मुस्लिमों की सामाजिक स्थिति तथा पहचान सुनिश्चित करने के लिए बने बालाकृष्णन आयोग ने आज पटना में सुनवाई की, जिसमें राज्य भर के दलित मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि तथा प्रबुद्ध लोगों ने अपना पक्ष रखा। मुस्लिम तथा ईसाई दलित दशकों से खुद को एससी-एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग करते रहे हैं। हिंदू दलितों के अलावा बौद्ध और सिख दलितों को इस श्रेणी में शामिल किया गया है, लेकिन मुस्लिम तथा ईसाई दलितों को इस श्रेणी से बाहर रखा गया है।
पटना में बालाकृष्णऩ आयोग के सामने 250 प्रतिनिधियों ने अपना पक्ष रखा, जो दलित मुस्लिमों के अधिकार के लिए काम करनेवाले संगठनों से जुड़े थे या व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित हुए थे।
आयोग के सामने बैकवर्ड मुस्लिम मोर्चा, यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा, बख्खो समाज, पमरिया समाज, दर्जी फेडरेशन, मंसूरी समाज तथा अन्य संगठनों के प्रतिनिधियों ने यह बताया कि किस प्रकार उनका समाज सामाजिक-शैक्षिक रूप से दलितों से भी ज्यादा पीछे है, किस प्रकार मुस्लिम दलित भी छूआछूत, सामाजिक भेदभाव के शिकार हैं।
आयोग के सामने अपनी बात रखने वालों में प्रमुख थे उस्मान हलालखोर, नूर हसन, डॉ. एजाज अली, पूर्व सांसद, अली अनवर, पूर्व सांसद, इर्शादुल हक, संपादक, नौकरशाही डॉट कॉम। सभी ने मुस्लिम दलितों को भी हिंदू दलितों की तरह सुविधा तथा अधिकार देने की मांग की। इसी दौरान राजेंद्र प्रसाद ने भी आयोग से मिल कर कहा कि जो पहले से एससी-एसटी श्रेणी में हैं, उनके हक के साथ नाइंसाफी नहीं होनी चाहिए।
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याद रहे मुस्लिम और दलित ईसाइयों को हिंदू, सिख तथा बौद्ध दलितों की तरह अधिकार दिलाने के लिए दशकों से विभिन्न संग्ठन संघर्ष कर रहे हैं। यह मामला 20 वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में है। सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पहले कहा कि वह रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट के आधार पर फैसला देगा। इस पर केंद्र सरकार ने उस आयोग की रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि सरकार नया आयोग बनाएगी। उसी के बाद बालाकृष्णन आयोग बना। जानकारों का कहना है कि केंद्र की भाजपा सरकार मुस्लिम दलितों को उसका हक नहीं देना चाहती है, इसीलिए उसने नया आयोग बना दिया ताकि यह मामला लटक जाए। अगर केंद्र सरकार दलित मुस्लिमों को उसका हक देने के पक्ष में रहती, तो रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही फैसला आ चुका होता।
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