महाराष्ट्र में शिव सेना और NCP के साथ सरकार बनाने की कोशिशों के Jamiat Ulama i Hind के अध्यक्ष Maulana Arshad Madani ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख कर चेताया है कि यह कांग्रेस के लिए घातक कदम होगा.
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सवाल यह है कि मौलाना मदनी को भारतीय सियासत के इतिहास की जानकारी नहीं है? क्या उन्हें नहीं पता कि भारत की राजनीति में अनेक बार विचारधाराओं की लकीरें अपनी हदों को पार करती रही हैं. तो फिर मौलाना मदनी यह सब जानते हुए भी कि कांग्रेस के, भाजपा के खिलाफ सरकार बनाने के प्रयासों को ‘खतरनाक कदम’ बता कर क्या जताना चाहते हैं?
मौलाना मदनी के इस स्टैंड पर और कुछ बातें करने से पहले आइए हम भारतीय राजनीति के वैसे दावपेंच की चर्चा कर लें जब विचारधारायें अपनी हदों को पार करती रही हैं. और इस मामले में क्या दक्षिणपंथी, क्या वामपंथी और क्या मध्यममार्गी सियासत करने वाले दल व नेता सब शामिल हैं.
1989 में कांग्रेस से निकल कर राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स रक्षा सौदे पर राजीव गांधी से अलग हुए वीपी सिंह ने जब सरकार बनाई तो उसमें उनकी सरकार को जहां एक तरफ वामपंथियों ने कंधा दिया तो दूसरी तरफ भाजपा ने भी अपना कंधा दिया था. कांग्रेस के एकक्षत्र राज को चुनौती देने के लिए तमाम विचारों की पार्टियां एक प्लेट फार्म पर आ गयी थीं. उससे पहले1974 के आंदोलन में जेपी ने तत्कालीन जनसंघ को भी अपने आंदोलन में शामिल किया था. उत्तर प्रदेश की बहुजन समाज पार्टी की सियासत ब्रह्मणवाद के खिलाफ शुरू तो हुई पर उसने सत्ता पाने के लिए अपने मुखर विरोधी भाजपा का साथ लिया था. ऐसी अनेक मिसालें भारत की सियासत में भरी पड़ी हैं जब वैचारिक परिधि को लांघने की कोशिश लगभग हर दल की तरफ से हुई है. ऐसे मामलों में कई बार सत्ता का लालच तो कई बार देश की तात्कालिक जरूरतों को मद्देनजर रख कर फैसले लिये जाते हैं.
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सन 74 से बुरे हालात
रही बात महाराष्ट्र की तो यह भी एक तथ्य है कि4 के बाद के भारत में समानता यह है कि तब इंदिरा की कांग्रेस के सामने विरोधियों की हालत हवा में उडते तिनके की तरह थी तो आज के विपक्ष की हालत भी कुछ वैसी ही है. भाजपा ने लोकतंत्र, लोकतंत्रिक व स्वायित्त संस्थाओं को जिस तरह से डैमेज किया है और समाज के बुनावट को जिस तरह से छिन्नभिन्न किया है ऐसा नुकसान इंदिरा ने भी नहीं किया था. ऐसी हालत में भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए अगर कांग्रेस शिवसेना से हाथ मिलाती है तो छणिक ही सही, देश को नुकसान से ज्यादा फायदा ही होगा.
यह दुरुस्त है कि हिंदुत्व के एजेंडे पर शिवसेना और भाजपा एक दूसरे से कम नहीं है. शिवसेना का इतिहास भी भाजपा की तरह घृणा की सियासत को परवान चढ़ा कर वोट लेने की रही है. लेकिन यह समय की मांग है कि कांग्रेस अगर कमन मिनिमम प्रोग्राम के तह तक अगले पांच साल तक शिव सेना को नफरत की सियासत से रोक कर सरकार चलाने के लिए राजी कर लेती है तो इसका कम से कम यह फायदा होगा कि भविष्य में कांग्रेस के देश के दूसरे सबसे ज्यादा सांसद वाले राज्य में अपने पांव जमाने में मदद मिलेगी.
Maulana Madani की बेतुकी चिट्ठी
अब जहां तक मौलानामदनी की सोनिया को चिट्ठी का सवाल है तो मदनी की इस चिट्ठी को उनकी निजी राय से ज्यादा कुछ भी नहीं समझा जाना चाहिए. क्योंकि कोई जरूरी नहीं कि मौलाना मदनी की राय आम मुसलमानों की भी राय हो. क्योंकि अभी तक महाराष्ट्र में नये गटबंधन का जो न्यूनतम साझा कार्यक्रम सामने आया है उससे साफ है कि शिवसेना इस बात पर सहमत है कि राज्य में शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में पांच प्रतिशत मुसलमानों को आरक्षण देने पर सहमत हो गयी है. कांग्रेस की इस योजना पर इसी भाजपा की सरकार ने हथौड़ा चला दिया था.
दूसरी और आखिऱी बात यह कि शाह-नरेंद्र मोदी के अहंकारी अभियान को महाराष्ट्र में पहली चुनौती मिलेगी. क्योंकि गोआ, कर्नाटक और उससे पहले उत्तरा खंड में बहुमत ना होने पर भी भाजपा ने सरकार बना लेने की जो हवस पाल ली है उससे लोकतंत्र को काफी नुकसान पहुंच चुका है. महाराष्ट्र में भाजपा के सत्ता से दूर रहने का मतलब है कि उसके मनोबल को ठेस पहुंचेगी.
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