झारखंड की रघुबर दास सरकार की भद्द पिट गयी है. झारखंड हाईकोर्ट ने PFI पर लगाये गये प्रतिबंध को हटा दिया है. पीएफआई बिहार के प्रदेश उपाध्यक्ष ने नौकरशाही डॉट कॉम को यह खबर दी है.
ज्ञात हो कि झारखंड की रघुबर सरकार ने पिछले फरवरी 2018 में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया(PFI) पर प्रतिबंध लगा दिया था. रघुबसरकार का दावा था कि पीएफआई का सबंध अतिवादी संगठन आएस है. सरकार ने दावा किया था कि पीएफआई के अनेक नेता सीरिया जा चुके हैं.
अप्रैल महीने में इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे को मेनस्ट्रीम मीडिया ने अभियान के तौर पर लिया था और पीएफआई को आतंकी संगठन के रूप में पेश किया था.
PFI पर प्रतिबंध फरवरी में लगा था
लेकिन इस मामले को पीएफआई के लिगल विंग ने झारखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. इस माले की लगातार सुनवाई के बाद झारखंड सरकार ने उस पर लगाये आरोप को अदालत में साबित नहीं कर सकी. पीएफआई के प्रदेश उपाध्यक्ष शमीम अख्तर ने बताया कि झारखंड हाई कोर्ट ने झारखंड सरकार द्वारा लगाये गये तमाम आरोपों को बेबुनियाद बताया और इस बेबुनियाद आरोप के कारण रघुबर सरकार की फटकार भी लगायी है.
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उधर पीएफआई के अध्यक्ष ईंजीनियर अबुबकर ने झारखंड हाई कोर्ट के इस फैसले का शुक्रिया अदा किया है और उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने समर्थकों को शुभकामनायें दी हैं.
गौरतलब है कि इस मामले में लॉ डिपार्टमेंट की सहमति के बाद PFI को सीएलए एक्ट 1968 की धारा 16 के तहत प्रतिबंधित किया गया था. झारखंड में यह संगठन पाकुड़ और साहिबगंज जिले में सक्रिय है. संथाल परगना के ये जिले बांग्लादेश की सीमा से सटे हुए हैं. पुलिस फाइल के मुताबिक पीएफआई पर यह आरोप लगाया गया था कि यहां राष्ट्र विरोधी गतिविधियां सुनने को मिलती हैं. हालांकि राज्य सरकार ने अपने आरोपों को अदालत में नहीं साबित कर सकी है.
क्या है PFI का उद्देश्य
PFI का गठन 2006 में हुआ था. इस संगठन का उद्देश्य नये हिंदुस्तान के निर्माण है. पीएफआई नेशनल कंफेडरेशन आफ ह्यूमेन राइट आर्गनाइजेशन के साथ मिल कर काम करता रहा है. इस तरह मानव अधिकार के क्षेत्र में काम करने का यह संगठन दावा करता है. संगठन पर अतिवादी होने के कई बार आरोप लगे हैं लेकिन इसका दावा है कि वह सोशल डेमोक्रेटिक मूल्यों और समता आधारित समाज के निर्माण के लिए काम करता है.