मुजफ्फरपुर बलात्कार जांच (Shelter home rape investigation) की खबर नहीं छापने के अदालती आदेश के खिलाफ व्यापक नाराजगी बढ़ती जा रही है.

विभिन्न पत्रकार संगठनों, पत्रकारों के समुहों, पत्रकारों और यहां तक कि कुछ अखबारों ने पटना हाईकोर्ट के इस आदेश पर आपत्ति दर्ज की है. एडिटर्स गिल्ड ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए पटना हाई कोर्ट से अपील की है कि वह अपने फैसले को रिव्यू करे. जबकि इंडियन एक्सप्रेस ने बजाब्ता एडिटोरियल लिख कर इस मामले में अपना पक्ष रखा है. Undo the Ban शीर्षक से लिखे अपने ए़डिटोरियल में अखबार ने गुजरात में शोहराबुद्दीन शेख हत्या मामले की याद दिलाई है. सीबीआई अदालत ने इस मामले की रिपोर्टिंग पर पाबंदी लगाई थी जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने अवरूल्ड कर दिया था. अखबार ने पटना हाईकोर्ट को इस फैसले को पढ़ने की अपील की है.
वरिष्ठ पत्रकार रवीश ने लिखा है कि जब अखबारों को खबर लिखने पर ही प्रतिबंध हो और चैनलों को न्यूज दिखाने पर रोक हो तो पाठकों और दर्शकों को चाहिए कि वे अखबार खरीदना बंद कर देना चाहिए और चैनल केबल को ही कटवा देना चाहिए.
उधर नौकरशाही डॉट कॉम के एडिटर इर्शादुल हक ने सजग व गंभीर लोगों से अपील की है कि वे पटना हाईकोर्ट के इस फैसले पर ऐतराज जतायें और अदालत से अपील करें कि वह अपने फैसले को रिव्यू करे. इर्शादुल हक ने लिखा है कि मुजफ्फरपुर बलात्कार कांड की रिपोर्टिंग के कारण ही रेप के आरोपियों को गिरफ्तार किया जा सका. अगर प्रेस की आजादी नहीं बचेगी तो लोकतंत्र नहीं बचेगा और अगर लोकतंत्र नहीं बचा तो न तो सिस्टम बचेगा और ना ही अदालत का वजूद कायम रह सकेगा.
हाईकोर्ट के फैसले पर नाराजगी
याद रखने की बात है कि मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में 34 बच्चियों के साथ नियमित रेप की मेडिकली पुष्टि के बाद मीडिया में खबरें छपने या दिखाये जाने के बाद सरकार पर जनदबाव पड़ा और इसके बाद इस मामले की जांच सीबीआई को दी गयी. उधर इस मामले में पटना हाई कोर्ट ने जांच की मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी संभाली. लेकिन पिछले दिनों अदालत ने यह तर्क देते हुए जांच से संबंधित खबरें छापने या प्रसारित करने पर पाबंदी लगा दी क्योंकि, उसके अनुसार इससे जांच प्रभावित होगी.
हालांकि पत्रकारों, मीडिया संस्थानों और सजग नागरिकों का मत है कि मीडिया अगर इस मामले में अपनी भूमिका नहीं निभाता तो दोषियों या आरोपियों को अंजाम तक पहुंचाने की प्रक्रिया शायद ही शुरू हो पाती.
इस मामले में पटना के सीनियर पत्रकारों ने प्रेस की आजादी पर अंकुश पर चिंता व्यक्त की है और निंदा बयान जारी किया है।
द हिंदू , एनडीटीवी , द पायनियर , द टेलिग्राफ , इंडियन एक्सप्रेस , बिहार टाइम्स और बीबीसी के सम्मानित पत्रकारों के हस्ताक्षर के साथ एक बयान जारी किया गया है. इसमें पटना हाईकोर्ट के 23 अगस्त के फैसले की निंदा की गयी है. हस्ताक्षर करने वालों में मनीष कुमार, संजय वर्मा, फैजान अहमद, मणिकांत ठाकुर और नीरज आदि शामिल हैं.