स्त्री शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने जब 1848 में स्कूल खोला. उन्हें लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने पहले अपनी पत्नी सावित्री बाई को पढ़ाया और समाज में शिक्षा की मशाल जलाने के लिए उन्हें अपने स्कूल की शिक्षिका बना दिया.।
संजय कुमार, नालंदा से
शिक्षाविद् राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि कोई भी काम तभी कारगर होता है, जब वो घर से शुरु हो। स्त्रियों को शिक्षित करने की शुरुआत जब महात्मा फुले ने की तो उनकी पहली शिष्या उनकी पत्नी ही बनी। 1848 में जब स्त्रियों की शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने स्कूल खोला तो उन्हें लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली। उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री बाई को इस योग्य बनाया कि वो उस स्कूल की ही नहीं बल्कि देश की पहली अध्यापिका बनी।
श्री शर्मा बुधवार को स्थानीय मध्य विद्यालय ककडिय़ा के प्रांगण में महान समाजसुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले की 191 वीं जयंती के मौके पर चेतना सत्र को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि जीवन भर गरीबों, दलितों और महिलाओं के लिए संघर्ष करने वाले को सशक्त प्रहरी को सदैव याद किया जायेगा।
श्री शर्मा ने कहा कि ज्योतिराव गोविंदराव फुले 19 वीं सदी के प्रयासों से ही देश में शिक्षा की क्रांति हुई। जनता ने आदर से उन्हें ‘महात्माÓ की पदवी से विभूषित किया। उपस्थित बच्चों से उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि 11 अप्रैल, 1827 को महाराष्ट्र के पुणे शहर में पिता श्री गोविन्दराव व माता चिमनाबाई के घर जन्मे महात्मा ज्योतिबा फुले अपने स्कूल के मेधावी छात्र थे और सदा ‘सर्वप्रथमÓ आया करते थे।
श्री शर्मा ने कहा कि सामाजिक समरसता, दलित उत्थान व नारी शिक्षा के लिए महात्मा फुले ने जीवन भर संघर्ष किया।
उन्होंने कहा कि महात्मा फुले ने भारत से दासता को मिटाने के पुरजोर प्रयास किये। उस समय बचपन में ही लड़कियों की शादी हो जाती थी। इस कारण उनका न तो मानसिक विकास हो पाता था और न ही शरीरिक। उन्हें घर की चाहरदीवारी में कैद कर दिया जाता था। उनकी स्थिति तो और खराब थी जो बचपन अथवा युवावस्था में ही विधवा हो जाती थी। वो समाज में तिरस्कार और उपेक्षा की पात्र बनती थीं। महात्मा फुले ने सितम्बर 1873 में महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। गांधीजी भी उन्हें ‘सच्चा महात्माÓ कहा करते थे। बाबा साहेब अंबेडकर न केवल उनसे प्रभावित थे, बल्कि भगवान् बुद्ध और कबीर के बाद उन्हें अपना ‘तीसरा गुरुÓ मानते थे।
उन्होंने कहा कि हम सबको सभ्य समाज के निर्माण के लिए बाल-विवाह एवं दहेज-प्रथा को देश से उखाड़ फेंकना होगा। साथ ही समाज को अशिक्षा के अंधकार से निकालने की जो पहल महात्मा फुले ने की थी उसे हम सभी को आगे बढ़ाना है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता विद्यालय के प्रधानाध्यापक शिवेन्द्र कुमार ने की। इस दौरान विद्यालय परिवार ने महात्मा ज्योतिबा फुले के चित्र पर फूल-माला अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। साथ ही शिक्षक व बच्चों ने महात्मा ज्योतिबा फुले के आदर्शों को आत्मसात करने का संकल्प लिया।
इस मौके पर विद्यालय के शिक्षक सुरेश प्रसाद रजक, अनुज कुमार, सुरेश कुमार, अरविन्द कुमार, बालसंसद के प्रधानमंत्री शुभम प्रकाश शर्मा, सत्येन्द्र कुमार, अंकित कुमार, मुश्कान कुमारी, मनीष कुमार, नेहा कुमारी, प्रियांशु कुमारी, सिंटू कुमार, शुरभी कुमारी, मोनी कुमारी, रिंकी कुमारी, मेनका कुमारी, काजल कुमारी, आरती कुमारी, धमज़्शीला कुमारी, सबनम कुमारी, माधुरी कुमारी,प्रताप कुमार, गोलू कुमार सहित सैकड़ों छात्र-छात्राएं शामिल थे।