जदयू ने भाजपा से भिडंत का खोला एक नया मोर्चा
जदयू और भाजपा में जारी रस्साकशी एक नए दौर में पहुंच गई है। जदयू ने भाजपा से भिडंत का एक और मोर्चा खोल दिया है।
कुमार आनिल
जदयू ने अप्रत्याशित रूप से उमेश कुशवाहा को अपना प्रदेश अधक्ष बनाकर यह तो स्पष्ट कर दिया कि वह समता पार्टी के दौरान बने लव-कुश समीकरण को फिर से खड़ा करना चाहता है, लेकिन ऐसा करने के लिए उसे रालोसपा से अधिक भाजपा से ही भिड़ना होगा। जदयू का नेतृत्व जरूर इससे वाकिफ भी होगा। तो क्या यह जदयू और भाजपा में भिड़ंत का एक और नया मैदान साबित होनेवाला है?
रालोसपा ने दो महीना पहले हुए विधानसभा चुनाव में 104 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, पर उसके एक भी प्रत्याशी को जीत नहीं मिली। यही नहीं, उसने इन 104 में 49 प्रत्याशी कुशवाहा जाति से दिए थे, लेकिन उनका प्रदर्शन भी कोई उम्मीद जगानेवाला नहीं था। स्पष्ट है कि जदयू के लिए रालोसपा कोई चुनौती नहीं होगी। उसे लव-कुश समीकरण को फिर से जिंदा करना है, तो राजद के साथ ही भाजपा से भी निबटना होगा।
कुशवाहा जाति 80 के दौर में मंडल आंदोलन के साथ थी। बाद में जनता दल के उभार के दौर में लालू के साथ रही, लेकिन फिर इस जाति का बड़ा हिस्सा समता पार्टी के साथ आया। तब माय समीकरण और लव-कुश समीकरण की खूब चर्चा होती थी। लेकिन जदयू बड़ी पार्टी के रूप में तब उभरी जब इसके साथ अतिपिछड़े आए, जिसमें मुसलमानों का भी एक छोटा हिस्सा था।
कुशवाहा जाति की तरह ही अतिपिछड़े समग्र रूप से किसी एक दल के साथ नहीं रहे हैं। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि जदयू कुशवाहा जाति को आकर्षित करते हुए अतिपिछड़ों का आधार किस प्रकार बनाए रखता है। लेकिन लव-कुश समीकरण को फिर से जीवित करने के लिए जदयू के सामने पहले भाजपा ही होगी, क्योंकि उसकी रणनीति भी गैरयादव पिछड़ों को अपने साथ लाना है। इस तरह राज्य की राजनीति में जदयू और भाजपा के बीच ही प्रतियोगिता और भिड़ंत का एक नया मंच तैयार हो गया है।