोमोशन में आरक्षण का आदेश 1957 में रेल मंत्रालय से शुरू किया। उन्होंने रेल मंत्री रहते हुए स्टेशनों पर मेहतर जाति के लोगों को पानी पिलाने के लिए नियुक्त किया जिन्हें पानी पांडे या वाटर मैन कहा से जाता था। उस समय इसका सवर्णों ने बहुत विरोध किया। वो लोग अक्सर प्यासे रह जाते थे लेकिन रेलवे का पानी नहीं पीते थे। रक्षा मंत्री के रूप में भारत – पाक युद्ध में बेमिसाल विजय और बांग्लादेश के गठन में उनके कार्य तथा हरित क्रांति को लाने के लिए उनके प्रयास इतिहास के स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
जगजीवन राम जी नैसर्गिक विद्रोही थे। कभी भी जातिगत अन्याय बर्दाश्त नहीं किया उन्होंने। 1946 में परिवार सहित वो केंद्रीय श्रम मंत्री रहते जगन्नाथ पुरी गए थे। पंडों ने दलित होने के कारण मंदिर में जाने से रोक दिया। उन्होंने वहीं पर विरोध स्वरूप बड़ी सभा की।
धर्मांतरण पर उनके विचार क्रांतिकारी और वैज्ञानिक थे। वे धर्म परिवर्तन का कड़ा विरोध करते हैं। बाबूजी आंबेडकर की तरह ही हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना को खारिज करते थे। वे कहते थे कि भारत कब रहा है हिंदू राष्ट्र? कब हिंदू के रूप में लोगों की स्वाभाविक पहचान रही है? किसी से पूछो कौन हो? वह कहेगा ब्राह्मण हूँ, राजपूत हूँ, बनिया हूँ, चमार हूँ। यदि कोई अपने को हिंदू कहता है तो लोग तत्काल पूछते हैं कि कौन जाति के हो। यहाँ किसी शासक समूह ने ख़ुद को हिंदू कहा। यहाँ तो जातियों का शासन रहा है। यहाँ हिंदू राष्ट्र कभी नहीं था। यहाँ हिंदू मानव की भावना कभी नहीं रही है।
पुस्तक का नाम-जगजीवन राम और उनका नेतृत्व
पुस्तक का आठवां संस्करण
लेखक- इं राजेंद्र प्रसाद
प्रकाशक – रेडशाइन पब्लिकेशन । एमेजन. इन, किंडल, गुडरीडस, गुगल बुक्स और फ्लीपकार्ट पर उपलब्ध।
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